Maharashtra Political Crisis: क्या बागी शिव सैनिकों की विधायकी खतरे में है? जानें दल बदल विरोधी कानून के बारे में सबकुछ
Maharashtra Political Crisis: ल-विरोध कानून में सांसदों और विधायकों के द्वारा एक पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में शामिल होने पर दंडित करने का प्रावधान है.
Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र की सियासत कल से ही तूफान मचा हुआ है. शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के दो दर्जन से ज्यादा विधायक गुजरात के सूरत में मौजूद हैं. जिसके कारण महाविकास अघाड़ी सरकार पर बड़ा संकट आ गया है. गुवाहाटी में शिवसेना के 41 विधायकों का जमावड़ा हो चुका है. जिसके कारण उद्धव की सरकार अल्पमत में आ चुकी है. वहीं एनसीपी और कांग्रेस के अलावा छोटे दलों और कुछ निर्दलीय विधायक भी सूरत पहुंचे बताए गए हैं.
इस बीच सबके मन में ये सवाल है कि क्या बागी विधायक पाला बदलकर बीजेपी के खेमे की ओर रुख करेंगे. अगर ऐसा होता है तो शिवसेना विधानसभा स्पीकर के पास जाकर इन विधायकों को दल-बदल कानून के तहत 'अयोग्य' करार देने की मांग कर सकती है. आइये जानते है कि आखिर ये कानून क्या है और इसे कब लागू किया जा सकता है.
दल-विरोध कानून क्या है
दल-विरोध कानून में सांसदों और विधायकों के द्वारा एक पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में शामिल होने पर दंडित करने का प्रावधान है. संसद ने इसे साल 1985 में दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में शामिल किया. इसका उद्देश्य विधायकों द्वारा बार-बार बदलते पार्टियों से हतोत्साहित करके सरकार को स्थिरता में लाना था. साल 1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों ने दल-बदल करके कई राज्य सरकारों को सत्ता से बाहर किया था.
दल-बदल कब होता है?
कानून के तहत तीन स्थितियों से सांसद और विधायक दल-बदल करते हैं. पहला वह स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दे. दूसरा तब जब एक सांसद और विधायक निर्दलीय रूप से निर्वाचित हुए है और बाद में किसी पार्टी में शामिल हो जाते हैं. तीसरा तब जब विधायक या सांसद ममोनित होता है और वह 6 महीने के भीतर किसी राजनीतिक दल का दामन थाम ले. इन तीनों में किसी भी परिदृश्य में कानून का उल्लंघन होने पर दलबदल करने वाले विधायक या सांसद को दंडित किया जाता है. ऐसे मामलों में सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने की शक्ति होती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सांसद या विधायक अपने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं.
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