Uddhav Thackeray Weak Sena Side Effects: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लगभग 20 महीने बाद होगा और उससे पहले 2024 का लोकसभा चुनाव है. BMC चुनाव भी कभी भी हो सकता है. ये तीन चुनाव सूबे की सियायत के लिए अहम हैं और राजनीतिक पार्टियों के टारगेट इन्हीं के इर्द-गिर्द सेट हैं. ऐसे में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद अस्तित्व में आए महाविकास अघाड़ी गठबंधन (Uddhav Thackeray+Sharad Pawar+Congress) के लिए चुनौती बड़ी है क्योंकि शिवसेना (Shiv Sena) का नाम और निशान शिंदे खेमे में जाने के बाद उद्धव ठाकरे की सेना के और कमजोर हो जाने का संकट खड़ा हो गया है. उद्धव के बचे-खुचे विधायकों और सांसदों के लिए शिंदे धड़े में जाने का विकल्प भी बना हुआ है. 


चूंकि उद्धव खेमे को अपनी खोई सियासी जमीन वापस पाने का भी संघर्ष करना है, ऐसे हालात में उद्धव की कमजोर सेना पवार (एनसीपीपी प्रमुख शरद पवार) की पावर घटा सकती है और हाथ (कांग्रेस) को भी यह भारी पड़ सकता है.


बता दें कि पवार की गिनती ऐसे दिग्गज सियासतदां में होती है जो राजनीति की हवा का रुख पहचानते हैं और जनता के मिजाज को बखूबी भांपकर प्रभावित करने वाले फैसले ले सकते हैं. वहीं, कांग्रेस को फर्क इसलिए पड़ेगा क्योंकि गठबंधन में वह भी शामिल है. आखिर कैसे, आइए विस्तार से समझते हैं.


महाराष्ट्र का सियासी गणित


2019 के विधानसभा चुनाव के बाद, महाराष्ट्र की राजनीति से बीजेपी को एक्जिट कराने के लिए जब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एक साथ आईं तो सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत का आंकड़ा पार कर गया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए. 288 सदस्यीय वाली महाराष्ट्र विधानसभा के लिए बहुमत का आंकड़ा 145 सीटों का है. शिवसेना अपने साथ 56, एनसीपी 54 और कांग्रेस 44 सीटें लाई थी. तीनों को मिलाकर सीटों की संख्या 154 हो गई जो बहुमत के आंकड़े से ज्यादा थीं.


तीनों पार्टियों के साथ आने का मतलब एक 'मजबूत वोटशेयर' भी था. शिवसेना के पास 16.41 फीसदी, एनसीपी के पास 16.7 फीसदी और कांग्रेस के पास 15.87 फीसदी वोटशेयर था जो मिलाकर 48.99 फीसदी होता है.


अनुमान बताते हैं कि कोई भी गठबंधन जो 40 फीसदी वोट शेयर को पार कर जाता है, राज्य में सरकार बनाने में हमेशा बढ़त रखता है. एक विभाजित शिवसेना का मतलब है कि इसका वोट शेयर भी बंटेगा.


वहीं, कांग्रेस और एनसीपी को मिलाकर उनके पास अभी 32.58 फीसदी वोट शेयर है. ऐसे में कांग्रेस और एनसीपी के सामने शिवसेना की फूट से उपजे वोट शेयर घाटे को सही करने की चुनौती है.


एमवीए की चुनौतियां चौतरफा


वहीं, अब तक 56 विधायकों में से 40 और 18 सांसदों में से 12 शिंदे धड़े में जा चुके हैं. कम होते विधायकों और सांसदों की संख्या भी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकर) के चुनावी आधार पर बुरा असर डाल सकती है और कमजोर उद्धव सेना का मतलब है कमजोर एमवीए (MVA).


दूसरी तरफ, एकनाथ शिंदे की पार्टी का निर्माण महाविकास अघाड़ी को खत्म करने की बीजेपी की जरूरत थी. महाविकास विकास अघाड़ी का किला जितना कमजोर होगा, सूबे की सत्ता में बीजेपी की पकड़ उतनी मजबूत होगी.


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी हाल की तीन दिवसीय महाराष्ट्र यात्रा के दौरान प्रदेश बीजेपी को लक्ष्य दिया है कि वो 2024 के चुनावों के लिए 50 फीसदी वोट शेयर जुटाने पर काम करें. जाहिर है कि इस तरह के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी को पहले एमवीए के वोट बैंक में सेंध लगानी होगी. जाहिर है एमवीए में शामिल एनसीपी और कांग्रेस के लिए चुनौतियां चौतरफा हैं और कमजोर उद्धव सेना किले के बचाव में कितना लड़ पाएगी, यह देखना होगा. 


यह भी पढ़ें- Shinde Vs Thackeray: उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट को जारी किया नोटिस, जानें आज SC में किसने क्या दलीलें दी?