महाराष्ट्र: बेमेल शादी आख़िर कब तक चल पायेगी ?
बिहार और यूपी के पूर्वांचल में एक मशहूर कहावत है - हड़बड़ी में ब्याह, कनपटी में सिंदूर .. राजनीतिक अखाड़े में शरद पवार ने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में न बीजेपी हारी और न ही शिव सेना की जीत हुई. सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भले ही मुख्य मंत्री बन जायेंगे. लेकिन ये जीत सिर्फ़ और सिर्फ़ शरद पवार की है. जिन्हें महाराष्ट्र में सब पवार साहेब कहते हैं . उन्हें यूं ही राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता है. चाणक्य नीति कहती है दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. बस पवार ने बीजेपी के नए नवेले शत्रु को अपना साथी बना लिया. बीजेपी ने पवार के घर के विभीषण अजित पवार को तोड़ कर सरकार बना ली. चुपके चुपके देवेन्द्र फडणवीस ने राज भवन में सीएम की शपथ ले ली. तो ऐसा लगा कि बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने बाज़ी मार ली. लेकिन मराठा के चाणक्य ने सूझ बूझ से बीजेपी का गेम ख़राब कर दिया. फ़्लोर टेस्ट पर जाने से पहले ही बीजेपी मैदान छोड़ कर भाग गई. सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा शरद पवार चाहते थे.
बिहार और यूपी के पूर्वांचल में एक मशहूर कहावत है - हड़बड़ी में ब्याह, कनपटी में सिंदूर .. राजनीतिक अखाड़े में शरद पवार ने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया. पवार साहेब पावर गेम के पुराने खिलाड़ी हैं .वो कहते हैं न कि बाप आख़िर बाप होता है. इसी फ़ार्मूले पर शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार को पटकनी दी. सबसे पहले उन्होंने एनसीपी के विधायकों को समेटना शुरू किया. कुछ ही घंटों में पार्टी के अधिकतर विधायक पवार के कैंप में आ गए. बीजेपी के बड़े नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय अजित के साथ राज भवन चले गए थे. शरद पवार से मिल कर उन्होंने माफ़ी मांग ली. धनंजय पर शरद पवार का बड़ा उपकार रहा है. पवार साहेब ने ही उन्हें एमएलसी बना कर विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनवाया था. फिर पंकजा मुंडे के ख़िलाफ़ टिकट दिया और चुनाव में जीत भी दिलवाई.
फिर चाचा शरद पवार ने भतीजे अजीत पवार पर ऑपरेशन शुरू किया. अजित पवार जितने साल के हैं उतना तो पवार साहेब का राजनैतिक अनुभव रहा है. उन्होंने एनसीपी के नेताओं पर भतीजे के ख़िलाफ़ एक शब्द भी बोलने पर रोक लगा दी. सब अजित को अजित दादा ही कहते और बोलते रहे. यही बताया और समझाया गया कि ये पवार साहेब के घर का मामला है, उसे वहीं सुलझाएंगे. कांग्रेस भी इसी लाईन पर चलती रही. सोनिया गांधी ने महाराष्ट्र में पार्टी की कमान बड़े पवार को सौंप दी.
इस बीच शरद पवार दो मोर्चों पर काम करते रहे. अपने गठबंधन के विधायकों को वे एकजुट करते रहे. उन्हें भरोसा दिलाते रहे - हर हाल में सरकार अपनी बनेगी. माइंड गेम में पवार साहेब का जवाब नहीं. वे क़ानूनी लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. एक एक कर उन्होंने सबसे पहले अजित पवार के एक एक समर्थक विधायक तोड़े. फिर परिवार के सदस्यों से भतीजे पर दबाव बनाना शुरू किया. इस मामले में उन्होंने चाणक्य की तरह सारे कार्ड खेले. साम, दाम, दंड और भेद . सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से नया मोड़ आ गया. पवार का पूरा परिवार अजित को मनाने और समझाने में जुटा था. लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद पवार साहेब कठोर हो गए. उन्होंने दो टूक कह दिया- या तो इस्तीफ़ा दें या फिर तुम्हारा गेम ख़त्म. इस संदेश के कुछ ही घंटों बाद अजीत पवार ने डिप्टी सीएम के पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
करीब 50 सालों से महाराष्ट्र की राजनीति को जीने वाले शरद पवार ने फिर कमाल कर दिया. उन्होंने मीडिया का भी इस्तेमाल किया. राज भवन का मौक़ा नहीं मिला. तो मुंबई के एक होटल में ही अपने विधायकों की परेड करा दी. ये बताया गया कि 162 विधायकों का समर्थन उनके गठबंधन को है. यहीं से गेम पलटने लगा. देश भर में ये चर्चा होने लगी कि बहुमत तो पवार साहेब के पास है. बीजेपी ज़बरदस्ती जोड़ तोड़ में लगी है. बीजेपी के रणनीतिकारों का आपरेशन कमल काम नहीं आया. सब हवा हवाई साबित हुआ. पवार साहेब के कैंप में बीजेपी सेंध नहीं लगा पाई. बाज़ी पलटती देख देवेन्द्र फडणवीस ने भी कुर्सी छोड़ दी.
महाराष्ट्र में जब विधानसभा चुनाव शुरू हुए . तब शरद पवार एक कमजोर नेता लग रहे थे. शरीर से भी और राजनैतिक रूप से भी. लेकिन उठ कर खड़े होना ही पवार की राजनीति रही है. जैसे ही ईडी के एक केस में उनका नाम आया. उन्होंने बिन बुलाए ही पूछताछ के लिए मुंबई के ईडी आफ़िस जाने का एलान कर दिया. पुलिस कमिश्नर के समझाने बुझाने पर वे माने. ईडी ऑफिस नहीं गए. यहीं से पवार साहेब का चुनाव खड़ा हो गया. उनकी पार्टी एनसीपी के कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन पवार चुनाव प्रचार में जुटे रहे. बारिश में भींग कर भाषण देते हुए उनकी तस्वीर सोशल मीडिया में खूब वायरल हुई. पवार साहेब विक्रम बन कर कांग्रेस को भी बेताल की तरह ढोते रहे. उन्होंने एलान कर छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयन राजे भोंसले को चुनाव हरवा दिया. वे सतारा से लोकसभा का उपचुनाव लड़ रहे थे. एनसीपी के टिकट पर जीतने के बाद चुनाव से पहले वे बीजेपी में शामिल हो गए थे.
सबसे आख़िर में बात सबसे ज़रूरी. विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना की ज़िद के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनाने पर पेंच फंस गया था. तब शरद पवार ने अमित शाह को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था सरकार बनाने वाले रणनीतिकारों को मैं न्यौता देता हूं. इस युद्ध में पवार विजयी रहे. लेकिन अब सवाल यही है कि बेमेल शादी आख़िर कब तक चल पायेगी ? शिवसेना और एनसीपी का संबंध वही है जैसे यूपी में बीएसपी और समाजवादी पार्टी का.