Gandhi Jayanti: जब आम्बेडकर के खिलाफ जेल में ही भूख हड़ताल पर बैठ गए बापू
बाबा साहब ने आधुनिकता से लबरेज एक प्रगतिशील संविधान भारत के करोड़ों लोगों को सौंपा. वहीं गांधी ने भाषा, पहनावा, बोली, जाति, मजहब में बंटे पूरे देश को एक किया और भारत को अंग्रेजों के गिरफ्त से मुक्ति दिला देश को आजाद दिलाई. लेकिन गांधी और आम्बेडकर के जानकारों का मानना है कि भारत के इन दो महान वीर सपूत के बीच रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे और एक खास तरह की तल्खी इनके रिश्ते में हमेशा रही.
नई दिल्ली: महात्मा गांधी और डॉ भीमराव आम्बेडकर दोनों का ही भारतीय समाज में योगदान अविस्मरणीय है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जहां देश को आजादी दिलाने के सूत्रधार माने जाते हैं वहीं आजादी के बाद देश का अपना अलग संविधान हो उसके बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर लेखक हैं. आजादी के समय समय जब देश के महज कुछ प्रतिशत लोग शिक्षित थे और भारतीय समाज धर्म और विभिन्न मान्याताओं से जकड़ा हुआ था ऐसे परिदृष्य में बाबा साहब ने आधुनिकता से लबरेज एक प्रगतिशील संविधान भारत के करोड़ों लोगों को सौंपा.
वहीं गांधी ने भाषा, पहनावा, बोली, जाति, मजहब में बंटे पूरे देश को एक किया और भारत को अंग्रेजों के गिरफ्त से मुक्ति दिला देश को आजाद दिलाई. लेकिन गांधी और आम्बेडकर के जानकारों का मानना है कि भारत के इन दो महान वीर सपूत के बीच रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे और एक खास तरह की तल्खी इनके रिश्ते में हमेशा रही. गांधी जी की 149वीं जयंती पर जानिए आखिर क्यों आम्बेडकर से मतभेद पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए थे गांधी.
बापू और आम्बेडकर के बीच के रिश्ते की इसी तल्खी का एक नमूना है गांधी की येरवडा जेल में शुरू की गई अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल. दरअसल, हुआ ये था कि 17 अगस्त 1932 को ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर रैमजे मैकडॉनॉल्ड ने आम्बेडकर की मांग पर भारत में कम्युनल एवार्ड की घोषणा कर दी. इसके तहत दलितों के लिए देश में सेपेरेट एलेक्ट्रेट यानी अलग से चुनाव क्षेत्र की मांग को स्वीकार कर लिया गया था. इस फैसले के लागू होने का मतलब था कि देश में दलितों के लिए अलग से चुनाव क्षेत्र होंगे. उम्मीदवार भी दलित होगा और मतदाता भी सिर्फ दलित होंगे. उस समय गांधी जी पुणे के येरवडा जेल में थे. उन्हें जब अंग्रेजी हुकूमत के इस फैसले की सूचना मिली तो वो सकते में पड़ गए. जेल से ही उन्होंने इस फैसले के विरोध करने की ठानी और 20 सितम्बर 1932 को फैसले के विरोध में गांधी जी जेल में ही आमरण अनशन पर बैठ गए.
गांधी दलितों के लिए अलग निर्वाचन के विरोध में अनशन कर रहे थे और डॉ आम्बेडकर के समर्थक पृथक निर्वाचन के पक्ष में खुशियां मना रहे थे. दोनों के समर्थकों के बीच आपसी तकरार बढ़ने लगी. महात्मा गांधी के भूख हड़ताल का तीन दिन बीत चुका था. उनकी तबीयत नासाज होने लगी थी. डॉ आंबेडकर पर चौतरफा दबाव बढ़ा कि वो अपनी पृथक निर्वाचन की मांग को वापस लें. लेकिन आम्बेडकर अपनी बातों पर अड़े थे और गांधी अपनी बातों पर. सभी को गांधी जी के गिरते स्वास्थ्य के कारण उनकी चिंता सताने लगी थी. दोनों ही दिग्गज राजनेताओं के बीच कोई सुलह होता नहीं देख उस समय के मशहूर वकील सर तेज बहादुर सप्रू समझौता कराने को आगे आए.
24 सितम्बर 1932 को सर तेज बहादुर सप्रू के अथक प्रयास के बाद महात्मा गांधी और डॉ आम्बेडकर के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत डॉ आंबेडकर को पृथक निर्वाचन की मांग वापस लेनी थी और गांधी जी को दलितों को केन्द्रीय और राज्यों की विधानसभाओं और स्थानीय संस्थाओं में दलितों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देना था. इसके अलावा सरकारी नौकरियों में भी दलितों के लिए प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई थी. इसी समझौते को पूना पैक्ट कहा गया. और इसी समझौते के बाद गांधी की येरवडा जेल में जारी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल खत्म हो गई.