Row Over Mumbai Shivaji Park: महाराष्ट्र (Maharashtra) में राजनीति का मुंबई के शिवाजी पार्क से क्या लेना-देना है? इतिहासकारों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शिवसेना (Shivsena) की राजनीति का शिवाजी पार्क से बड़ा संबंध है जिसने समय समय पर प्रदेश की सियासी दशा और दिशा तय की है.
भारतीय क्रिकेट के पालने के रूप में लोकप्रिय मुंबई का यह विशाल खेल का मैदान कई सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का आश्रय स्थल भी रहा है जिसने पिछली सदी में राज्य के इतिहास का रूप तय किया. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने बुलंदियों को छूने से पहले इसी मैदान पर चौके और छक्के जड़े थे.
शिवसेना के लिए क्यों जरूरी है शिवाजी मैदान?
शिवसेना के लिए इस मैदान का विशेष महत्व है. शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 56 साल पहले इसी मैदान पर अपनी पहली रैली की थी और उसके बाद हर साल दशहरे पर यह कार्यक्रम होने लगा.
वरिष्ठ शिवसेना नेता सांसद गजानन कीर्तिकर ने कहा कि ठाकरे समय समय पर पार्टी का एजेंडा घोषित करने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर निशाना साधने और अपने समर्थकों के लिए इसी मैदान का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने बताया कि 2012 में जब बाल ठाकरे का निधन हुआ तब इसी मैदान में उनका अंतिम संस्कार किया गया.
शिवसैनिक इस पार्क को शिव तीर्थ कहते हैं जहां अब बाल ठाकरे का स्मारक है. यही वजह है कि शिवाजी पार्क शिवसेना के दो धड़ों के बीच घमासान का नया विषय बन गया. एक धड़े की अगुवाई महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे कर रहे हैं जबकि दूसरे धड़े का नेतृत्व उनके पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे कर रहे हैं. शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे सरकार जून में अपदस्थ हो गई थी और पार्टी के ज्यादातर विधायकों ने शिंदे के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई थी.
शिवसेना को लेकर क्या है विवाद?
तब से दोनों धड़ों के बीच इस बात को लेकर अदालती लड़ाई चल रही है कि किसके पास शिवसेना और उसके संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत का अधिकार है. यह लड़ाई इस महीने की शुरूआत में और तीखी हो गयी जब दोनों ही धड़ों ने शिवाजी पार्क में दशहर रैली करने की ठानी.
कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी होने के डर से बीएमसी ने दोनों खेमों को रैली की इजाजत देने से इनकार कर दिया था लेकिन शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उद्धव ठाकरे खेमे को रैली की अनुमति दे दी. इस फैसले से ठाकरे के समर्थक खुशी से झूम उठे क्योंकि वे असली शिवसेना होने के अपने दावे पर अदालती आदेश को मुहर मान रहे हैं.
क्या कहता है उद्धव गुट?
उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के प्रवक्ता अरविंद सावंत ने कहा, ‘‘ बाल ठाकरे ने पांच दशक तक हर साल शिवाजी पार्क में अपनी दशहरा रैली की. बाद में उद्धव जी ने पार्टी प्रमुख के रूप में हमारा मार्गदर्शन किया. इसलिए (वहां रैली करना) हमारा स्वाभाविक अधिकार है.’’
सावंत ने कहा कि निधन से पूर्व बीमार बाल ठाकरे अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से बेटे उद्धव एवं पोते आदित्य का समर्थन करने की अपील करने के लिए डिजिटल तरीके से रैली को संबोधित करते थे. इस मैदान और आवासीय क्षेत्र का अपना एक इतिहास है.
राजनीति का केंद्र क्यों बन गया शिवाजी पार्क?
अरविंद सावंत ने लिखा है कि समुद्र तट के किनारे स्थित इस पार्क को जनता के लिए 1925 में खोला गया था. इसे पहले माहिम पार्क कहा जाता था और 1927 में छत्रपति शिवाजी महाराज की 300वीं जयंती के अवसर पर लोगों की मांग पर इसका नाम शिवाजी पार्क रख दिया गया था.
इसके बाद से यह पार्क महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है जिसमें संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन भी शामिल है. इस आंदोलन के जरिये ही 1960 में महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई थी. बाद में शिवाजी पार्क शिवसेना की राजनीति का केंद्र बन गया.
कीर्तिकर ने पीटीआई-भाषा से कहा कि इस स्थान से शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे पार्टी का एजेंडा घोषित करते थे जैसे कि मराठी मानुष, हिंदुत्व और विविध विषयों पर पार्टी का रुख. उन्होंने कहा कि यहीं से वह विरोधियों तथा राज्य एवं केंद्र सरकारों पर भी तीखे हमले करते थे.
उन्होंने कहा कि पार्क के पास ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर का एक स्मारक भी है. सावरकर उसी क्षेत्र में एक बंगले में रहते थे. ठाकरे परिवार बांद्रा स्थित ‘मातोश्री’ बंगले से पहले उसी क्षेत्र में रहता था और पार्टी मुख्यालय ‘सेना भवन’ पार्क के पास ही है.
क्या बोले महाराष्ट्र के पूर्व सीएम मनोहर जोशी?
वरिष्ठ शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने अपनी पुस्तक “शिवसेना- कल आज और कल” में उल्लेख किया है कि शिवाजी पार्क में पार्टी की सबसे पहली रैली कैसे आयोजित हुई थी. बाल ठाकरे एक कार्टून पत्रिका का संपादन करते थे जिसका नाम था ‘मार्मिक.’
इस पत्रिका ने 23 अक्टूबर 1966 को एक नोट प्रकाशित किया कि बुराई पर अच्छाई की जीत की याद में हिंदुओं का त्यौहार मनाने के लिए 30 अक्टूबर को शाम साढ़े पांच बजे शिवाजी पार्क में एक रैली आयोजित होगी.
ठाकरे पहले से ही अपनी कलम और कूची (ब्रश) से उन समस्याओं को रेखांकित करते रहे थे, जिन्हें वह मुंबई के मूल निवासियों पर किये गए अन्याय के तौर पर देखते थे. कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि रैली किसी ऑडिटोरियम में आयोजित की जाए क्योंकि कितने लोग आएंगे, इसका अंदाजा नहीं था.
क्या कहते हैं पत्रकार?
मराठी पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने शिवसेना के इतिहास पर लिखी पुस्तक में कहा है कि बाल ठाकरे को भी लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया का अंदाजा नहीं था क्योंकि वह केवल एक कार्टूनिस्ट और पत्रिका के संपादक थे. उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थे.
अकोलकर ने कहा कि तमाम आशंकाओं के विपरीत शिवाजी पार्क में आयोजित रैली सफल रही और बाल ठाकरे ने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. शिवसेना नेता और मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडनेकर का कहना है कि दशहरा अब पार्टी की परंपरा बन चुकी है.
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