नई दिल्ली: महाराष्ट्र के जारी राजनीतिक संकट के बीच आज सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ तक सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि कल सुबह साढ़े 10 बजे आदेश सुनाया जाएगा. शीर्ष अदालत ने शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी की याचिका पर सुनवाई की है. तीनों दलों ने याचिका में कहा है कि बीजेपी को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने के राज्यपाल के 23 नवंबर के आदेश को रद्द किया जाए. कांग्रेस,एनसीपी और शिवसेना जल्द से जल्द फ्लोर टेस्ट की भी मांग की है.


आज सुप्रीम कोर्ट में क्या थी किसकी दलील-


सुनवाई के दौरान राज्यपाल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल किया कि क्या अनुच्छेद 32 की याचिका में राज्यपाल के आदेश को इस तरह चुनौती दी जा सकती है? मेहता ने कहा कि राज्यपाल ने 9 नवंबर तक इंतजार किया. सबसे बड़ी पार्टी को न्योता दिया. BJP ने मना कर दिया. 10 तारीख को शिवसेना से पूछा. उसने भी मना कर दिया. 11 को एनसीपी ने भी मना किया. फिर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. राज्यपाल को पता था कि एक चुनाव पूर्व गठबंधन जीत गया है.


सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहली चिट्ठी बीजेपी की तरफ से सौंपी गई. फिर अजीत पवार ने चिट्ठी दी. इसकी तारीख 22 नवंबर है. इस पर लिखा गया कि वह एनसीपी विधायक दल के नेता हैं. 54 नेताओं का दस्तखत है. हमने तय किया है कि फडणवीस को समर्थन दें. मुझे सब विधायकों का समर्थन है, राष्ट्रपति शासन ज़्यादा नहीं चलना चाहिए.


तुषार मेहता ने इसके बाद कहा कि देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार की चिट्ठी के आधार पर राज्यपाल ने सरकार बनाने का न्योता दिया. राज्यपाल ने चिट्ठी में कहा कि आप अपनी पार्टी के विधयक दल के नेता चुने गए हैं. आपने 11 दूसरे विधायकों के समर्थन की भी चिट्ठी दी है. अजित पवार ने भी आपके पक्ष में चिट्ठी दी है. मैं आपको सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता हूं.


इसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने देवेंद्र फडणवीस का चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट में पेश किया. जिसमें लिखा गया है, ''मैं फडणवीस विधायक दल का नेता चुना गया हूं. एनसीपी ने समर्थन दिया है. 11 दूसरे विधायकों का समर्थन है. कुल 170 का समर्थन मुझे हासिल है.''


बता दें कि विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने 54 सीटों पर जीत दर्ज की थी. चुनाव नतीजों के बाद अजित पवार को एनसीपी विधायक दल का नेता चुना गया था. 23 नवंबर की सुबह को अजित पवार बागी हो गए और उन्होंने अपने चाचा शरद पवार से अलग रुख अपनाते हुए बीजेपी को समर्थन देने का एलान किया.


शरद पवार की पार्टी एनसीपी का कहना है कि अजित पवार ने जो चिट्ठी बीजेपी को समर्थन देने के लिए राज्यपाल को सौंपी गई, वह चिट्ठी धोखे में ली गई.


कर्नाटक से अलग है मामला


सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के दावों को खारिज करते हुए कहा कि मामले पर विस्तृत सुनवाई की ज़रूरत है. हड़बड़ी में नहीं निपटाया जा सकता है. यह केस येदियुरप्पा मामले से अलग है. इसी दौरान बीजेपी की तरफ से पेश हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि कल यह लोग कह रहे थे कि इनके पास एनसीपी के 45 विधायक हैं. यह बातें बाहर कही गईं. राज्यपाल ने अपने पास उपलब्ध सामग्री से फैसला लिया.


जस्टिस संजीव खन्ना के सवाल


सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा कि क्या आज स्थिति यह है कि विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है. जिसपर रोहतगी ने कहा कि पता नहीं. शायद उनमें आपसी विवाद है. लेकिन अब जो होगा वह विधानसभा के फ्लोर पर होगा. लेकिन राज्यपाल पर हमला क्यों हो रहा है? उन्होंने फ्लोर पर जाने के लिए ही तो कहा है. समय भी तय किया है.


रोहतगी ने कहा कि जब इनके (याचिकाकर्ता) मुख्य मामले (राज्यपाल के आदेश को चुनौती) में ही दम नहीं तो अंतरिम मांग (जल्द फ्लोर टेस्ट) क्यों सुनी जाए. इसकी तारीख कोर्ट को तय नहीं करनी चाहिए.


फिर तुषार मेहता ने दी दलील


रोहतगी के बाद तुषार मेहता ने फिर दलील रखी. उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अपनी समझ के हिसाब से समय तय किया. इनको (याचिकाकर्ता) चिंता है कि विधायक भाग जाएंगे. अभी किसी तरह से उनको पकड़ा हुआ है. कोर्ट को इस बात में क्यों पड़ना चाहिए?


तुषार मेहता ने कहा कि हमको विस्तृत जवाब दाखिल करने दीजिए. पहले आए कुछ अंतरिम आदेश (कर्नाटक आदि) के आधार पर फिर कोई आदेश नहीं दीजिए. इन्होंने (विपक्ष ने) एक वेल्डिंग की है. इनको टूटने का डर सता रहा है. इसलिए जल्दबाज़ी मचा रहे हैं. आपके आदेश का दूरगामी असर होगा. विस्तृत सुनवाई के बाद ही आदेश दीजिए.


अजित पवार की तरफ से दलील
वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह अजीत पवार की तरफ से पेश हुए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जो चिट्ठी राज्यपाल को दी गई थी, वह कानूनी रूप से सही थी. फिर विवाद क्यों? बाद में उपजी किसी कथित स्थिति पर बहस क्यों? मनिंदर सिंह ने कहा कि मैं (अजित पवार) एनसीपी हूं. यही सही है. उन्होंने कहा कि कोर्ट को अनुच्छेद 32 की याचिका नहीं सुननी चाहिए. इनसे हाई कोर्ट जाने को कहना चाहिए. अगर बाद में कोई स्थिति बनी है (एनसीपी विधायकों का शरद के साथ जाना) तो इसे भी राज्यपाल देखेंगे. उनके ऊपर छोड़ा जाए. कोर्ट इसमें क्यों पड़े?


फिर रोहतगी ने कहा कि किसी अंतरिम आदेश की जरूरत नहीं है. सीएम (देवेंद्र फडणवीस) को विस्तृत जवाब का समय मिलना चाहिए.


कपिल सिब्बल की तरफ से दलील


तुषार मेहता, मुकुल रोहतगी, मनिंदर सिंह के बाद शिवसेना की तरफ से कपिल सिब्बल ने अपनी दलील रखनी शुरू की. उन्होंने कहा कि 22 नवंबर को एक प्रेस कांफ्रेंस हुई. ऐलान हुआ कि तीन पार्टियां (कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना) साथ आईं हैं. इसके ठीक बाद सुबह पांच बजे राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया. ऐसी जल्दी क्या थी? जिसपर रोहतगी ने कहा कि आपने इसे चुनौती नहीं दी है.


जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने चिट्ठी के आधार पर फैसला लिया है. इसपर सिब्बल ने कहा कि कौन से राष्ट्रीय आपदा आ गयी थी कि 8 बजे शपथ भी दिलवा दी गयी? जिसपर जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह बात आपकी याचिका में नहीं है इसे न बोलें. जिसपर सिब्बल ने कहा कि ठीक है. अजीत पवार हटाए जा चुके हैं. स्थितियां बदल चुकी है. अब 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट होना चाहिए.


सिब्बल के बाद एनसीपी के वकील सिंघवी ने रखी दलील


वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट को सही कह रहे हैं. तो फिर इसमें देर क्यों? उन्होंने कहा कि पुराने आदेश हमारे सामने हैं. उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती. सिंघवी ने कहा कि विधायकों के दस्तखत ज़रूर हैं. लेकिन किसी विधायक ने नहीं कहा कि वह बीजेपी को समर्थन दे रहे हैं. यह धोखा है. अजीत पवार को नेता चुनने के लिए लिए गए दस्तखत दूसरी चिट्ठी में लगा दिए गए.


इसी दौरान रोहतगी और सिंघवी में तीखी बहस हुई. जिसपर एनवी जस्टिस रमना ने शांत रहने को कहा. सिंघवी ने कहा कि अपने आप में आधार है कि फ्लोर टेस्ट आज ही हो जाना चाहिए. वरिष्ठतम विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए और आज ही फ्लोर टेस्ट कराया जाए.


फिर तुषार मेहता ने कहा कि जो नई चिट्ठी (याचिकाकर्ता) दी है, उसमें भी कई विधायकों के नाम नहीं हैं. जिसके बाद सिंघवी ने कहा कि ठीक है, मैं फ्लोर टेस्ट में हारने को तैयार हूं, आप इसे होने से मत रोकिए. सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि विशेष सत्र बुलाएं. जिसमें सिर्फ बहुमत परीक्षण हो. जिसपर जस्टिस रमना ने कहा कि क्या आदेश देना है. इसे हम पर छोड़ दें.


जब कोर्ट में माहौल हल्का हुआ


तुषार मेहता ने कहा कि यह लोग (याचिकाकर्ता) एक याचिका दायर कर एक वकील पर तो सहमत नहीं हो पाए. कई लोग बोल रहे हैं. इस दौरान कोर्ट में मौजूद लोगों हंसी छूट गई. इसके बाद फिर से रोहतगी ने 2007 के राजाराम पाल केस का हवाला दिया. तब कोर्ट ने संसद की कार्रवाई में दखल देने से मना किया था. यह लोग (याचिकाकर्ता) तुरंत सत्र बुलाने का आदेश मांग रहे हैं. यह भी तय करे कि कौन कब नाश्ता करेगा, लंच करेगा.


रोहतगी ने कहा कि विधानसभा की जब बैठक होगी तो जिसकी संख्या ज्यादा होगी, उसका स्पीकर बनेगा. यही प्रक्रिया है. प्रोटेम स्पीकर सिर्फ शपथ दिलाते हैं. स्पीकर चुने जाने के बाद विपक्ष का नेता तय होता है. फिर विश्वास मत होता है. इस प्रक्रिया को नहीं बदलना चाहिए.


फिर कपिल सिब्बल कुछ बोलने के लिए खड़े हुए. जिसपर जस्टिस रमना ने कहा कि क्या अभी दलील बाकी है? फिर सिब्बल ने कहा कि पहले ऐसे मामलों में कोर्ट ने स्पीकर का चुनाव जैसी प्रक्रिया का इंतज़ार नहीं किया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कल 10:30 बजे फैसला सुनाएंगे.


सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी की याचिका पर रविवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह सोमवार को राज्यपाल का पत्र अदालत को सौंपे जिसमें देवेन्द्र फडणवीस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है. इस पत्र को आज सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया.