Maharashtra NCP Crisis: अजित की बगावत शरद पवार को पड़ेगी भारी! 2024 से पहले NCP चीफ के सामने हैं ये चुनौतियां
Maharashtra Politics Crisis: अजित पवार के बगावती तेवरों ने शरद पवार के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. अजित के कदम ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता पर सवालिया निशान लगा दिया है.
NCP Political Crisis: एनसीपी के साथ बगावत करने के बाद अजित पवार भले ही महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन गए हों, लेकिन वह अपने चाचा शरद पवार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर गए हैं. शरद पवार के सामने न केवल लोकसभा बल्कि विधानसभा चुनावों की तैयारियों का भी दबाव है, क्योंकि राज्य में दोनों ही चुनाव साल 2024 में होने वाले हैं. इसके चलते पार्टी में फूट पड़ना इस वक्त काफी गंभीर मामला नजर आ रहा है.
अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि इसके बाद शरद पवार का दांव क्या होने वाला है. वह बगावत में उतरे अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ क्या कुछ योजना बनाएंगे और उनके आगे क्या कुछ चुनौतियां होने वाली हैं. चलिए आपको सिलसिलेवार बताते हैं रविवार (2 जुलाई) को हुई घटनाक्रम का साल 2024 के चुनावों पर क्या असर पड़ेगा और राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार इससे कैसे निपटेंगे.
संजय राउत ने किया ये दावा
शरद पवार की आगे की रणनीति क्या होगी इसकी तस्वीर तो फिलहाल साफ नहीं हुई है, लेकिन अजित पवार के बीजेपी का दामन थामने के बाद संजय राउत का बयान सामने आया था. संजय राउत ने ट्वीट कर दावा किया, "उनकी अभी शरद पवार से बात हुई. उन्होंने बताया कि वह मजबूत हैं और उन्हें लोगों का समर्थन प्राप्त है. वह उद्धव ठाकरे के साथ फिर से सब कुछ पुनर्निर्माण करेंगे. लोग इस गेम को ज्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं करेंगे."
विपक्षी दलों के सूत्रधार हैं शरद पवार
शरद पवार के पास अभी केवल एनसीपी ही नहीं बल्कि तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने की भी जिम्मेदारी है. वह आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के महागठबंधन के सूत्रधार हैं. वह इस महागठबंधन वाली राजनीति के सबसे वरिष्ठ नेता हैं. यही वजह है कि उनके अगले कदम पर सभी की निगाहें हैं. ऐसे में अपनी ही पार्टी में दो फाड़ हो जाना उनके लिए काफी मुश्किल समय हैं.
MVA को बचाने की चुनौती
शरद पवार के आगे महाविकास अघाड़ी को बचाने की चुनौती भी है क्योंकि इस वक्त एमवीए नगर निकाय, लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर रणनीति बना रहा था. इसकी जिम्मेदारी भी शरद पवार के पास ही थी कि वह चुनाव लड़ने के लिए कोई बीच का रास्ता निकालें. अब ऐसे में उनके आगे कई सारी मुसीबतें एक साथ खड़ी हो गई हैं.
ये भी पढ़ें: