(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Maharashtra: शिवसेना में बगावत पहली बार नहीं, बाला साहब ठाकरे के समय भी तीन बार हो चुकी हैं टूट की कोशिशें
शिवसेना के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि शिवसैनिक बागी हुए हों. शिवसेना विद्रोहों को लेकर सुरक्षित नहीं रही है और पार्टी ने चार मौकों पर बगावत का सामना किया है.
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में अघाड़ी सरकार (MVA) इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रही है. इसकी वजह सहयोगी दल शिवसेना (Shiv Sena) में हुई बगावत है. शिवसेना के वरिष्ठ और कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) शिवसेना और निर्दलीय 42 विधायकों के साथ असम में डेरा डाल कर बैठे हैं. शिवसेना में हुई इस फूट की वजह से महाराष्ट्र (Maharashtra) की सरकार का गिरना तय माना जा रहा है.
अगर शिवसेना के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि शिवसैनिक बागी हुए हैं और उन्होंने अपने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया हो. नेतृत्व के प्रति प्रतिबद्ध काडरों की पार्टी होने के बावजूद, शिवसेना पदाधिकारियों की ओर से विद्रोहों को लेकर सुरक्षित नहीं रही है और पार्टी ने चार मौकों पर अपने प्रमुख पदाधिकारियों की ओर से बगावत का सामना किया है.
बाला साहब ठाकरे के समय में भी हुईं थी शिवसेना में बगावत
इन बगावतों में से तीन शिवसेना के ‘करिश्माई संस्थापक’ बाला साहब ठाकरे के समय में हुई थी. एकनाथ शिंदे पार्टी में बगावत करने वाले पहले नेता नहीं हैं. शिवसेना के विधायकों के एक समूह के साथ बगावत करने वाले कैबिनेट मंत्री शिंदे का यह विद्रोह पार्टी संगठन के 56 साल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे महाराष्ट्र में पार्टी के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के गिरने का खतरा पैदा हो गया है. वहीं शिवसेना में बगावत तब हुई है जब पार्टी राज्य में सत्ता में नहीं थी.
वर्तमान बगावत ने विधान परिषद चुनाव परिणाम के बाद सोमवार रात से आकार लेना शुरू कर दिया था. इसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की है, क्योंकि पिछले तीन विद्रोह तब हुए थे जब उनके पिता बाल ठाकरे जीवित थे.
1991 में छगन भुजबल ने की थी बगावत
1991 में शिवसेना को पहला बड़ा झटका तब लगा था जब पार्टी के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) चेहरा रहे छगन भुजबल ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया था. भुजबल को महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में संगठन के आधार का विस्तार करने का श्रेय भी दिया जाता है. भुजबल ने पार्टी नेतृत्व की ओर से ‘प्रशंसा नहीं किये जाने’को पार्टी छोड़ने का कारण बताया था.
भुजबल ने शिवसेना को महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में बड़ी संख्या में सीटें जीतने में मदद की थी, लेकिन उसके बावजूद, बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त किया था. नागपुर में शीतकालीन सत्र में भुजबल ने शिवसेना के 18 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी थी और कांग्रेस को अपना समर्थन देने की घोषणा की थी, जो उस समय राज्य में शासन कर रही थी.
हालांकि, 12 बागी विधायक उसी दिन शिवसेना में लौट आए थे. भुजबल और अन्य बागी विधायकों को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने एक अलग समूह के रूप में मान्यता दे दी थी और उनको किसी भी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा था. एक वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार ने पीटीआई-भाषा से कहा कि यह एक दुस्साहसिक कदम था क्योंकि शिवसेना कार्यकर्ता (असहमति के प्रति) अपने आक्रामक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे.
एनसीपी में कब शामिल हुए थे छगन भुजबल?
उन्होंने मुंबई में छगन भुजबल के आधिकारिक आवास पर हमला भी किया. जिसकी सुरक्षा आमतौर पर राज्य पुलिस बल द्वारा की जाती है. भुजबल हालांकि 1995 के विधानसभा चुनाव में मुंबई से तत्कालीन शिवसेना नेता बाला नंदगांवकर से चुनाव हार गए थे. बाद में वह एनसीपी में शामिल हो गए थे जब शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाई थी. भुजबल (74) वर्तमान में शिवसेना के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार में मंत्री और शिंदे के कैबिनेट सहयोगी हैं.
नारायण राणे और राज ठाकरे भी कर चुके हैं बगावत
वर्ष 2005 में शिवसेना को एक और चुनौती का सामना करना पड़ा था जब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने पार्टी छोड़ दी थी और कांग्रेस में शामिल हो गए थे. राणे ने बाद में कांग्रेस छोड़ दी और वर्तमान में बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं. शिवसेना को अगला झटका 2006 में लगा जब उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ने और अपना खुद का राजनीतिक संगठन - महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाने का फैसला किया. राज ठाकरे ने तब कहा था कि उनकी लड़ाई शिवसेना नेतृत्व के साथ नहीं बल्कि पार्टी नेतृत्व के आसपास के अन्य लोगों के साथ है.
शिवसेना में बगावत पर क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
वर्ष 2009 में 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में मनसे ने 13 सीटें जीती थीं. मुंबई में इसकी संख्या शिवसेना से एक अधिक थी. शिवसेना वर्तमान में राज्य के वरिष्ठ मंत्री, ठाणे जिले से चार बार विधायक रहे और संगठन में लोकप्रिय एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कुछ पार्टी विधायकों द्वारा बगावत का सामना कर रही है. राजनीतिक पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने कहा कि शिवसेना नेतृत्व अपने कुछ नेताओं को हल्के में ले रहा है. इस तरह का रवैया हमेशा उल्टा पड़ा है, लेकिन पार्टी अपना रुख बदलने को तैयार नहीं है. उन्होंने कहा कि अब समय बदल गया है और ज्यादातर विधायक बहुत उम्मीदों के साथ पार्टी में आते हैं.
शिंदे के पास कितने विधायक है?
अगर उन उम्मीदों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया, तो इस तरह का विद्रोह होना तय है. शिवसेना (Shiv Sena) के पास फिलहाल 55, राकांपा (NCP) के पास 53 और कांग्रेस (Congress) के पास 44 विधायक हैं. तीनों एमवीए (MVA) के घटक दल हैं. विधानसभा में विपक्षी बीजेपी (BJP) के पास 106 सीटें हैं. दल बदल रोधी कानून (Anti-Defection Law) के तहत अयोग्यता से बचने के लिए शिंदे को 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत है. बागी नेता ने दावा किया है कि शिवसेना के 46 विधायक उनके साथ हैं.
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