मुंबई: मुंबई में कोरोना के मरीजों की तादाद इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब शहर के अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं. कई मरीजों को अस्पताल दर अस्पताल चक्कर काटने पड़ रहे हैं. कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट भी काफी देर से मिलती है. हाल ही में मुंबई पुलिस के एक युवा अधिकारी की कोरोना से इसलिए मृत्यु हो गई क्योंकि वक्त रहते उसे अस्पताल में जगह नहीं मिल पाई. कोरोना का टेस्ट कराए जाने के चार दिनों बाद उसकी रिपोर्ट आई.
जब भी समाज पर कोई आपदा आती है तो समाज उन संगठनों की ओर देखता है जो कि ऐसे हालातों से निपटने के लिये बनाये गये हैं, लेकिन जब इन संगठनों के लोग ही आपदाग्रस्त होने लग जायें तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि स्थिति कितनी बदतर हो सकती है. महाराष्ट्र में पुलिस के साथ यही हो रहा है. मुंबई पुलिस के सब इंस्पेक्टर अमोल कुलकर्णी की कहानी आपका दिल पसीज देगी. हाल ही में कुलकर्णी का कोरोना की वजह से देहांत हो गया.
सबसे बड़े कोरोना हॉटस्पॉट में से एक है धारावी
इसी अप्रैल में कुलकर्णी ने फेसबुक पर पोस्ट डालकर लिखा था- कोई 500 करोड़ दे रहा है, कोई 5 करोड़ दे रहा है और हम अपनी जान दे रहे हैं. वाकई में कोरोना के खिलाफ जंग में अमोल कुलकर्णी ने अपनी जान न्यौछावर कर दी. कुलकर्णी की ड्यूटी मुंबई के धारावी इलाके के शाहूनगर पुलिस थाने में थी. धारावी मुंबई के सबसे बड़े कोरोना हॉटस्पॉट में से एक है. यहां मरीजों की संख्या 1000 को पार कर गई है और मरने वाले 50 से ज्यादा हो चुके हैं. यहीं की पतली संकरी गलियों में कुलकर्णी अपनी ड्यूटी निभा रहे थे और कोरोना से संक्रमित हो गये.
डाइबिटीज से भी पीड़ित थे कुलकर्णी
32 साल के कुलकर्णी डाइबिटीज से भी पीड़ित थे इसलिये कोरोना को उन्हें अपनी गिरफ्त में लेते हुए ज्यादा वक्त नहीं लगा. महाराष्ट्र टाईम्स के वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे ने कुलकर्णी के करीबियों से जानकारी हासिल करके बताया कि 11 मई को जब उनमें कोरोना के लक्षण दिखने लगे तो वे सायन अस्पताल गए, लेकिन उन्हें कहा गया कि पहले वे अपना टेस्ट करवाएं और घर पर ही खुद को क्वॉरन्टीन करें.
12 तारीख को टेस्ट तो उन्होंने करवा लिया लेकिन टेस्ट की रिपोर्ट आने में 4 दिनों का वक्त लग गया. इस बीच उनकी तबियत बेहद खराब हो गई. उनके साथियों ने एंबुलेंस मंगने के लिये कॉल किया ताकि उन्हें अस्पताल पहुंचाया जाये लेकिन आधे घंटे तक इंतजार के बाद भी सरकारी एंबुलेंस नहीं आई.
आखिरकार किसी तरह से एक निजी एंबुलेंस का इंतजाम करके उन्हें सायन अस्पताल पहुंचाया गया. अस्पताल में भर्ती होने के कुछ घंटों बाद उन्होंने दम तोड़ दिया. उनके शव को काले रंग की प्लास्टिक में पैक करके सीधे श्मशान भूमि भेज दिया गया जहां उन्हीं के एक साथी ने उनका अंतिम संस्कार किया.
इतना ही नहीं मृत्यु के बाद भी सिस्टम की बेदर्दी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. उनके डेथ सर्टिफिकेट पर मृत्यु का कारण सांस लेने में तकलीफ और डायबिटीज लिखा गया ना कि कोरोना. उनके साथियों के संघर्ष और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद डेथ सर्टिफिकेट पर कोरोना का जिक्र हुआ. कुलकर्णी के अंतिम संस्कार में उनके कई सहकर्मी शामिल नहीं हो सके. शाम को जब महाराष्ट्र के गृहमंत्री शाहू नगर पुलिस थाने पहुंचे तो एक पुलिस अधिकारी अपने आंसू रोक ना सका.
इसे क्या कहेंगे आप? जब कोरोना से जंग में अपनी जान को दांव पर लगाने वाले पुलिस अधिकारी के साथ ऐसा हो सकता है तो अंदाजा लगाइये आम लोगों का क्या हाल होगा. अमोल कुलकर्णी की जान बच सकती था अगर उन्हें पहले दिन ही लक्षण पता चलने पर अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता और उचित देखभाल की जाती.
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डेशबोर्ड तैयार करने की मांग की
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि राज्य के हालात काफी गंभीर हैं. उन्होंने सरकार से मांग की है मुंबई और पुणे जैसे शहरों में अस्पतालों में बेड की संख्या का एक डेशबोर्ड तैयार किया जाये ताकि लोगों को ये पता चले कि किस अस्पताल में बेड उपलब्ध हैं और उन्हें दर दर की ठोकरें ना खानी पड़ें.
रिपोर्ट का देर से आना भी अपने आप में सवाल खड़ा करता है. दरअसल ये सब हो इसलिये रहा है कि क्योंकि मुंबई में जिस तादाद में मरीज आ रहे हैं उसके सामने सारे इंतजाम कम पड़ गये हैं फिर चाहे हो टेस्ट करने वाले लैब हों या अस्पताल. कुलकर्णी के मामले से यही बात निकल कर आ रही है कि लोगों की मौत इसलिये भी हो रही है क्योंकि लोग अस्पताल में भर्ती नहीं हो पा रहे और टेस्ट कि रिपोर्ट आने में वक्त ज्यादा लग रहा है.
सोमवार को मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवेलपमेंट अथॉरिटी ने एक हजार बेड का विशेष कोरोना अस्पताल तैयार करके महाराष्ट्र सरकार को सौंपा है लेकिन जिस तादाद में मुंबई में कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं उसे देखकर मुंबई महानगरपालिका अब वानखेड़े स्टेडियम को भी क्वॉरन्टीन सेंटर में बदलना चाहती है.
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