Maharashtra-Karnataka Border Dispute: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश में लगे हुए हैं. शाह के साथ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बुधवार (14 दिसंबर) को बैठक होनी है. इस बीच महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार (Maharashtra) ने अक्कलकोट (Akkalkot District) के 11 गांवों को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में उनसे यह बताने के लिए कहा गया है कि उन्होंने कर्नाटक (Karnataka) के साथ विलय के लिए प्रस्ताव क्यों पारित किया.
11 गांवों में से 10 गांवों ने पहले ही प्रदेश की सरकार को अवगत कराते हुए कहा है कि उन्होंने अपने प्रस्तावों को रद्द कर दिया है और महाराष्ट्र (Maharashtra) के साथ ही रहने का विचार है.
11 पंचायतों को कारण बताओ नोटिस
इलाके के प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि पिछले कुछ दिनों में हमने अक्कलकोट तालुका में 11 पंचायतों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. ये नोटिस उनके लिए जारी किया गया था, जिन्होंने कर्नाटक के साथ विलय का प्रस्ताव पारित किया था. राज्य विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें नोटिस भेजा गया था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कारण बताओ नोटिस में जिक्र है कि सरकार बुनियादी सुविधाएं प्रदान करती है, लेकिन ग्राम पंचायतों ने सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार उनके बारे में जागरूकता पैदा करने के बजाय इस तरह का प्रस्ताव क्यों पारित किया?
अक्कलकोट के विधायक ने क्या कहा?
बीडीओ ने बताया कि मंगलवार तक 10 ग्राम पंचायतों ने जवाब दे दिया था. 11 ग्राम पंचायतों में से 10 ने कहा है कि उन्होंने अपने प्रस्तावों को रद्द कर दिया है और महाराष्ट्र के साथ रहना चाहते हैं. जहां तक 11वीं ग्राम पंचायत का सवाल है, हमें बताया गया है कि सरपंच शहर से बाहर हैं.
वहीं, अक्कलकोट के विधायक सचिन कल्याणशेट्टी ने कहा कि सभी 11 ग्राम पंचायतों ने अपने प्रस्ताव वापस ले लिए हैं. मैंने उनके साथ बैठकें कर गांवों में चल रही परियोजनाओं और कार्यों के बारे में जानकारी दी. बैठक में एक भी सरपंच ऐसा नहीं था जिसने कोई विवाद खड़ा किया हो.
विलय का प्रस्ताव क्यों हुआ था पारित?
अक्कलकोट के विधायक सचिन कल्याणशेट्टी ने कहा कि ग्राम पंचायतों ने इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने का इस उम्मीद में सहारा लिया था कि सरकार सांगली जिले के जाट तालुका के मामले में वित्तीय पैकेज की घोषणा करेगी.
गौरतलब है कि अगलागांव के सरपंच मंटूस हाटुरे ने कहा था कि उनकी ग्राम पंचायत ने कर्नाटक में विलय का प्रस्ताव पारित किया था क्योंकि महाराष्ट्र सरकार अच्छी सड़कें, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाएं जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में विफल रही थी.
दशकों पुराना सीमा विवाद
साल 1956 में जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद से पारित होकर अस्तित्व में आया, तभी से दोनों प्रदेश अपनी सीमाओं के कुछ गांवों को भाषा के आधार पर अपने राज्य में शामिल किए जाने की मांग करते रहे हैं. दोनों राज्यों में बेलगावी, खानापुर, निप्पानी, नंदगाड और कारवार की सीमा को लेकर मतभेद है.
इस विवाद में बेलगावी सबसे अधिक चर्चा में रहता है. ताजा विवाद भी बेलगावी पर दावेदारी को लेकर है, जिसके चलते महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद मंगलवार (7 दिसंबर) को और बढ़ गया था. दोनों राज्यों के सीमा क्षेत्र के भीतर एक-दूसरे के वाहनों को निशाना बनाया गया. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में केंद्र सरकार भी चाहती है कि ये मसला किसी तरह से शांत हो जाए.
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