Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र की सियासत आज एक नए मोड़ पर खड़ी है. शिवसेना में उभरे मतभेद ने पार्टी को टूट की कगार पर खड़ा कर दिया है. एकनाथ शिंदे के बागी तेवर ने बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thakrey) की शिवसेना की पहचान को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. असली और नकली शिवसेना की लड़ाई अब अदालत के दरवाजे तक पहुंच गई है. एकनाथ शिंदे कह रहे हैं कि ये विचारों की लड़ाई है क्योंकि उनके मुताबिक अब उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की शिवसेना पहले वाली शिवसेना (Shiv Sena) नहीं रह गई है. वैसे देखा जाए तो ये सारी लड़ाई ताकत और सत्ता के लिए ही है. 


राजनीति में एक मुहावरा बड़ा ही प्रचलित है कि सियासत में न कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है और ना ही स्थाई दुश्मन. ये मुहावरा साल 2019 में शिवसेना के फैसले पर भी सटिक बैठता है, जब उद्धव ठाकरे ने समझौता करते हुए अपने विरोधी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर सरकार बनाई थी. 


शिवसेना में अब बालासाहेब वाली बात नहीं?


बालासाहेब ठाकरे कांग्रेस के धुर विरोधी थे, लेकिन आज शिवसेना उनके विचारों को रौंदते हुए अपने कट्टर विरोधियों के साथ सरकार में है और यही कुछ शिवसैनिकों को रास नहीं आया. महाविकास अघाड़ी सरकार के करीब ढाई साल ही हुए हैं कि शिवसेना में ही बगावत हो गई और अब सरकार के साथ-साथ पार्टी का अस्तित्व भी खतरे में है. उद्धव ठाकरे पर आरोप लग रहे हैं कि उनके नेतृत्व वाली शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी की कठपुतली के समान बनकर रह गई है और इसमें अब बालासाहेब वाली बात नहीं दिखती है.


बालासाहेब के वक्त कैसी थी शिवसेना?


बालासाहेब ने साल 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी. एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट से राजनीति में कदम रखा और एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई. पूरे महाराष्ट्र में उनकी तूती बोलती थी. बालासाहेब ने कई मसलों पर काफी आक्रामकता के साथ सियासत की. पार्टी की स्थापना के कुछ समय बाद ही उन्होंने महाराष्ट्र के मूल निवासियों के मसले को लेकर हवा दी जिसके बाद प्रदेश में शिवसेना की लोकप्रियता काफी बढ़ गई. इस दौरान मराठी बनाम बाहरी का मुद्दा काफी सुर्खियों में रहा. उत्तर भारतीयों पर कई बार हमले हुए. 1990 के दशक तक पार्टी ने मराठी मानुष के मुद्दे के साथ हिंदुत्व को लेकर अपनी एक अलग पहचान बनाई.


बॉलीवुड इंडस्ट्री को भी लिया था निशाने पर


शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ने बॉलीवुड इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को भी नहीं छोड़ा था. कई फिल्मों को लेकर उन्होंने विरोध जताया था. शाहरुख खान की फिल्म माइ नेम इज खान का उन्होंने जमकर विरोध किया था और उनके खिलाफ विवादित टिप्पणी भी की थी. कई दूसरे फिल्मी सितारों से भी उनकी नहीं बनती थी. बालासाहेब ने अपने विचार के खिलाफ बनी फिल्मों का पुरजोर विरोध किया था. उनके दौरा में कई बार मीडिया को भी टारगेट किया गया था.


कट्टर हिंदू नेता की छवि!


बाला साहेब ठाकरे की छवि एक कट्टर हिंदू नेता के तौर पर रही थी और शायद यही वजह थी कि उन्हें हिंदू हृदय सम्राट कहा जाने लगा था. वे वैलेंटाइड डे के भी खिलाफ थे और इसे हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए खतरा बताते थे. वो बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों के भी खिलाफ रहते थे. उनका मानना था कि जैसे कई देशों में हिंदुओं को उनका हक नहीं मिलता है उसी तरह से भारत में भी मुसलमानों को कोई हक नहीं मिलना चाहिए. करीब 4 दशक तक उनके इशारे पर महाराष्ट्र की सियासत घूमती रही. 90 के दशक में अयोध्या में जब बावरी मस्जिद ढहाया गया था तो बालासाहेब ने कई सार्वजनिक मंचों से इस सही ठहराया था.


कांग्रेस और एनसीपी के विरोधी!


बालासाहेब ठाकरे का रूख कांग्रेस और एनसीपी के प्रति काफी आक्रामक रहा. वो कांग्रेस और एनसीपी को पसंद नहीं करते थे. आज महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ कांग्रेस और एनसीपी की सरकार चल रही है लेकिन बालासाहेब के समय में ये दोनों पार्टियां उनके निशाने पर रहती थीं. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा भी वो उठा चुके थे. उनके निशाने पर कई बार राहुल गांधी भी आए थे. वही शरद पवार से भी सियासी तौर पर उनका छत्तीस का आंकड़ा था. हालांकि बताया जाता है कि उनके निजी संबंध ठीक थे मगर राजनीतिक तौर पर दोनों एक दूसरे पर हमला बोलने में नहीं कतराते थे.


कैसी है उद्धव ठाकरे की शिवसेना?


साल 2019 में उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब के धुर विरोधी पार्टियों के साथ समझौता कर सरकार बनाई थी. महाविकास अघाड़ी सरकार के ढाई साल पूरे हुए नहीं कि शिवसेना में ही बगावत के सुर उठ गए और आरोप लगा कि उद्धव ठाकरे ने पुरानी शिवसेना की पहचान खो दी है. एकनाथ शिंदे गुट ने आरोप लगाया कि शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी ने हाइजैक कर लिया. उद्धव पर बालासाहेब के हिंदुत्व के एजेंडे को भूलने के भी आरोप लग रहे हैं. हालांकि उद्धव ठाकरे ये दिखाने की कोशिश करते रहे हैं कि उनकी पार्टी अभी भी हिंदुत्व के एजेंडे पर कायम है. हाल ही में उद्धव ठाकरे के बेटे और प्रदेश की सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे अयोध्या गए थे.   


कितनी बदली शिवसेना?


बालासाहेब ठाकरे मराठी अस्मिता को लेकर काफी आक्रामक दिखते थे. उत्तर भारतीयों के खिलाफ शिवसैनिकों का हिंसा कई बार सामने आया था. बालासाहेब कट्टर हिंदुत्व की छवि रखते थे और खासकर बांग्लादेशी मुसलमानों का विरोध करते थे. बालासाहेब सियासी तौर पर कांग्रेस और एनसीपी को पसंद नहीं करते थे. राम मंदिर के भी काफी कट्टर समर्थक रहे थे. बॉलिवुड हस्तियों से लेकर अपने विरोधी राजनीतिक हस्तियों जैसे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और शरद पवार पर हमले से नहीं चूकते थे. उनके भाषणों में काफी आक्रामकता थी. 


वही उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के राज में शिवसेना ने बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thakrey) के विरोधी कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर सरकार बनाई गई. आरोप लग रहे हैं कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी की कठपुतली हो गई है. वही उद्धव ठाकरे के भाषणों में अपने पिता की तरह कोई आक्रामकता नहीं है. हिंदुत्व वाली छवि भी कमजोर पड़ी है.


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