Parliamentary Language: कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) के संसद में दिए गए भाषणों के कुछ अंशों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया. इस पर विपक्षी दलों की ओर से हंगामा किया जा रहा है. राहुल ने भी बुधवार (8 फरवरी) को मीडियाकर्मियों के सामने पूछा कि उनके शब्दों को क्यों हटाया गया?


दरअसल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने मंगलवार (7 फरवरी) को और महुआ मोइत्रा ने बुधवार (8 फरवरी) को सदन में बोलते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा. इस दौरान उनकी कही बातों पर बीजेपी सांसदों की ओर से विरोध किया गया. राहुल गांधी ने जहां मोदी सरकार और कारोबारी गौतम अडानी के कथित संबंधों के बारे बोलकर बीजेपी खेमे में उबाल ला दिया तो वहीं महुआ मोइत्रा ने केंद्र पर बरसते हुए अपशब्द का इस्तेमाल कर दिया. संसदीय भाषा के मनदंडों के तहत दोनों सांसदों के भाषणों के कुछ अंशों को रिकॉर्ड से हटा दिया गया. आखिर संसद में क्या बोलने की इजाजत है और क्या नहीं, आइए इसे समझते हैं.


सदन के रिकॉर्ड से हटा दिए जाते हैं ये शब्द 


'संसद में क्या बोलें' का विवाद पुराना है. पिछले साल जुलाई में संसदीय भाषा संबंधी शब्दों की एक नई सूची जारी की गई थी. इसमें 62 ऐसे शब्द शामिल किए गए थे, जिन्हें असंसदीय करार दिया गया था. सूची में 'जुमलाजीवी', 'बाल बुद्धि', 'कोविड स्प्रेडर' (कोरोना फैलाने वाला) और 'स्नूपगेट (जासूसी के संबंध में फोन पर हुई बातचीत को टेप करना)', 'अशेम्ड (शर्मिंदा)', 'अब्यूज्ड (दुर्व्यवहार)', 'बिट्रेड (विश्वासघात)', 'भ्रष्ट', 'ड्रामा (नाटक)', 'हिपोक्रेसी (पाखंड)' और 'इनकंपीटेंट (अक्षम)' जैसे शब्दों को भी असंसदीय करार दिया गया था. इन शब्दों को लेकर कहा गया था कि अगर बहस के दौरान या अन्यथा दोनों सदनों में इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो उन्हें हटा दिया जाएगा.


'मर्डर (हत्या)', 'सेक्सुअल असॉल्ट (यौन हमला)', 'नेग्लिजेंस (लापरवाही' जैसे शब्दों का भी उल्लेख सूची में मिलता है, जिससे यह शंका पैदा होती है कि क्या संसद में बहस के दौरान इनका इस्तेमाल किया जा सकता है? इस पर सरकार ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है. 


शब्दों को हटाने को लेकर क्या बोले लोकसभा अध्यक्ष?


राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा के भाषण के अंशों के हटाए जाने के सवाल पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने मीडिया से कहा कि बुकलेट को अचानक संकलित नहीं किया गया, यह संसदीय अभ्यास का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि सूची को लोकसभा सदस्य पोर्टल पर पोस्ट किया जाता है. 2010 से हर वर्ष यह एक नियमित अभ्यास रहा है. यह एक परंपरा है जो 1954 से चली आ रही है और सरकार के इशारे पर नहीं की जाती है.


इंडिया टुडे के मुताबिक, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने यह भी कहा कि किसी भी शब्द पर पाबंदी नहीं लगाई गई है लेकिन सभी को सदन की मर्यादा का सम्मान करना चाहिए. यही लोकतंत्र की खूबसूरती है. हटाने का फैसला अध्यक्ष के निर्देश पर लिया गया, मामले में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है.


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