Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में बीते साल छिड़ी शिवसेना और सत्ता की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (11 मई) को अंतिम फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने शिंदे गुट की तरफ से कई गलतियां मानीं लेकिन उद्धव ठाकरे की सरकार को फिर से बहाल करने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. हम फिर से पूर्व स्थिति बहाल नहीं कर सकते. ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर उद्धव ठाकरे ने बिना फ्लोर टेस्ट का सामना किए ही इस्तीफा क्यों दे दिया था.


एचटी की खबर के मुताबिक, उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से हटने का पहला संकेत 22 जून को ही दे दिया था, जब उनकी पार्टी के कई विधायक विधान परिषद चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद सूरत चले गए थे. बगावत के बीच उद्धव ठाकरे पार्टी के साथ अपना विचार साझा करते हुए कहा था कि वह हारे हुए जैसा नहीं दिखना चाहते हैं. हालांकि, वह केवल शिवसेना के प्रमुख ही नहीं थे बल्कि एक गठबंधन सरकार के मुखिया भी थे. गठबंधन की दूसरी पार्टियों से शरद पवार और दूसरे बड़े नेता उन पर लगातार मैदान में डटे रहने का आह्वान कर रहे थे.


ठगा महसूस कर रहे थे ठाकरे


उद्धव ठाकरे ने लड़ने की कोशिश भी की लेकिन एक-एक कर उनके करीबी समझे जाने वाले लोग साथ छोड़कर शिंदे की तरफ जाने लगे. इनमें एक खास नाम उदय सामंत का है जो उद्धव के आपदा मैनेजमेंट ग्रुप का हिस्सा थे, उन्होंने भी साथ छोड़ दिया. ठाकरे गुट की शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से एचटी ने लिखा है कि जैसे-जैसे उद्धव के करीबियों का घेरा छोटा होता गया, वह खुद को ठगा और आहत महसूस करने लगे थे. नेता ने बताया कि वह इस बात से आहत थे कि बड़ी संख्या में विधायक बिना किसी बातचीत के उनके खिलाफ हो गए.


केवल 5 लोग जानते थे उद्धव का फैसला


29 जून को जब सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फ्लोर टेस्ट के निर्देश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया तो उद्धव को लगा कि अब उनका समय हो चुका है. इस समय तक उनके 38 विधायक पाला बदल चुके थे. उद्धव के फैसले के बारे में केवल पांच लोगों को पता था- उनकी पत्नी रश्मि, बेटे आदित्य और तेजस और शिव सेना नेता सुभाष देसाई और अनिल परब, जिन्होंने बाद में दूसरे लोगों को पार्टी में बताया. उसी दिन उद्धव ठाकरे ने आखिरी कैबिनेट बैठक ली थी जिसमें उन्होंने अपने सहयोगियों को शुक्रिया किया था.


इस्तीफा देने के लिए उद्धव ठाकरे ने न तो कोई कानूनी सलाह ली और न ही सरकार में अपने सहयोगियों एनसीपी और कांग्रेस से कोई सलाह मशविरा किया. 10 महीने बाद उद्धव के लिए उनका यही फैसला मुश्किल बन गया जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ने इस्तीफा न दिया होता तो हम पूर्व स्थिति बहाल करने पर विचार करते.


और शर्मिंदगी नहीं चाहते थे ठाकरे


उद्धव के करीबी के मुताबिक वह सोच रहे थे कि उन्हें पॉवर गेम में घसीटा गया है और वह विधानसभा में कभी उनके अधीन काम करने वालों के आरोपों का सामना नहीं करेंगे. इसके साथ ही, एक शक इस बात का भी था कि फ्लोर टेस्ट के दौरान चर्चा में कुछ और विधायक खेमा बदल सकते थे. यह और ज्यादा अपमानजनक और शर्मिंदा करने वाला होता और वह इसका हिस्सा नहीं होना चाहते थे.


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