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शरद पवार: भारतीय राजनीति का वो चेहरा जिसने बगावतों के दम पर बनाया अपना राजनीतिक मुकाम

Sharad Pawar Politicial Journey: कांग्रेस के 40 विधायकों को अपने पाले में लाकर सरकार गिराने और खुद मुख्यमंत्री बन जाने वाले शरद पवार का सियासी सफर काफी दिलचस्प रहा. वे तीन बार राज्य के सीएम बने.

Sharad Pawar Politicial History: एनसीपी प्रमुख शरद पवार के इस्तीफे के बाद उनके राजनीतिक विरासत को लेकर कयासों का बाजार गर्म था. लोग उनकी बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजित पवार में से किसी एक को राष्ट्रवादी कांग्रेस के उत्तराधिकारी के रूप में देख रहे थे. 

राजनीति में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि शरद पवार की राजनीतिक तौर तरीकों को किसने सबसे ज्यादा आत्मसात किया है तो निश्चित तौर पर अधिकांश लोग अजित पवार या सुप्रिया सुले का नाम लेंगे. हालांकि बारीकी से देखने पर समझ आएगा कि शरद पवार की राजनीति के फार्मूले को सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आत्मसात किया है.

शरद पवार के पदचिन्हों पर चले एकनाथ शिंदे!
वर्तमान समय में एक दूसरे के विरोधी, एकनाथ शिंदे और शरद पवार में साम्यता ढूंढना लोगों को अजीब लग सकता है. शरद पवार और एकनाथ शिंदे के राजनीतिक विचारधारा को परे रखते हुए, शरद पवार के राजनीतिक जीवन के शुरुआती समय को देखें और महाराष्ट्र की राजनीति में एकनाथ शिंदे के अप्रत्याशित उदय को देखें तो स्पष्टता से यह बात उभर कर आती है कि विरोधी दल में होते हुए भी एकनाथ शिंदे, शरद पवार के पदचिन्हों पर चल रहे हैं.

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि साल 2022 में जिस तरह से शिवसेना नेतृत्व से बगावत करके एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल करते हुए मुख्यमंत्री का पद प्राप्त किया, यह बिल्कुल ऐसा ही था जैसे 1978 में शरद पवार अपनी पार्टी और मुख्यमंत्री से बगावत करके खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे.

40 विधायकों को अपने पाले में लेकर सरकार गिराई
1977 में आपातकाल की समाप्ति की घोषणा और लोकसभा चुनाव के साथ महाराष्ट्र में भी विधानसभा के चुनाव हुए. इस चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो चुका था और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (आर) ने अलग-अलग हिस्सा लिया था. नवगठित जनता पार्टी इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई थी.

चुनाव के बाद जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने एक होकर सरकार बनाई. इस सरकार में शरद पवार भी मंत्री बनाए गए. लेकिन एक साल भी नहीं हुआ था कि शरद पवार ने 40 विधायकों को अपने पाले में लेकर सरकार गिरा दी और फिर केंद्र में सत्तारूढ़ जनता पार्टी के समर्थन से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन बैठे. इस तरह शरद पवार 38 साल की उम्र महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने जो अभी भी एक रिकॉर्ड है.

2022 में एकनाथ शिंदे ने दोहराया इतिहास
इसके बाद अपने राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव के साथ चार बार राज्य के मुख्यमंत्री और दो बार केंद्रीय मंत्री बनने में सफल रहे. अपनी पार्टी और अपनी सरकार से बगावत करके खुद मुख्यमंत्री बनना भारतीय राजनीति में यह शायद यह पहली बार था और इस सफल प्रयोग का अनुसरण करने का असफल प्रयास उनके भतीजे अजित पवार ने 2019 में किया, लेकिन तीन साल बाद 2022 में 1978 का इतिहास दोहराते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करके एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे. 

जब शरद पवार ने चुनी इंदिरा गांधी से अलग राह
छात्र राजनीति से अपनी यात्रा शुरू करने वाले शरद पवार ने गोवा मुक्ति आंदोलन में भी हिस्सा लिया था. उसी दौरान उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन किया और 1966 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार 27 साल के उम्र में राज्य विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे और तब से लगातार उन्होंने राज्य और पार्टी में अपने प्रभाव का विस्तार किया. यह वो समय था कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी और बुजुर्ग सिंडिकेट नेताओं में शक्ति संघर्ष चल रहा था और कांग्रेस में दो फाड़ हो चुके थे.

उस वक्त शरद पवार इंदिरा गांधी के साथ न जाकर अपने राजनीतिक गुरु यशवंत राव चव्हाण के साथ कांग्रेस(आर) के साथ हो लिए. लेकिन कुछ ही समय बाद कांग्रेस(आर) से बगावत करके कांग्रेस सोशलिस्ट की स्थापना की और जनता पार्टी की मदद से मुख्यमंत्री बने. 

तीन बार बने मुख्यमंत्री
1980 में जब केंद्र के सत्ता में एक बार फिर इंदिरा गांधी आसीन हुईं तो उन्होंने शरद पवार की दो साल पुरानी सरकार बर्खास्त कर दी और अब शरद पवार विपक्ष में आ गए. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार कांग्रेस की लहर के बीच लोकसभा पहुंचने में सफल रहे. प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उन्होंने अच्छा संबंध स्थापित किया जिसके चलते राजीव गांधी ने उनकी कांग्रेस में फिर से वापसी कराई और दूसरी बार 1988 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनाए गए.

इस बार उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया. इस दौरान उन्होंने केंद्र की राजनीति में स्वयं को स्थापित करने का प्रयास किया. जब 1990 में राजीव गांधी की मृत्यु हुई तो अगले प्रधानमंत्री के रूप में अपना मजबूत दावा पेश किया, लेकिन बाद में रक्षा मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने शरद पवार को केंद्र में अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा और इसी कारण पवार को एक बार फिर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना कर केंद्र की राजनीति से दूर कर दिया गया.

बगावत करने के बाद दोबारा हुए कांग्रेस में शामिल
नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल पूरा होने के साथ ही कांग्रेस पार्टी सोनिया गांधी का दखल बढ़ता जा रहा था. 1999 में जब सोनिया गांधी को आधिकारिक रूप से कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का निर्णय हो रहा तब एक बार फिर शरद पवार ने विद्रोह कर दिया. पीए संगमा और तारिक अनवर को साथ लेकर उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को आकार दिया. इसी समय राज्य में विधानसभा के चुनाव होने थे, उक्त चुनाव में भी किसी को बहुमत नहीं मिल सका और एक बार फिर शरद पवार उसी कांग्रेस पार्टी के साथ सरकार में शामिल हो गए जिसके साथ अभी हाल में ही बगावत की थी.

2004 में संभाला कृषि मंत्रालय का पद
राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना के बाद शरद पवार के राजनीतिक जीवन में एक प्रकार से निरंतरता आने लगी. 1999 से 2004 तक महाराष्ट्र में कांग्रेस के सहयोग से सरकार चलाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के बैनर तले 2004 लोकसभा का चुनाव लड़ा और आपसी सहयोग से केंद्र में सरकार बनाई, शरद पवार इस सरकार में कृषि मंत्री बने.

कृषि मंत्री के रूप में 2008 में लिया गया कृषक लोन माफी का फैसला व्यापक प्रभाव और चर्चा का विषय रहा. कृषि मंत्री के रूप में शरद पवार का कार्यकाल 2009 में आम चुनाव के बाद भी जारी रहा. इस दौरान उनपर विदेशी खाद्य निर्यातकों को अनुचित लाभ पहुंचाने का भी आरोप लगा साथ ही किसानों की आत्महत्या के कारण आलोचकों के निशाने पर आए.

शिवसेना और कांग्रेस को एक साथ लाए पवार
2014 में केंद में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद शरद पवार की राजनीतिक चमक फीकी पड़ने लगी थी लेकिन 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद राज्य में आए राजनीतिक संकट के बीच शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस पार्टी को एक मंच पर लाकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार गठित करके अपने राजनीतिक कौशल को पुनः एक बार प्रमाणित किया.

BCCI अध्यक्ष के रूप में निभाई निर्णायक भूमिका
एक राजनेता के साथ साथ शरद पवार ने एक क्रिकेट प्रशासक के रूप में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई. यूपीए सरकार में भागीदारी के दौरान उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में भी अपना वर्चस्व स्थापित किया. बीसीसीआई के अध्यक्ष के साथ-साथ आईसीसी चेयरमैन के रूप में भी शरद पवार ने लंबे समय तक कार्य किया. उनके ही कार्यकाल में विश्व क्रिकेट को बदल कर रख देने वाले इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत हुई.

महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह हैं शरद पवार
60 साल से अधिक समय तक भारतीय राजनीति में सक्रिय रहने वाले  इस दिग्गज नेता को 2017 में भारत सरकार की ओर देश का द्वितीय सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. आज देश में भगवा दल के वर्चस्व के बाद भी शरद पवार धर्मनिरपेक्ष राजनीति के एक मजबूत स्तम्भ बने हुए हैं. एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा और पुनः पद ग्रहण के  दौरान बना माहौल यही साबित करता है कि शरद पवार अभी भी महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह हैं.

ये भी पढ़ें: Maharashtra Politics: 'एक दिन एकनाथ और मैं पीसी करेंगे और बताएंगे कि उद्धव मातोश्री से क्या खेल करते हैं', केंद्रीय मंत्री नारायण राणे

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