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जानें, क्यों महाराष्ट्र के 30 हजार से अधिक किसान 6 दिनों से हैं सड़कों पर, क्या है उनकी मांग?
किसान आंधी-तूफान और अन्य आपदाओं से फसलों के हुए नुकसान के लिए 40,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजे, किसानों को खेती के तहत वन भूमि का आवंटन और वन्य अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन की भी मांग कर रहे हैं.
नई दिल्ली: 30 हजार से अधिक किसान, पथरीली सड़क, 200 किलोमीटर की दूरी, 6 दिनों तक पैदल मार्च, जुबान पर पूर्ण कर्जमाफी की मांग और सरकार विरोधी नारे. बात हो रही है महाराष्ट्र में चल रहे किसान आंदोलन की. बदहाल किसान सरकार पर नाफरमानी का आरोप लगाते हुए सड़कों पर हैं. नासिक से मुंबई तक पैदल मार्च कर आजाद मैदान में डटे हैं. आज किसानों का जत्था विधानसभा का घेराव करेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों को यह आंदोलन क्यों करना पड़ा? इतना बड़ा हुजूम कैसे एक साथ सड़कों पर उतरा? कई दिनों पैदल दूरी तय कर रहे किसानों को खाना-रुकने की वयवस्था और अन्य प्राथमिक जरूरतों को कौन मुहैया करा रहै है? और सरकार का किसान आंदोलन पर क्या स्टैंड है. इन सभी सवालों का जवाब 8 प्वाइंट्स में जानें-
1. किसान आंदोलन का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) कर रहा है. जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) से संबद्ध संगठन है. संगठन के दावे के मुताबिक जब किसानों की पदयात्रा शुरू हुई तो 12,000 किसान शामिल थे. लेकिन ज्यों-ज्यों किसानों का जत्था देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की ओर बढ़ा. किसान जुड़ते चले गये. किसानों के मार्च में 30 हजार से अधिक किसान शामिल हैं. जिसमें से ज्यादातर नासिक, ठाणे और पालघर के आदिवासी किसान हैं.
2.एआईकेएस ने कहा है कि राज्य के किसान कृषि संकट से जूझ रहे हैं और वे भारी वित्तीय बोझ के तले दबे हैं. सरकार ने उन्हें राहत पहुंचाने के लिए कुछ नहीं किया है, इसलिए उनके पास विरोध मार्च के माध्यम से अपने आक्रोश को व्यक्त करने के अलावा कोई चारा नहीं है. आन्दोलनरत किसान महाराष्ट्र और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार से पूर्ण कर्जमाफी और कृषि लागत का 1.5 गुणा लाभ की मांग कर रहे हैं.
3. एआईकेएस एमए स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को तुरंत लागू करने की मांग कर रहे हैं. स्वामीनाथन समिति ने 2004 में रिपोर्ट तैयार की थी. इसके मुताबिक, फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा दाम किसानों को मिले. किसानों को कम दामों पर बीज मुहैया कराया जाए. प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में किसानों को अलग से फंड दी जाए. महिला किसानों के लिए किसान क्रिडिट दी जाए. साथ ही गांवों में किसानों की मदद के लिए ज्ञान चौपाल जैसे सेंटर बनाएं जाएं जैसी कई सिफारिशें हैं.
4. किसान आंधी-तूफान से फसलों के हुए नुकसान के लिए 40,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजे, किसानों को खेती के तहत वन भूमि का आवंटन और वन्य अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन की भी मांग कर रहे हैं. किसानों की मांगों को देखते हुए आंदोलन से लगातार लोग जुड़ रहे हैं. किसानों के लिए कई सामाजिक संगठन खाने-पीन और रुकने की व्यवस्था की. रास्ते में ग्रामीणों ने आगे आकर कहीं पानी तो कहीं नास्ता, खाना देकर किसानों का हौसला बढ़ाया.
5. कई राजनीतिक दलों ने भी किसानों का साथ दिया है. महाराष्ट्र और केंद्र में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने आंदोलनरत किसानों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन दिया है. आपको बता दें कि बीएमसी में शिवसेना है. आजाद मैदान में बीएमसी ने किसानों के लिए प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध करवाई है. पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार की पार्टी एनसीपी, कांग्रेस और राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना ने भी किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया है.
6. महाराष्ट्र में खासकर मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या होती रही है. एआईकेएस के सचिव राजू देसले ने दावा किया है कि देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने पिछले साल जून में 34,000 करोड़ रुपये की सशर्त कर्ज माफी की बात कही. इसके बावजदू अब तक राज्य में 1,753 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
7. किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 6 मंत्रियों की एक समिति बनायी है. सीएम ने कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है. खबर है कि किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल आज मुख्यमंत्री से मुलाकात भी कर सकता है. जिसके बाद किसान आंदोलन खत्म कर सकते हैं.
8 केंद्र सरकार ने बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की थी. साथ की किसानों की आय दोगुना करने का भी दावा किया है. हालांकि अगर किसानों से बात करें तो इसका फायदा उन्हें जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा है. केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी शुरू की है.
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