Maharashtra Politics: क्यों नहीं हो रहा महाराष्ट्र कैबिनेट का विस्तार? शिंदे-फडणवीस के सामने हैं कौन सी चुनौतियां
Maharashtra Cabinet Expansion News: महाराष्ट्र कैबिनेट के पहले विस्तार में 18 विधायकों को शामिल किया था. जिसमें से 9 बीजेपी के थे और 9 शिवसेना से थे. मंत्रिमंडल के बाकी पद एक साल से खाली हैं.
Maharashtra Cabinet Expansion: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार को आगामी 30 जून को एक साल पूरा हो जाएगा. दोनों दिग्गज नेताओं के सामने अब 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में परिणाम देने का एक कठिन काम है. आगामी चुनावों को लेकर राजनीतिक रणनीतियां बनाने का काम शुरू हो गया है. इसमें चुनाव-पूर्व गठजोड़ करना, सीटों के बंटवारे का फॉर्मूले, अभियान और जनसंपर्क जैसी प्रक्रियाएं चल रही हैं.
इन सबके बीच महाराष्ट्र मंत्रिमंडल विस्तार का मुद्दा दोनों वरिष्ठ नेताओं के सामने चुनौती पेश कर रहा है, लेकिन सवाल ये है कि शिंदे और फडणवीस को लगभग एक साल से कैबिनेट विस्तार करने से क्या रोक रहा है? शिंदे और फडणवीस ने क्रमश: सीएम और डिप्टी सीएम के रूप में शपथ लेने के बाद, लगभग 41 दिनों तक अकेले सरकार चलाई थी. पहले कैबिनेट विस्तार में उन्होंने 18 विधायकों को शामिल किया था जिसमें से 9 बीजेपी के थे और 9 शिवसेना से थे.
मंत्रिपरिषद में 23 पद हैं खाली
इसके साथ ही, सीएम और डिप्टी सीएम सहित राज्य मंत्रिमंडल की कुल संख्या 20 हो गई थी. राज्य कैबिनेट में 43 मंत्री हो सकते हैं जिसका मतलब है कि पिछले एक साल से मंत्रिपरिषद में 23 पद खाली हैं. फडणवीस ने कई बार कहा है कि वे मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहते हैं और ये उचित समय पर किया जाएगा. उन्होंने सोमवार को फिर दोहराया कि राज्य में जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार किया जाएगा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे तय करेंगे कि यह कब होगा. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और बीजेपी सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगी.
क्यों नहीं कर रहे कैबिनेट का विस्तार?
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उम्मीदवारों की संख्या कोटे से ज्यादा होने के कारण, शिंदे और फडणवीस ने सावधानी से चलने का फैसला लिया. पार्टी के नेताओं ने कहा है कि अगले कैबिनेट विस्तार को रोकने का उद्देश्य एक आंतरिक कलह से बचना था जिसमें नवगठित सरकार को अस्थिर करने की क्षमता है. इसके अलावा शिंदे और फडणवीस ने अपने-अपने दलों के भीतर दरार से बचने के लिए उम्मीदवारों की आशा को जीवित रखने की भी एक रणनीति बनाई.
शिंदे गुट में क्या बात हुई?
शिंदे गुट में 40 विधायक हैं जो बागी हो गए थे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी को छोड़कर शिंदे के साथ आ गए थे. इनके अलावा शिंदे गुट में निर्दलीय भी हैं. हालांकि, शिंदे सभी विधायकों को मंत्री नहीं बना सकते हैं और उनमें से अधिकांश मंत्री पद से कम कुछ नहीं चाहते हैं. कई मौकों पर, विधायक संजय शिरसाट और भरत गोगावाले ने कहा है कि हमें अगले कैबिनेट विस्तार में मंत्री पद का वादा किया गया है.
कई बार ये विधायक नाराजगी भी जता चुके हैं. शिंदे खेमे के एक सूत्र ने खुलासा किया कि एक साल तक हमें ये समझा दिया गया कि हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक इंतजार करना चाहिए, क्योंकि अदालत का फैसला सरकार के बने रहने के लिए महत्वपूर्ण था. अब हमें बताया गया है कि कोर्ट ने 16 विधायकों की अयोग्यता, मुख्य सचेतक की वैधता और शिवसेना पार्टी के दर्जा का फैसला विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को सौंप दिया है. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 11 मई को आया था.
फडणवीस का विधायकों को इशारा
बीजेपी की बात करें तो देवेंद्र फडणवीस ने पिछले महीने पुणे में हुई बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में कार्यकर्ताओं, विधायकों और पदाधिकारियों से संगठन के प्रति निस्वार्थ भाव से काम करने को कहा था. उन्होंने कहा था कि किसी पद की इच्छा मत करो. त्याग और निःस्वार्थ सेवा का ध्यान रखें, अपना एक साल पार्टी को समर्पित करें. उस बयान के साथ, फडणवीस का उद्देश्य विधायकों को यह संदेश देना था कि उन्हें कैबिनेट बर्थ के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए.
बीजेपी बड़ी पार्टी, लेकिन मंत्री पद कम!
इस गठबंधन में बड़ी पार्टी होने के बावजूद 105 विधायकों वाली बीजेपी को सिर्फ नौ मंत्री पदों पर संतोष करना पड़ा और 50 विधायकों के समर्थन वाले शिंदे को पहले कैबिनेट विस्तार में नौ मंत्री भी मिले. बीजेपी नेता राज्य मंत्रिमंडल में शिवसेना (शिंदे) की तुलना में अधिक प्रतिनिधित्व मिलने की बात कहते रहे हैं. उनका तर्क है कि बीजेपी को दो-तिहाई पद मिलना चाहिए और शिंदे खेमे को एक-तिहाई पद दिया जाए.
महाराष्ट्र में अगले साल चुनाव भी होने हैं. लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2024 के लिए निर्धारित हैं तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नवंबर में होने की संभावना है. जब शिंदे और फडणवीस ने पिछले साल राज्य की बागडोर संभाली तो उन्हें पता था कि इन महत्वपूर्ण चुनावों से पहले उनके पास सिर्फ ढाई साल बचे हैं. अब एक साल के बाद, ऐसा लगता है कि दोनों नेता चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसका कारण मंत्रियों की कमजोर और अधूरी परिषद है. साथ ही विपक्ष भी लगातार इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार पर निशाना साध रहा है.
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