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Maharashtra Political Crisis: 'उद्धव ठाकरे की सीएम पद पर वापसी हो सकती थी अगर...', शिंदे गुट के खिलाफ याचिकाओं पर SC के फैसले का निष्कर्ष जानिए

Uddhav Thackeray vs Eknath Shinde: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र को लेकर अपने अहम फैसले में कहा कि राज्यपाल का उद्धव ठाकरे को बहुमत परीक्षण के लिए कहना अनुचित था.

SC Verdict on Shiv Sena: 29 जून 2022 को दिया इस्तीफा उद्धव ठाकरे को भारी पड़ गया. शिंदे के नेतृत्व में पिछले साल शिवसेना विधायकों की बगावत से जुड़े कई पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की. यह भी कहा कि पार्टी के आंतरिक असंतोष के आधार पर राज्यपाल को मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण के लिए नहीं कहना चाहिए था. लेकिन अंत मे कोर्ट ने कहा, "हम किसी निर्णय को पलट सकते हैं, इस्तीफे को नहीं. उद्धव ठाकरे ने बहुमत परीक्षण की जगह त्यागपत्र दे दिया.उनकी बहाली पर अब विचार नहीं किया जा सकता."

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने यह भी कहा है कि उद्धव के इस्तीफे के बाद शिंदे को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देकर राज्यपाल ने कोई गलती नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि जब शिवसेना पार्टी ने सुनील प्रभु को विधानसभा में पार्टी का व्हिप बनाया था, तब शिंदे समर्थक विधायकों ने भारत गोगावले को कैसे व्हिप नियुक्त कर दिया और स्पीकर ने उसे कैसे मान्यता दे दी? कोर्ट ने स्पीकर से कहा है कि वह एक उचित समय सीमा में विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता की याचिकाओं पर फैसला लें.

सुप्रीम कोर्ट ने 141 पन्नों के फैसले में इन बातों को निष्कर्ष के रूप में लिखा है :-

1. नबाम रेबिया फैसले को समीक्षा के लिए 7 जजों की बेंच को भेजा जा रहा है.यह तय करना ज़रूरी है कि क्या जब स्पीकर को पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित हो, तब वह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकते.

2. कोर्ट आम तौर पर सीधे विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं लेता. इस मामले में भी ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है कि हम सीधे दखल दें. विधानसभा अध्यक्ष उचित समय सीमा में फैसला लें.

3. किसी विधायक के खिलाफ अयोग्यता का मामला लंबित हो, तो वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है.अगर उसे बाद में अयोग्य ठहराया गया, तब भी पहले हो चुकी सदन की कार्यवाही पर असर नहीं पड़ेगा. 

4. पार्टी ही तय करती है कि सदन में उसका नेता और सचेतक (व्हिप) कौन होगा. विधायक इसका फैसला खुद नहीं ले सकते. 3 जुलाई 2022 को स्पीकर ने जिस तरह शिंदे समर्थक विधायकों की तरफ से नियुक्त व्हिप को मान्यता दी, वह गलत था.स्पीकर नए सिरे से विचार कर फैसला लें. उसी को नेता और व्हिप मानें, जिसे पार्टी इसके लिए अधिकृत करे.

5. दलबदल पर स्पीकर फैसला लेते हैं और पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव आयोग निर्णय लेता है. दोनों एक साथ अपना काम कर सकते हैं.

6. सिंबल्स ऑर्डर के पैराग्राफ 15 के मुताबिक वास्तविक पार्टी के बारे में फैसला लेते समय चुनाव आयोग तथ्यों और परिस्थितियों के हिसाब से विचार कर सकता है.

7. पार्टी में टूट को आधार बना कर कोई विधायक अयोग्यता की कार्रवाई से बचने का दावा नहीं कर सकता. जब 2 या 2 से अधिक गुट खुद के असली होने का दावा कर रहे हों, तब संविधान के दसवें शेड्यूल (दलबदल विरोधी प्रावधान) के पैराग्राफ 2(1) के तहत स्पीकर तय करेंगे कि वास्तविक राजनीतिक पार्टी कौन है?

8. राज्यपाल का उद्धव ठाकरे को बहुमत परीक्षण के लिए कहना अनुचित था. राज्यपाल के पास इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी कि ठाकरे बहुमत का समर्थन खो चुके हैं.

9. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर राज्यपाल ने सही किया. 

ये भी पढ़ें- SC Verdict on Shiv Sena: विपक्ष नो कॉन्फिडेंस मोशन लाया नहीं और उद्धव सरकार चली गई... महाराष्‍ट्र गवर्नर और स्‍पीकर पर क्‍या-क्‍या बोला सुप्रीम कोर्ट 

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