Eknath Shinde Takes Oath: शिवसेना (Shiv Sena) के बागी एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को उनकी बगावत का इनाम मिल गया है. अब वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए हैं लेकिन महाराष्ट्र में ही एक और कद्दावर नेता हैं, जिन्हें एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनता देख अपने करीब 44 साल पुराने दिन याद आ गए होंगे. वो नेता हैं शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री जो पहली बार महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बने थे तो वो भी कांग्रेस के बागी ही थे और मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके इसी बगावत का इनाम थी.
तारीख थी 18 जुलाई 1978 का. उस दिन महाराष्ट्र में शरद पवार (Sharad Pawar) ने शपथ ली थी. उनके सियासी गुरू थे यशवंत राव चव्हाण. महाराष्ट्र राज्य के पहले मुख्यमंत्री. उन्होंने ही शरद पवार को 27 साल की उम्र में पुणे की बारामती सीट से विधायक बनवाया था. जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस तोड़ दी, तब भी शरद पवार इंदिरा गांधी की कांग्रेस के ही साथ थे. आपातकाल के दौरान जब महाराष्ट्र में शंकर राव चव्हाण की सरकार थी, शरद पवार उस सरकार में गृह मंत्री थे. आपातकाल के बाद कांग्रेस को हर जगह चुनावों में शिकस्त मिली. महाराष्ट्र भी उससे अछूता नहीं था और नतीजा ये हुआ कि मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण की जगह वसंत दादा पाटिल ने ले ली.
इसी बीच कांग्रेस में टूट हो गई. कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवराज उर्स की अगुवाई में इंदिरा गांधी की कांग्रेस के दो धड़े हो गए. एक तो इंदिरा गांधी की कांग्रेस आई और दूसरा देवराज उर्स की कांग्रेस यू. शंकर राव चव्हाण कांग्रेस यू का हिस्सा बने. मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल भी कांग्रेस यू का ही हिस्सा बने. शरद पवार भी कांग्रेस यू का ही हिस्सा बने. 1978 में जब विधानसभा के चुनाव हुए, तो दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. कांग्रेस आई को 65 सीटें मिली और कांग्रेस यू को 69 सीटें मिली. लेकिन मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सत्ता में न आ सके, इसलिए कांग्रेस आई और कांग्रेस यू ने हाथ मिला लिया.
एक बार फिर से वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री बन गए. कांग्रेस (आई) के नासिकराव तिरपुदे उप मुख्यमंत्री बने. यशवंत राव चव्हाण के कहने पर वसंत दादा पाटिल ने शरद पवार को अपनी कैबिनेट में शामिल कर लिया. उन्हें उद्योग और श्रम मंत्रालय का काम सौंपा गया. लेकिन शरद पवार की सियासी महात्वाकांक्षा कुछ और ही थी. वो मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे और इसके लिए ज़रूरी था उनका बागी होना.
आत्मकथा में पवार ने किया जिक्र
उनकी इस बगावत के पीछे थे चंद्रशेखर, जो तब जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और जिनकी पार्टी की केंद्र में सरकार थी, जिसका नेतृत्व मोराजी देसाई कर रहे थे. शरद पवार अपनी आत्मकथा ऑन माई टर्म्स में लिखते हैं कि अबा साहेब कुलकर्णी ने चंद्रशेखर से बात करने के बाद मुझसे बात की और कहा कि जनता पार्टी के नेता महाराष्ट्र में सरकार बनाने के इच्छुक हैं, लेकिन तुमको इसमें निर्णायक भूमिका निभानी होगी.
चंद्रशेखर का भरोसा मिलने के बाद शरद पवार ने सुशील कुमार शिंदे, दत्ता मेघे और सुन्दर राव सोलंकी के साथ अपना-अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेज दिया. उस वक्त शरद पवार के पास कुल 12 विधायक थे, जिन्हें शरद पवार ने जनता पार्टी के कहने पर तोड़ लिया था. अब शरद पवार बागी हो गए थे और उन्होंने इस बगावत में अपने सियासी गुरु यशवंत राव चव्हाण की भी बात नहीं सुनी थी, जिनसे इंदिरा गांधी ने शरद पवार को मनाने के लिए कहा था. लेकिन शरद पवार नहीं माने.
38 साल की उम्र में बने सीएम
उन्होंने कांग्रेस यू के तो 12 विधायकों को तोड़ा ही तोड़ा, कांग्रेस एस के भी 38 विधायक तोड़ दिए. और फिर एक नई पार्टी का गठन हुआ, जिसे नाम दिया गया समानांतर कांग्रेस. दादासाहेब रुपावते को इस पार्टी का मुखिया बनाया गया. फिर तो समानांतर कांग्रेस, जनता पार्टी और पीजेंट्स एंड वर्क्स पार्टी ने मिलकर मोर्चा बनाया, जिसे नाम दिया गया प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट. खुद जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने मुख्यमंत्री पद के लिए शरद पवार के नाम का ऐलान किया. 18 जुलाई, 1978 को तीन मंत्रियों उत्तम राव पाटिल, निहाल अहमद और सुंदरराव सोलंकी के साथ शरद पवार ने 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
शरद पवार (Sharad Pawar) ने जिन परिस्थितियों में कांग्रेस यू तोड़ी, जिस तरह से कांग्रेस आई तोड़ी और जैसा समर्थन उन्हें जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की ओर से मिला था, अब ठीक वैसा ही वाकया महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने दोहराया है. उन्होंने शिवसेना तोड़ी, महाविकास अघाड़ी सरकार में सेंध लगाई और जैसा समर्थन उन्हें बीजेपी की ओर से मिला, वो शरद पवार की तरह ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन क्या जिस तरह से शरद पवार दो साल से भी कम वक्त तक मुख्यमंत्री रह पाए थे और प्रदेश राष्ट्रपति शासन के हवाले हुआ था. शिंदे (Eknath Shinde) के साथ भी वही वाकया दोहराया जाएगा या फिर शिंदे अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे. ये अब भी भविष्य में है.
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