नई दिल्ली: महाराष्ट्र में राज्यपाल और मोदी कैबिनेट की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति शासन लग गया है. इससे पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की राष्ट्रपति शासन की सिफारिश पर पर कांग्रेस और शिवसेना ने आपत्ति जताई है और कहा है कि राज्यपाल को एनसीपी के जवाब का इंतजार करना चाहिए था. वहीं शिवसेना ने अतिरिक्त समय नहीं मिलने के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. इन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच पढ़ें संविधान और कानून विशेषज्ञों की राय-


सुभाष कश्यप
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश को लेकर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के लिए राज्यपाल ने सिफारिश की है. गेंद राष्ट्रपति के पाले में है, वो निर्णय करेंगे. राष्ट्रपति अगर संतुष्ट हो जाते हैं तो राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करेंगे.


लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा, ''मेरे निजी विचार में राज्यपाल के पास एक और विकल्प उपलब्ध था कि राज्यपाल विधानसभा को एक संदेश भेजें अनुच्छेद 175 के अंतर्गत कि विधानसभा बताए किसके नेतृत्व में उसे विश्वास है. यानि विधानसभा अपने नेता को चुनकर नाम बताए. अगर किसी दल को बहुमत मिल जाता है तो उसी को राज्यपाल मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकते हैं. इससे यह होता कि राजभवन से मुख्यमंत्री तय नहीं होता.''


कश्यप ने कहा, "यदि वह चाहें तो एनसीपी के बाद कांग्रेस को भी बुला सकते हैं. शिवसेना के मामले में संभवत: उन्हें नहीं लगा कि यह पार्टी सरकार बना पाने में सक्षम है."


विधानसभा कैसे काम करेगी?
विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के बावजूद विधानसभा को कैसे बुलाया जा सकता है इस सवार पर सुभाष कश्यप ने कहा कि अभी भी कार्यकारी मुख्यमंत्री ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है. राज्यपाल ने उन्हें कार्यकारी मुख्यमंत्री नियुक्त किया है. जब तक कोई वैकल्पिक प्रबंध नहीं होता है तब तक वह मुख्यमंत्री रहेंगे. ऐसे में विधानसभा बुलाया जा सकता है.


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पी.डी.टी. आचारी
लोकसभा के पूर्व सचिव पीडीटी आचारी ने कहा कि समयसीमा के मामले में कोई निर्णय लेने के लिए राज्यपाल के पास पूरा अधिकार है. आचारी ने महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट पर कहा, "राज्यपाल की प्राथमिकता राज्य में सरकार बनाने की है. यदि उन्हें लगता है कि कोई संभावना है, तो वह निश्चित रूप से समयसीमा बढ़ा सकते हैं जिससे कोई पार्टी सरकार बना सके. लेकिन यदि उन्हें लगता है कि इसकी कोई संभावना नहीं है तो वह इस बारे में राष्ट्रपति को सूचित कर सकते हैं."


केटीएस तुलसी
वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने राज्यपाल के कदम की आलोचना की. उन्होंने कहा कि जब बीजेपी को सरकार बनाने के लिए शनिवार को 48 घंटों का वक्त दिया गया था तो अन्य पार्टियों को भी उतना ही वक्त मिलना चाहिए था.


उन्होंने कहा कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी को आज रात आठ बजकर 30 मिनट तक का वक्त दिया गया था बहुमत का दावा पेश करने के लिए लेकिन राज्यपाल ने उससे पहले ही राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. ये संवैधानिक नहीं है, स्वच्छ मत नहीं है.तुलसी ने कहा कि राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.


महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक गतिरोध के बीच केंद्रीय कैबिनेट ने भी महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की. जिसके बाद राष्ट्रपति ने रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दी. राज्य में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव के बाद कोई भी दल सरकार नहीं बना पाया.


महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी मंजूरी


शिवसेना ने सोमवार को दावा किया था कि एनसीपी और कांग्रेस ने उसे महाराष्ट्र में बीजेपी के बिना सरकार बनाने के लिये सिद्धांत रूप में समर्थन देने का वादा किया है लेकिन राज्यपाल की ओर से तय समय सीमा समाप्त होने से पहले वह समर्थन का पत्र पेश करने में विफल रही.


राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को आज मंगलवार शाम साढ़े आठ बजे तक सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए कहा था. लेकिन कोश्यारी ने मंगलवार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. कोश्यारी के कार्यालय द्वारा ट्वीट किये गये एक बयान के अनुसार, ‘‘वह संतुष्ट हैं कि सरकार को संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, (और इसलिए) संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधान के अनुसार आज एक रिपोर्ट सौंपी गई है.’’


अनुच्छेद 356 को आमतौर पर राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है और यह ‘राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता’ से संबंधित है. वहीं, शिवसेना ने सरकार गठन के लिए और समय दिये जाने से महाराष्ट्र के राज्यपाल के इनकार करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.