Gandhi Jayanti 2023: गुलाम भारत में फूंक दी थी नई जान, पढ़ें दिलचस्प किस्सा महात्मा गांधी के चरखे का
Mahatma Gandhi Birth Anniversary: चरखे जैसी सामान्य चीज महात्मा गांधी के हाथों में आते ही, सोए हुए भारत में नई जान फूंक कर विश्व पटल पर नई ताकत के साथ उठ खड़े होने का दैवीय शस्त्र बन गया था.
Happy Gandhi Jayanti 2023: " दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल" कवि प्रदीप का गांधी जी के बारे में लिखा गया यह गीत सदियों तक अहिंसा के उस पुजारी की अलौकिक शक्तियों को ढूंढने की प्रेरणा देगी, जिसके पीछे पूरा देश खड़ा हो गया था. मकसद एक ऐसी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकना था जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था. जिसकी सैन्य शक्ति अपराजेय थी.
जिस बर्बर आतताई अंग्रेजी हुकूमत ने बंदूकों के बल पर पूरी धरती को गुलाम बना रखा था. ऐसी विशाल ताकत के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक सत्याग्रह का सबसे अचूक हथियार बन गया था चरखा. वैसे तो 1915 में दक्षिण अफ्रीका से महात्मा गांधी के आगमन से पहले भी भारत के पंजाब और गुजरात के कुछ हिस्सों में चरखे पर सूत की कटाई होती थी लेकिन तब इसे ग्रामीण आबादी की दो जून की रोटी का सिर्फ जरिया माना जाता था.
चरखे को दैवीय अस्त्र मानते थे महात्मा गांधी
बापू ने इसे अहिंसा, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का ऐसा प्रतीक बनाया, जिसने देशवासियों में नई जान फूक दी. इस चरखे ने अपनी अथाह ताकत को भूल चुके देशवासियों को नई अंगड़ाई के साथ उठ खड़े होने और ब्रिटिश हुकूमत का प्रतिकार करने का सिंबल दिया था. बापू की बदौलत यही चरखा देश के आर्थिक स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना था. चरखे जैसी सामान्य चीज महात्मा गांधी के हाथों में आते ही सोए हुए भारत में नई जान फूंक कर विश्व पटल पर नई ताकत के साथ उठ खड़े होने का दैवीय शस्त्र बन गया था.
ग़ुलाम भारत वासियों की एकता का ज़रिया बना चरखा
गांधी जी चरखे को किस कदर भारत की आजादी के लिए अचूक शास्त्र मानते थे इसका अंदाजा उनके एक संबोधन से लगाया जा सकता है. उनसे किसी ने पूछा था कि आप चरखे पर इतना जोर क्यों देते हैं? इसके जवाब में उन्होंने जो बात कही, वह आज भी आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रासंगिक है.
बापू ने कहा था, "भारत के 40 करोड़ लोग अगर चरखे पर सूत कातें, तो वे लाखों लोगों के उपयोग के लिए खादी का सूत कात सकते हैं. मिलो में कुछ लाख लोगों को रोजगार मिलेगा, लेकिन चरखा देश के हर नागरिक को संबल देगा. इसका मतलब शोषण से मुक्ति है. इसका मतलब हिंदू मुसलमानो में एकता है. इसका मतलब बेरोजगारी का अंत है." बापू के आह्वान पर पूरे देश ने चरखे पर सूत कातना शुरू कर दिया जो स्वदेशी आंदोलन और सविनय अवज्ञा का सबसे मजबूत आधार बना. इसी ताकत से दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति भी आखिरकार परास्त हुई.
भारत के कच्चे माल से इंग्लैंड में कपड़ा बनाते थे अंग्रेज
महात्मा गांधी का यह चरखा अंग्रेजों के लिए अहिंसक और शांति से दी गई सबसे बड़ी चोट थी. गुलामी के दौर में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन भारत से कपास और कच्चा माल इंग्लैंड ले जाता था और वहां कपड़े बनाकर वापस भारत में बेचता था. जब बापू के आह्वान पर पूरे देश ने चरखे पर सूत काटना शुरू किया तो यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ ऐसा विरोध था, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अंजाम को काफी पहले प्रतिबिंबित करने लगा था. इसके जरिए भारत वासियों में आर्थिक आत्मनिर्भरता का एहसास तब हुआ जब वे गुलामी के दौर में खुद को निरीह और कमजोर समझते थे. इसलिए बापू का यह चरखा केवल सूत काटने का जरिया नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा सिंबल था.