नई दिल्लीः महाराष्ट्र की राजनीति में एक चिट्ठी से आए भूचाल के बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की बात में वाकई कोई दम है कि सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है? बीजेपी नेताओं से नज़दीकी के चलते ही क्या परमबीर सिंह को मुंबई के पुलिस कमिश्नर पद से हटाया गया ? और सबसे अहम सवाल यह कि इस पूरे विवाद के जरिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की इमेज को क्या इतना पलीता लगाने की कोशिश हो रही है कि वे एनसीपी और कांग्रेस का दामन छोड़कर फिर से बीजेपी के भरोसे सरकार चलाने पर मजबूर हो जाएं? हालांकि पर्दे के पीछे से हो रहे इस सियासी खेल से जुड़े सवालों के जवाब मिलने इतने आसान नहीं हैं. लेकिन अगर सारे विवाद को गहराई से देखें, तो आने वाले दिन महाराष्ट्र में किसी बड़े सियासी तूफान का इशारा कर रहे हैं.
राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि भले ही गृह मंत्री अनिल देशमुख निर्दोष हों, क्योंकि उनके यहां से कोई पैसों की बरामदगी नहीं हुई है, लेकिन सौ करोड़ की उगाही का आरोप इतना संजीदा है कि मुम्बई और महाराष्ट्र के लोग इस पर आसानी से यकीन कर लेंगे. जिस मायानगरी में अपनी मनपसंद पोस्टिंग पाने के लिये एक अदना-सा सिपाही लाखों रुपयों की भेंट चढ़ाने के लिए तैयार हो और जहां कमिश्नर की कुर्सी पाने के लिए करोड़ों के वारे-न्यारे होते रहे हों, वहां आम आदमी पहली नज़र में इस आरोप को सच ही मानेगा. फ़िलहाल अनिल देशमुख अपनी सरकार के लिये ऐसे किरदार बन चुके हैं, जिन्हें पद पर रखना या हटाना, दोनों ही तरीके से अपनी फजीहत कराने के समान है. अगर उनसे इस्तीफा लिया जाता है, तो जनता के बीच यह संदेश जायेगा कि पूर्व पुलिस कमिश्नर का आरोप सही था और अगर पद से नहीं हटाया जाता, तो सरकार के इक़बाल पर यह आरोप और ज्यादा मजबूत होगा कि महा अघाड़ी सरकार में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है.
नागपुर से ताल्लुक रखने वाले और शरद पवार के चहेते समझे जाने वाले 70 बरस के अनिल देशमुख ने महाराष्ट्र की राजनीति में घाट-घाट का पानी पिया है. पिछली देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल को छोड़ दें, तो वे 1995 से लेकर अब तक हर सरकार में मंत्री रहे हैं. जाहिर है कि सियासी शतरंज का माहिर खिलाड़ी इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला.
महाराष्ट्र की राजनीति में नेताओं-अफसरों की नजदीकियों को समझने वालों का दावा है कि परमबीर सिंह को शिवसेना या एनसीपी के मुकाबले भाजपा का ज्यादा करीबी समझा जाता है. शायद यही कारण है कि 2014 से 2019 तक जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे, तब लगातार चार साल तक वे ठाणे के पुलिस कमिश्नर पद पर रहे. उल्लेखनीय है कि परमबीर सिंह को अगले साल सितंबर में रिटायर होना है, लिहाज़ा अभी वे सर्विस में हैं. सर्विस में रहते हुए कोई अफसर मुख्यमंत्री को सीधे पत्र लिखने की हिम्मत नहीं करता है, वह भी ऐसा जिसमें अपने ही विभाग के मंत्री पर इतने गम्भीरआरोप हों. जाहिर है कि उनके पीछे कोई तो ऐसी राजनीतिक ताकत है जो फिलहाल अदृश्य है. वैसे मुकेश अम्बानी के घर के बाहर मिली विस्फोटक सामग्री वाली कार और हिरेन मनसुख की रहस्यमय मौत का मामला फडणवीस ने जब विधानसभा में उठाया था, तब सचिन वाजे और अनिल देशमुख के खिलाफ उनके तेवर काफी तीखे थे, लेकिन परमबीर सिंह के लिए उनकी बातों में नरमी थी. समझने वाले तो उसी पल इस नरमी का राज समझ गये थे.