Pune Sessions Court Gives Bail: महाराष्ट्र में पुणे सेशन कोर्ट ने लश्कर के दो संदिग्धों को सबूत के अभाव में रिहा कर दिया है. महाराष्ट्र एटीएस ने कुछ महीने पहले दो लोगों को कथित तौर से आतंकी संगठन लश्कर-ए तैयबा (Lashkar-e-Taiba) का हिस्सा माना था और उन पर आरोप था कि वे इस आतंकी संगठन में लोगों को भर्ती कर रहे हैं. कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वे एक आतंकवादी संगठन का हिस्सा हैं. वास्तव में एक आरोपी व्यक्ति का बड़ा भाई जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का शिकार है.


महाराष्ट्र के एटीएस (Maharashtra ATS) ने केंद्र सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की योजना बनाने के आरोप में मई और जून के महीने में जम्मू-कश्मीर के रहने वाले आफताब हुसैन अब्दुल जब्बार शाह ( Aftab Hussain Abdul Jabbar Shah) और मोहम्मद यूसुफ अट्टू (Mohammed Yusuf Attu) को गिरफ्तार किया था.


कब हुई थी गिरफ्तारी


एटीएस ने इस मामले में यूएपीए की धारा नहीं लगाई थी, इसके बजाय उन पर आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) और 153बी (अभियोग, राष्ट्रीय-एकीकरण के प्रतिकूल दावे) के तहत मामला दर्ज किया था. एटीएस अधिकारियों ने मई में पुणे से मोहम्मद जुनैद को हिरासत में लेने के बाद उसे गिरफ्तार किया था. बुलढाणा जिले के खामगांव का रहने वाला जुनैद पुणे में कबाड़ का काम करता था. एटीएस ने यूपी से एक शख़्स इनामुल हक को गिरफ्तार किया था, जो LeT से अपने संबंधों के मामले में पहले से ही जेल में था.


कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?


कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जहां तक आफताब और यूसुफ की बात की जाए तो जुनैद के साथ उनका संबंध है. उसने आफताब से संपर्क किया था और फरार आरोपी उमर का जिक्र है. हालांकि बातचीत से यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि आफताब आतंकी गतिविधियों या आतंकी संगठन की भर्ती में शामिल था. इसी तरह युसूफ अट्टू ने दूर-दराज के इलाके से जुनैद के खाते में पैसा भेजा था. पैसे ट्रांसफर करने से पहले या उसके बाद भी यूसुफ अट्टू और जुनैद के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी.


आतंकी गतिविधियों के सबूत नहीं


कोर्ट ने आगे कहा कि इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यूसुफ ने किसी और के कहने पर जुनैद के खाते में 10 हजार रुपए ट्रांसफर किए थे. निर्विवाद रूप से युसूफ के किसी आतंकवादी गतिविधि या किसी देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने का कोई सबूत नहीं है. इसी तरह यह इंगित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि आफताब किसी आतंकवादी या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल था.


क्या था मामला?


एटीएस के अनुसार, जुनैद जम्मू-कश्मीर में हमीदुल्ला जरगर (इस मामले में फरार आरोपी) के संपर्क में था और वह अंसार गजवातुल हिंद या तौहीद नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप चला रहा था. जरगर उस व्हाट्सएप ग्रुप में राष्ट्र-विरोधी और आतंकवाद से संबंधित पोस्ट भेजता था और उसके निर्देश पर जुनैद ने कथित तौर पर भारत में लोगों की भर्ती की थी. जांच के दौरान, एटीएस के साइबर सेल ने पाया कि जुनैद ने हिंदुओं के खिलाफ नफरत की भावना फैलाने के लिए भारत में मुसलमानों पर किए गए अत्याचारों के संबंध में फेसबुक पर पोस्ट की थी.


एटीएस का क्या है दावा?


एटीएस (ATS) के मुताबिक, जुनैद आफताब के संपर्क में आया और उनके करीब आने के बाद उसने आफताब को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा में शामिल होने का ऑफ़र दिया. एटीएस का दावा है कि आफताब ने जुनैद को एक उमर नाम के शख़्स से व्हाट्सअप के जरिए मिलवाया और कहा कि वह तंजीम (एक नया आतंकवादी समूह) के लिए भर्ती कर रहा था. एटीएस ने यह भी दावा किया कि आफताब और उमर भारत में विभिन्न भीड़भाड़ वाली जगहों पर तबाही मचाने के लिए गोला-बारूद और हथियारों के प्रशिक्षण के लिए जुनैद को कश्मीर बुला रहे थे.


आफताब और उमर ने प्रशिक्षण के लिए जम्मू-कश्मीर आने के लिए युसुफ के माध्यम से जुनैद के नए बैंक खाते में 10,000 रुपये ट्रांसफ़र किए. उमर के निर्देश पर जुनैद ने नए फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप बनाने के लिए कई सिम कार्ड खरीदे थे.


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