Crowdfunding: महाराष्ट्र पुलिस ने चार कंपनियों को नोटिस भेजा है जो लोग बीमार बच्चों के फोटो को दिखाकर सोशल मीडिया पर क्राउड फ़ंडिंग का काम करते हैं. महाराष्ट्र पुलिस की प्रीवेन्शन ऑफ़ क्राइम अगेंस्ट वुमन एंड चिल्ड्रेन विभाग के चीफ दीपक पांडे ने ये नोटिस भेजते हुए कहा है की इस तरफ़ से क्राउड फ़ंडिंग करवाना क़ानूनी अपराध है और ये एक तरह का भीख मांगना है जो की जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत दोषी माना जाता है.


पांडे ने एबीपी न्यूज़ से एक्सलूसिव बातचीत में बताया की उन्हें आशंका है कि ये एक बहुत बड़ा स्कैम है और सरकारी एजेंसियों को बायपास कर लोग क्राउड फ़ंडिंग के नाम पर करोड़ों का ग़बन कर रहे हैं. पांडे ने आगे बताया की देश में किसी भी बच्चे को अगर कोई परेशानी है तो उसके लिए CWC यानी की चाइल्ड वेलफ़ेयर कमिटी बनाई गई है जिसके मध्यम से बच्चों की मदज की जाती है. साथ ही इस तरह से कोई प्राइवेट प्लेयर अगर सरकार के समांतर आकर काम कर रहा है तो वो सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है या तो सरकार की कमजोरी बता रहा है.


मदद के नाम पर क्राउड फ़ंडिंग होती- दीपक पांडे 


पांडे ने कहा कि मैं बिहार से आता हूं और वहां पर पहले कई बाहुबली हुआ करते थे जो सारे फ़ैसले ख़ुद ले लिया करते थे. पुलिस स्टेशन ना जाकर ऐसे में ये भी कुछ इसी तरह का काम है जिसमें आप सरकार को लूप में रखते हुए लोगों की मदद के नाम पर क्राउड फ़ंडिंग करते हैं. ऐसे ही एक क्राउड फ़ंडिंग करने वाली कंपनी ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया ये कहते हुए कि वो जो कर रहे हैं वो सामाजिक हित के लिए कर रहे हैं. कोर्ट ने इस मामले को अगली सुनवाई के समय आगे की बता सुनेंगे.


पांडे के मुताबिक़ इस तरह से क्राउड फ़ंडिंग करना जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 के तहत क्राइम है और अगर बच्चों के माता पिता ने भी अनुमति दी तो वो भी क्राइम का हिस्सा बनते हैं. इसके अलावा इनके ख़िलाफ़ बॉम्बे प्रीवेन्शन ऑफ़ बैगिंग एक्ट की धारा 11 के तहत भी करवाई की जा सकती है.


देश की आर्थिक ताक़त के लिए ख़तरा?


पांडे ने चिंता जताते हुए कहा कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नाम की बीमारी है जिसके लिए कई बार क्राउड फ़ंडिंग की बात सामने आती है. इस बीमारी से ठीक होने के लिए एक इंजेक्शन लगता है जिसकी क़ीमत 16 करोड़ रुपए है. ऐसे में अगर हम अंदाज़ा लगाए तो हर साल क़रीबन 1000 बच्चों को इस तरह के इंजेक्शन लगाने की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे में अगर सारे पैसे क्राउड फ़ंडिंग से आ रहे हैं तो एक साल में 16 हज़ार करोड़ रुपए देश से बाहर क्राउड फ़ंडिंग के ज़रिए हो रहे हैं. साथ ही शायद इसका हिसाब भी नहीं होगा ये देश की आर्थिक ताक़त के लिए ख़तरा है.


नियम क्या कहता है?


अगर कोई बच्चा बीमार है और उसे पैसों की ज़रूरत है तो अस्पताल, माता पिता या कोई और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात की जानकारी CWC यानी की चाइल्ड वेलफ़ेयर कमिटी को दे कर उनसे मदद मांगे जिसका मुखिया डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट होता है. वो इस अर्ज़ी को वेरिफ़ाय करता है.


इसके बाद संबंधित ज़िले में मौजूद डिस्ट्रिक्ट चिल्ड्रेन प्रोटेक्शन यूनिट को इस बात को जानकारी दी जाती है कि वो बच्चे की मदद करे. उसका मुखिया कलेक्टर होता है, अगर पैसे ज़्यादा लगते हैं और उसके पास इसका अभाव होता है तो वो सरकार को इस बात की जानकारी देकर पैसे की मांग कर सकते हैं. सरकार फिर निश्चित करेगी कि इसके लिए उनके पास पैसे है या नहीं और अगर ज़रूरत पड़ी तो सरकार ख़ुद डिस्ट्रिक्ट चिल्ड्रेन प्रोटेक्शन यूनिट से क्राउड फ़ंडिंग करने को कह सकती है और जिसके बाद ही क्राउड फ़ंडिंग किया जाता है.


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