Muslim Personal Law Latest News: क्या एक मुस्लिम महिला तलाकशुदा पति से कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 (सीआरपीसी) के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी या फिर उसे यह दि मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डायवोर्स) एक्ट, 1986 के तहत मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट में इसी मसले को लेकर सुनवाई होनी है, जबकि इससे पहले 9 फरवरी, 2024 को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल को इस केस में एमीकस क्यूरी नियुक्त किया था. बेंच ने तब कहा था, "हम पाते हैं कि इस कोर्ट एमीकस क्यूरी के दृष्टिकोण से फायदा होगा. ऐसे में हम गौरव अग्रवाल (जाने-माने सीनियर वकील) को एमीकस क्यूरी नियुक्त करते हैं. रजिस्ट्री की ओर से गौरव अग्रवाल को इस केस के पेपर्स मुहैया करा दिए जाएं." कोर्ट ने इसके साथ ही अगली सुनवाई के लिए 19 फरवरी, 2024 की तारीख दी थी.


आदेश में जिक्र किया गया "इस याचिका में तलाकशुदा मुस्लिम महिला की ओर से सीआपीसी के सेक्शन 125 के तहत दाखिल गई पीटिशन को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील ने कहा था कि मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डायवोर्स) एक्ट, 1986 को देखें तो एक तलाकशुदा महिला सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होती है. उसे 1986 वाले एक्ट के प्रावधानों के हिसाब से ही कानूनी तौर पर आगे बढ़ना पड़ता है. सीआरपीसी के सेक्शन 125 की तुलना में 1986 वाला एक्ट मुस्लिम महिलाओं के लिए अधिक लाभकारी है."


Telangana के कोर्ट ने कहा था- तलाकशुदा बीवी को दो 20 हजार गुजारा भत्ता


दरअसल, यह पूरा मामला मोहम्मद अब्दुल समद नाम के शख्स की उस अपील से जुड़ा है जिसमें तेलंगाना में एक फैमिली कोर्ट ने उसे तलाकशुदा पत्नी को 20 हजार रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था. महिला ने सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत फैमिली कोर्ट का रुख किया था और का था कि अब्दुल समद ने उन्हें ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) दिया था. 


इस तरह आगे Supreme Court पहुंचा मामला 


व्यक्ति ने इसके बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां 13 दिसंबर 2023 को उसकी याचिका खारिज कर दी गई. कोर्ट ने इस दौरान कई सवाल उठने की बात कही थी और कहा था कि उन पर निर्णय करना बाकी है. हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता (अब्दुल समद) को अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर 10 हजार रुपए (तलाकशुदा बीवी को) देने के लिए कहा था. अब्दुल सदम ने इस आदेश को चुनौती देते हुए आगे सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हाईकोर्ट इस बात को समझने में विफल रहा है कि 1986 के अधिनियम (स्पेशल एक्ट) के प्रावधान सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों पर प्रबल होंगे, जो कि सामान्य अधिनियम है. याचिकाकर्ता का यह भी दावा है कि उसने तलाकशुदा पत्नी को इद्दत के दौरान गुजारा भत्ता के तौर पर 15 हजार रुपए दिए थे. उसने इसके अलावा पूर्व पत्नी के सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत फैमिली कोर्ट का रुख करने के फैसले को भी चुनौती दी थी. मामले में अब अगली सुनवाई 19 फरवरी को होनी है.