नई दिल्ली: वक्त अपनी चाल से चलता है. यह कोई नहीं जानता कि कब वक्त कौन सी करवट लेगा. यह कहने में कोई दो राय नहीं है कि इंसान वक्त का गुलाम है. कहा जाता है कि जब वक्त अपनी करवट बदलता है तो राजा को फकीर और फकीर राजा बन जाता है.


सोमनाथ गिराम की कहानी भी वक्त के इस बदलते करवट की निशानी है. सोमनाथ चाय बेचा करते थे, लेकिन वेे सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने चार्टर्ड एकाउंस की परीक्षा को पास की. सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सोमनाथ को साल 2016 में महाराष्ट्र सरकार की स्कीम कमाओ और सीखो का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया. अपनी जिंदगी की इस बेहतरीन दौर से गुजर रहे सोमनाथ के जीवन में एक बुरा हादसा हुआ और सबकुछ बदल गया.


8 सितंबर 2016 को सोलापुर में सोमनाथ का एक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण उनके कमर के नीचे का भाग लकवाग्रस्त हो गया. तमाम तरह के इलाज के बावजूद सोमनाथ चलने फिरने में असमर्थ हैं. एक किसान पिता के बेटे सोमनाथ की जिंदगी अब चंदे के सहारे चल रही है. उनके इलाज के लिए हर महीने 35,000 रुपये का खर्च आता है.


दुर्घटना के दौरान सोमनाथ की हालत को देखते हए राज्य सरकार ने ट्रीटमेंट पर होने वाले पूरे खर्च को वहन करने का फैसला किया, लेकिन सोमनाथ का आरोप है कि सरकार उन्हें भूल गई है. अपने आने वाले भविष्य के बारे में सोमनाथ कहते हैं, ''कई लोग मेरे खर्च को लेकर मदद के लिए आगे आए..लेकिन मेरी रोजी-रोटी का क्या?.''


पूरा दिन अकेले कमरे में गुजारने वाले सोमनाथ का कहना है, ''मुझे सरकारी नौकरी की जरूरत है..लेकिन कोई भी सरकारी अधिकारी आगे नहीं आया..मेरे माता-पिता अनपढ़ हैं और मैं बिस्तर पर पड़ा हूं.''