Maharashtra: 'मेरे माइंडगेम के सामने शिवसेना जाल में फंस गई', NCP सुप्रीमो शरद पवार का दावा
Maharashtra News: एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके माइंडगेम के सामने शिवसेना जाल में फस गई.
Maharashtra: एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के दौरान बड़े खुलासे किए हैं. शरद पवार ने दावे के साथ कहा कि, उनके माइंडगेम के सामने शिवसेना एनसीपी के जाल में फंस गई. इतना ही नहीं शरद पवार ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनसीपी के साथ गठबंधन चाहते थे जिसे उन्होंने नकार दिया. उन्होंने कहा कि 2019 विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी उनकी पार्टी एनसीपी के साथ गठबंधन करना चाहती थी लेकिन वह इसके पक्ष में नहीं थे.
पवार के गुगली में फंसी शिवसेना?
शरद पवार ने कहा कि, “यह सच है कि हमारे दोनों दलों के बीच (NCP व BJP) गठबंधन के बारे में चर्चा हुई थी. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें इसके बारे में सोचना चाहिए. हालांकि, मैंने उनसे उनके कार्यालय में ही कहा था कि यह संभव नहीं है और मैं उन्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहूंगा." पवार ने कहा कि उन्होंने 'शरारती' बयान दिया था कि NCP, बीजेपी को समर्थन देने पर गंभीरता से विचार कर रही है. उन्होंने कहा, "इससे शायद शिवसेना के मन में संदेह पैदा हो गया जिससे कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन के लिए कदम बढ़ाया,"
सवाल- क्या भतीजे अजीत पवार को पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए भेजा था?
जवाब- “अगर मैंने अजीत पवार को बीजेपी में भेजा होता तो मैंने अधूरा काम नहीं किया. बीजेपी ने एनसीपी के साथ गठजोड़ पर विचार किया होगा क्योंकि उस समय उनकी पार्टी NCP और कांग्रेस के बीच संबंध तनावपूर्ण थे. "क्योंकि हम साथ नहीं चल रहे थे इसलिए बीजेपी ने हमारे साथ गठबंधन के बारे में सोचा होगा"
सवाल- क्यों किया शिवसेना का समर्थन?
शरद पवार ने कहा- उद्धव ठाकरे ने एक अलग रुख अपनाया क्योंकि उनके और बीजेपी के बीच जो फैसला किया गया था उसे लागू नहीं किया जा रहा था.” पवार ने कहा, NCP ने दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के लिए शिवसेना का समर्थन किया जिसे उन्होंने एक मित्र के रूप में वर्णित किया.
सवाल- यूपी विधानसभा चुनाव पर शरद पवार
शरद पवार ने कहा, "यह 50-50 है. कोई स्पष्ट विजेता नहीं है. जिस तरह से प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश गए और कई परियोजनाओं की घोषणा की उससे पता चलता है कि पार्टी (बीजेपी) ने राज्य में स्थिति को गंभीरता से लिया है. पवार के अनुसार, यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के चुनावी फैसले राष्ट्रीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं." मोदी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़कर सही काम किया. उनके फैसले के कारण, उत्तर प्रदेश के लोग उनके पीछे खड़े हो गए. मैंने कुल 14 चुनाव लड़े, जिनमें से सात लोकसभा चुनाव थे, लेकिन मैंने कभी भी राज्य के बाहर चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोचा था.
प्रधानमंत्री मोदी को तारीफ
पवार ने कहा, "पीएम मोदी बहुत मेहनत करने और समय देने के लिए तैयार हैं. वह कार्य को अपने नतीज़े तक ले जाने में विश्वास करते हैं. प्रशासन पर बहुत ध्यान देते हैं. फिर भी अगर आम जनता की समस्याओं का समाधान नहीं किया तो असर नहीं दिखेगा. वह नीतिगत फैसलों के मजबूत क्रियान्वयन में विश्वास रखते हैं और अपनी सरकार को आगे ले जाने की उनकी अपनी शैली है. उन्होंने कहा कि "जब हम मिलते हैं, तो मैं अपने नेताओं के खिलाफ ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की कार्रवाई जैसे राज्य के मुद्दों पर कभी चर्चा नहीं करता." गौरतलब है कि अनिल देशमुख पर ED कार्यवाई को बदले की राजनीति बताया.
नरेंद्र मोदी और मनमोहन सिंह में अंतर
पवार ने कहा कि वो खुद और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह "बदले की राजनीति" के खिलाफ थे. तत्कालीन यूपीए सरकार के कुछ कैबिनेट सहयोगी मोदी के खिलाफ थे. जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा, "यह आंशिक रूप से सच है कि मनमोहन सिंह और मैं एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के खिलाफ बदले की राजनीति में शामिल होने के खिलाफ थे.
हालांकि कुछ कैबिनेट सहयोगियों ने इस तरह की कार्रवाई का समर्थन किया था. "यह ध्यान में लाते हुए कि मोदी, उस समय, "मनमोहन सिंह सरकार के गंभीर आलोचक थे", पवार ने कहा "इससे दिल्ली और गुजरात के बीच की दूरी बढ़ गई. मेरे अलावा और कोई नहीं था जो मोदी से बातचीत के लिए तैयार था. उनके अनुसार, मनमोहन सिंह ने "मेरे तर्कों को स्वीकार कर लिया कि हमें राज्य के विकास के रास्ते में राजनीतिक मतभेदों को नहीं आने देना चाहिए"
कांग्रेस से अलग होकर NCP बनाने पर
सवाल- क्या उन्हें 1999 से पहले राकांपा का गठन करना चाहिए था?
पवार ने कहा "हालांकि मेरे परिवार का राजनीतिक झुकाव वामपंथी था, मैं गांधी, नेहरू और यशवंतराव चव्हाण की विचारधारा से प्रेरित था. मुझे कांग्रेस ने छह साल के लिए निलंबित कर दिया था क्योंकि मैंने पार्टी की बैठक में अपने विचार खुलकर व्यक्त किए थे. उसके बाद, मेरे पास अपने समर्थकों के लिए एक मंच प्रदान करने का काम था लेकिन मैंने गांधी, नेहरू और यशवंतराव चव्हाण की विचारधारा को कभी नहीं छोड़ा.” पवार ने कहा कि वह 1991 में मुख्यमंत्री के रूप में महाराष्ट्र की राजनीति में कभी नहीं लौटना चाहते थे. "लेकिन एक बार जब मैं लौटा, तो मैंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया,"
बालासाहेब ठाकरे से रिश्ते
पवार ने कहा, "बालासाहेब (ठाकरे) मेरे खिलाफ सबसे अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करने में कभी नहीं झिझके लेकिन हम हमेशा दोस्त बने रहे, सहयोग किया और अक्सर राज्य को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा की.
MVA सरकार में तनाव पर
"महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर तनाव पर पवार ने कहा कि वह एमवीए सरकार की स्थिरता के बारे में "चिंतित नहीं" थे. उन्होंने कहा, "मैं सीएम के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था लेकिन पिछले 10 दिनों में लगता है कि वह सभी फैसले ले रहे हैं"
क्या मोदी का विकल्प है? क्या भविष्य के चुनावों में बदलाव संभव है?
पवार ने कहा, 'चुनाव के मैदान में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आपके सामने कौन है. लोग ठान लें तो बदलाव आता है, जो पहले भी साबित हो चुका है. यह आने वाले चुनावों में देखने को मिलेगा." आपातकाल के बाद के चुनावों में इंदिरा गांधी के सामने कोई नेतृत्व नहीं था. “लेकिन अलग-अलग दल एक साथ आए और चुनाव लड़ा. मोरारजी देसाई तब जनता पार्टी से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं थे. आज स्थिति वही है. हालांकि, अलग-अलग दलों को एक साथ आने और एक मोर्चा बनाने की जरूरत है"
राजनीति में जाति कार्ड?
पवार ने कहा कि जाति आधारित राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलती. “हम राजनेता कभी-कभी स्वार्थ के लिए जाति कार्ड खेलते हैं. लेकिन यह लंबे समय तक नहीं चलता है. आम आदमी प्रगति के बारे में सोचता है और ऐसा हमेशा किया जाना चाहिए.
शरद पवार की महत्वाकांक्षा
व्यक्तिगत मोर्चे पर पवार ने कहा कि उन्हें अपनी उम्र की चिंता नहीं है. “लेकिन मैं युवा पीढ़ी को प्रेरित करने और उनके नेतृत्व को सामने लाने में विश्वास करता हूं. इसलिए मैं कोई प्रशासनिक नेतृत्व नहीं लेना चाहता. मैं राज्य और देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक 'मार्गदर्शक' की भूमिका निभा रहा हूं."
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