SC Verdict on Shiv Sena: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिवसेना की बगावत मामले में फैसला देते हुए कहा कि वह उद्धव ठाकरे की सरकार की बहाली का आदेश नहीं दे सकती क्योंकि उन्होंने बिना फ्लोर टेस्ट का सामना किए ही इस्तीफा दे दिया था. शीर्ष अदालत ने आगे कहा, चूंकि ठाकरे ने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया था, ऐसे में राज्यपाल ने शिंदे को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देकर सही किया. 


गुरुवार (11 मई) मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया. पीठ में जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल रहे. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए माना कि राज्यपाल का पहले फ्लोर टेस्ट के लिए कहना और स्पीकर का शिंदे गुट द्वारा मनोनीत व्हिप को नियुक्त करने का फैसला गलत था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला स्पीकर के ऊपर छोड़ दिया. आइए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या अहम टिप्पणी की है.


व्हिप नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला गलत


सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गोगावाले (शिंदे समूह द्वारा समर्थित) को शिवसेना पार्टी के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का निर्णय अवैध था. कोर्ट ने कहा कि यह कहना कि पार्टी व्हिप विधायी दल नियुक्त करता है, इसका मतलब  राजनीतिक दल के साथ उसकी गर्भनाल से काटकर अलग कर देने जैसा है. इसका अर्थ हुआ कि विधायकों का दल पार्टी से अलग हो सकता है, जो सही नहीं है.


कोर्ट ने कहा, स्पीकर ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि दो व्यक्तियों, प्रभु या गोगावले, में कौन पार्टी द्वारा अधिकृत व्हिप थे. स्पीकर को केवल राजनीतिक पार्टी द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए.


शिंदे गुट के खुद को असली शिव सेना बताने को लेकर कोर्ट ने कहा कि अयोग्यता की तलवार लटकने के बाद खुद को मूल पार्टी कहना बचाव का आधार नहीं हो सकता है. 


फ्लोर टेस्ट के आदेश पर सवाल


राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने पर भी कोर्ट ने सवाल खड़े किए. पीठ ने कहा, "विपक्षी दलों ने कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं दिया. राज्यपाल के पास सरकार के विश्वास पर संदेह करने के लिए कोई ठोस वजह नहीं थी. ऐसा भी संकेत नहीं था कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते थे. यह मान भी लें कि विधायक सरकार से बाहर निकलना चाहते थे, तो भी उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया था."


कोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी विवाद के निपटारे के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. पीठ ने कहा कि राज्यपाल को ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह इसमें पार्टी बनें.


कोर्ट ने आगे कहा, राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह नतीजा निकाल लिया कि ठाकरे ने अधिकांश विधायकों का समर्थन खो दिया है. विधायकों ने राज्यपाल से सुरक्षा को लेकर चिंता जताई लेकिन इससे सरकार के समर्थन पर कोई असर नहीं पड़ता. राज्यपाल को पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था. पत्र में यह संकेत नहीं था कि ठाकरे ने समर्थन खो दिया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि फडणवीस और 7 विधायक अविश्वास प्रस्ताव की मांग के लिए बढ़ सकते थे. ऐसा करने से कोई रोक नहीं थी.


उद्धव सरकार बहाल नहीं कर सकते- सुप्रीम कोर्ट


वहीं, अदालत ने उद्धव ठाकरे गुट की पूर्वस्थिति बहाल करने की मांग से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा, "पूर्व की स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया. इसलिए राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के समर्थन से शिंदे को शपथ दिलाई."


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