Legal Pointers In NCP's Coup: महाराष्ट्र की शांत पड़ी सियासत में रविवार (2 जुलाई) को तब भूकंप आ गया जब अचानक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता और सदन में नेता विपक्ष अजित पवार ने महाराष्ट्र की शिंदे-फडणवीस सरकार से हाथ मिला लिया. एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पार्टी के कुल 9 दिग्गज नेताओं के साथ शिंदे सरकार में पद और गोपनियता की शपथ ग्रहण कर ली.
फिलहाल की स्थिति यह है कि महाराष्ट्र में एनसीपी के दो गुट हो चुके हैं. एक गुट जहां एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के साथ है तो वहीं एक गुट अजित पवार के साथ खड़ा नजर आ रहा है. पहले गुट में जहां अनुमानित विधायकों की संख्या अनिश्चित है तो वहीं बागी गुट यह दावा कर रहा है कि उनके साथ 30 से अधिक विधायकों का साथ है.
अजित पवार के गुट में जिन लोगों ने बगावत की है उसमें से पार्टी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल और एक कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल भी हैं. अजित पवार के साथ यह दोनों नेता बगावत होने से पहले तक शरद पवार के सबसे नजदीकी सिपहलसालरों में से एक माने जाते थे. इनमें से एक यानी प्रफुल्ल पटेल तो एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं.
कोर्ट जाने से क्यों बच रहे है शरद पवार
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किन वजहों के कारण एनसीपी नेता शरद पवार ने कहा कि वह अदालत नहीं जाएंगे बल्कि जनता की अदालत में अपनी पार्टी फिर से खड़ी करेंगे. हालांकि खबर लिखे जाने तक यह सूचना है कि एनसीपी नेता शरद पवार अपनी लीगल टीम से लगातर विचार-विमर्श कर रहे हैं, तो आने वाले दिनों में यह लड़ाई अदालत की चौखट में भी देखने को मिल सकती है.
महाराष्ट्र में कानूनी और राजनीतिक समझ रखने वाले विश्लेषकों की मानें तो पहली वजह यह स्पष्ट होना नहीं है कि आखिर कितने विधायक किस गुट के साथ हैं. दूसरी वजह शिवसेना की बगावत से लिया गया सबक है जहां पर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के फैसले पर कोई भी सवाल उठाने से इनकार करना था.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनते हुए यह कहा था कि विधायकों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराने का अधिकार सिर्फ विधानसभा स्पीकर को है और यह खुद स्पीकर अपने विवेक से तय करेंगे कि उनको कब इस कानून के तहत विधायकों को अयोग्य ठहराना है. वहीं कुछ विश्लेषकों का छगन भुजबल के उस बयान के आधार पर जिसमें उन्होंने कहा था, परिवार का झगड़ा जल्द खत्म होना चाहिए क्योंकि शरद पवार ही हमारे नेता हैं, का मानना है कि अदालत जाने से भविष्य में सुलह की सारी संभावनाएं भी समाप्त हो सकती हैं.
ऐसे में अब एनसीपी की इस बगावत की परिणीती, आगमी निर्णयों और अगले कानूनी कदमों का पता भी तभी लग पाएगा जब बुधवार (5 जुलाई) को दोनों गुटों की मीटिंग होगी, क्योंकि इसी मीटिंग में स्पष्ट हो पाएगा कि आखिर किस गुट के पास कितना संख्या बल है?