Ajit Pawar Rebellion: 2 जुलाई को आया रविवार, महाराष्ट्र की राजनीति में सुपर संडे साबित हुआ. एनसीपी नेता अजित पवार अपने चाचा शरद पवार को बड़ा झटका देते हुए शिंदे-फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गए. उन्होंने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली. जूनियर पवार के इस कदम ने सभी को हैरान कर दिया है. अजित पवार का ये कदम भले ही चौंकाने वाला लग रहा हो, लेकिन इसकी तैयारी एक साल पहले ही शुरू हो गई थी.
अजित पवार ने रविवार, 2 जुलाई को राजभवन में डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली तो अकेले नहीं थे. उनके साथ एनसीपी के 8 अन्य विधायकों ने भी मंत्री के रूप में शपथ ली, जिनमें छगन भुजबल, दिलीप वलसे पाटिल, हसन मुशरिफ जैसे बड़े नाम थे. शपथ ग्रहण समारोह में प्रफुल्ल पटेल भी मौजूद थे, जिन्हें पिछले महीने ही शरद पवार ने पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था. ये ऐसे नाम है जो लंबे समय से शरद पवार के साथ रहे और उनका काफी करीबी समझा जाता रहा है.
अजित पवार की दूसरी बगावत
अजित पवार की बात करें तो ये सीनियर पवार के खिलाफ उनकी दूसरी बगावत है. इसके पहले 2019 में बीजेपी के साथ चले गए थे, लेकिन चाचा पवार ने उन्हें कुछ दिन में वापस लौटने को मजबूर कर दिया था. इस बार मामला दूसरा है. अजित पवार ने ठीक वही दांव खेला है, जो एक साल पहले एकनाथ शिंदे ने किया था. ऐसा लगता है कि जूनियर पवार ने सेम वही स्क्रिप्ट पढ़ रखी हो. अजित पवार पार्टी तोड़ने के बजाय पार्टी ही लेकर चले गए. उन्होंने एक तरह से पार्टी पर दावा भी ठोंक दिया है.
चाचा पवार ने कहा डकैती
अजित पवार के कदम को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने डकैती बताया है. इसके साथ ही सीनियर पवार ने दावा किया कि वे पहले भी ऐसा देख चुके हैं और पहले ही तरह ही पार्टी को फिर से खड़ी करके दिखाएंगे. लेकिन जो शरद पवार नहीं देख सके वो थी, उनके ही नाक के नीचे पनप रही भतीजे की नाराजगी, जो हर किसी को नजर आ रही थी. कहा तो ये भी जा रहा है कि शरद पवार को नाराजगी का पता तो था लेकिन इसे रोकने की राह में पुत्री मोह आड़े आ गया.
पार्टी में साइडलाइन किए जा रहे थे अजित पवार
अजित पवार जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से पार्टी में साइडलाइन किए जा रहे थे, उसे लेकर उनकी नाराजगी कोई रहस्य नहीं रह गई थी. अजित पवार के नेतृत्व में पार्टी के अंदर एक गुट बन रहा था. इसे दबाने के लिए शरद पवार ने मई में अपने इस्तीफे का दांव चला. इसके बाद पार्टी में नए नेतृत्व को कमान देने की अटकलें लगनी शुरू हुईं जो कुछ ही दिनों बाद सच भी साबित हुईं. सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और अजित पवार को मायूसी ही हाथ लगी.
एक साल से कर रहे थे प्लानिंग
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, अजित पवार एक साल से सीनियर पवार और सुप्रिया सुले को झटका देने की तैयारी में जुटे थे. जब मई में वाई बी चव्हाण सेंटर में शरद पवार ने अपने इस्तीफे की घोषणा की तो अजित पवार अकेले नेता थे, जिसने कहा था कि पार्टी को इस्तीफा स्वीकार कर लेना चाहिए और नए नेतृत्व के लिए रास्ता तैयार करना चाहिए.
जब खुलकर मांगा अपने लिए पद
डिप्टी सीएम की शपथ लेने से पहले अजित पवार के पास नेता प्रतिपक्ष का पद था, लेकिन वे इसे छोड़ना चाह रहे थे. पिछले महीने ही अजित पवार ने कहा था कि नेता प्रतिपक्ष बने रहने में उनकी दिलचस्पी नहीं है और मांग की थी कि उन्हें पार्टी के लिए काम करने का मौका दिया जाए. कहा जा रहा है कि अजित पवार ने खुद को पार्टी में पद देने के लिए 1 जुलाई की डेडलाइन दी थी, जब ये पूरी हुई और कोई फैसला नहीं हुआ तो उन्होंने शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल होने का फैसला कर लिया.
रविवार को जब बगावत हुई तो इसके बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरद पवार ने कहा भी कि उन्होंने 6 जुलाई को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई थी जिसमें कई घोषणा की जानी थी लेकिन उसके पहले ये सब हो गया.
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