भोपाल: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी में कुछ बदले-बदले हैं. कोरोना के इस दौर में उनकी सरकार ऐसे कानून बना रही है जिसके दूरगामी परिणाम बेहद जटिल होंगे. पहले किसानों के लिये मंडी एक्ट में बदलाव फिर मजदूरों के लिये श्रम कानूनों में बदलाव. सीएम शिवराज सिंह का कहना है कि ये बदलाव, काम की गति को तेज करेंगे और प्रदेश में रोजगार बढ़ाएंगे.


इन कानूनों में बदलाव करने से पहले उनकी ना तो किसानों और ना ही मजदूरों से चर्चा हुई इसलिए इन फैसलों पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने जहां शिवराज सिंह को पत्र लिखकर इस पर आपत्ति जताई तो सीपीएम के नेता बादल सरोज सीधे कहते हैं कि श्रम कानून में संशोधन जन विरोधी हैं, शोषण बढ़ाने वाले हैं.


ये जानिये बदलाव क्या हैं 


कारखाना अधिनियम 1948 के अंतर्गत कारखाना अधिनियम 1958 की धारा 6,7,8 धारा 21 से 41 (एच), 59,67,68,79,88 एवं धारा 112 को छोड़कर सभी धाराओं से नए उद्योगों को छूट रहेगी.


इससे अब उद्योगों को विभागीय निरीक्षणों से मुक्ति मिलेगी. उद्योग अपनी मर्जी से थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करा सकेंगे. फैक्ट्री इंस्पेक्टर के जांच और निरीक्षण से मुक्ति मिलने का दावा है. उद्योग अपनी सुविधा में शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे.


जानते है कि इस श्रम कानूनों में बदलाव क्या है


मध्यप्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम 1960 में संशोधन के साथ इस अधिनियम के प्रावधान उद्योगों पर लागू नहीं होंगे. इससे किसी एक यूनियन से समझौते की बाध्यता समाप्त हो जाएगी. पहले एक यूनियन से समझौता करने की शर्त थी.


औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में संशोधन के बाद नवीन स्थापनाओं को एक हजार दिन तक औद्योगिक विवाद अधिनियम में अनेक प्रावधानों से छूट मिल जाएगी. संस्थान अपनी सुविधानुसार श्रमिकों को सेवा में रख सकेगा. उद्योगों की ओर से की गई कार्रवाई के संबंध में श्रम विभाग और श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप बंद हो जाएगा. ये बड़ा बदलाव है. मालिक शोषण करेगा तो मजदूर के पास लेबर कोर्ट जाने के रास्ते बंद हो जाएंगे.


मध्यप्रदेश औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम 1961 में संशोधन के बाद 100 श्रमिक तक नियोजित करने वाले कारखानों को अधिनियम के प्रावधानों से छूट मिल जाएगी.


मध्यप्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम 1982 के अंतर्गत जारी किये जाने वाले अध्यादेश के बाद सभी नवीन स्थापित कारखानों को आगामी एक हजार दिन के लिए मध्यप्रदेश श्रम कल्याण मंडल को प्रतिवर्ष प्रति श्रमिक 80 रुपए के अभिदाय के प्रदाय से छूट मिल जाएगी. इसके साथ ही वार्षिक रिटर्न से भी छूट मिलेगी. पहले ऐसा नहीं था.


लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम 2010 के अंतर्गत जारी अधिसूचना के अनुसार श्रम विभाग की 18 सेवाओं को पहले तीस दिन में देने का प्रावधान था. अब इन सेवाओं को एक दिन में देने का प्रावधान किया गया है. इससे जल्दी जल्दी काम काज स्थापित करने की स्वीकृति मिलेगी.


दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में संशोधन के बाद कोई भी दुकान एवं स्थापना सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुली रह सकेगी. इससे दुकानदारों के साथ ही ग्राहकों को भी राहत मिलेगी. पचास से कम श्रमिकों को नियोजित करने वाले स्थापनाओं में श्रम आयुक्त की अनुमति के बाद ही निरीक्षण किया जा सकेगा. पहले सुबह दस से रात के दस बजे तक था.


ठेका श्रमिक अधिनियम 1970 में संशोधन के बाद ठेकेदारों को 20 के स्थान पर 50 श्रमिक नियोजित करने पर ही पंजीयन की बाध्यता होगी. 50 से कम श्रमिक नियोजित करने वाले ठेकेदार बिना पंजीयन के कार्य कर सकेंगे. इस अधिनियम में संशोधन के लिए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया है.


कारखाना अधिनियम के अंतर्गत कारखाने की परिभाषा में विद्युत शक्ति के साथ 10 के स्थान पर 20 श्रमिक और बगैर विद्युत के 20 के स्थान पर 40 श्रमिक किया गया है. इस संशोधन का प्रस्ताव भी केन्द्र शासन को भेजा गया है. इससे छोटे उद्योगों को कारखाना अधिनियम के पंजीयन से मुक्ति मिलेगी. इसके पूर्व 13 केन्द्रीय एवं 4 राज्य कानूनों में आवश्यक श्रम संशोधन किए जा चुके हैं.


मजदूर और श्रमिक के लोहान से ये बड़े बदलाव हैं. पहले अगर कोई न्यूनतम मजदूरी ना दे तो लेबर इंस्पेक्टर को अधिकार थे कि कानून तोड़ने वाले पर वो मुकदमा लगा सकता है जिसमें 6 महीने की जेल, 7 गुना जुर्माने का भी प्रावधान था. जांच और निरीक्षण से मुक्ति का मतलब ये होगा शोषण करो, सजा से मुक्ति. पहले ये भी प्रावधान थे कि श्रम आयुक्त आदेश दे तो निरीक्षण कराया जा सकता था, शिकायत करने पर वो ऐसे आदेश दे सकते थे लेकिन अब उसे हटा दिया गया है.


आप अपने आसपास किसी छोटी, बड़ी फैक्ट्री को देख लें, 90 प्रतिशत से ज्यादा में श्रम कानूनों का उल्लंघन होता है फिर चाहे 8 घंटे काम की शर्त हो, साप्ताहिक अवकाश या फिर ओवरटाइम की लेकिन अब इस शिकायत के मायने नहीं है. यानी शिवराज सरकार ने निजी क्षेत्र के मजदूरों को पूरी तरह से बंधुआ मजदूर बना दिया है.


दुकान एवं स्थापना अधिनियम 1958 में जो संशोधन हुआ उसमें 6-12 बजे रात तक दुकानें खुली रह सकती हैं, लेकिन जरा सोचिये जिन लोगों से दुकानों में काम कराया जाता है उसमें से कितनों को डबल शिफ्ट या दूसरी शिफ्ट के लिये कामगार रखे जाएंगे उनके श्रम कानूनों के लिये क्या आवाज उठाने की गुंजाइश बची है.


पहले प्रावधान थे कि किसी उद्योग में जहां 100 मजदूर हैं उसे बंद करने के लिये इजाजत लेनी होगी, कामगारों को सुनना होगा लेकिन 1000 दिन खुले रहने यानी लगभग 3 साल काम हुआ तो किसी तरह का कानून लागू नहीं होगा. विपक्षी नेता कहते हैं की ये कानून विधानसभा में बने, उनपर लंबी चर्चा हुई ऐसे में एक नोटिफिकेशन से उसे बदला जा रहा है ये गैरकानूनी तो नहीं लेकिन दुरुपयोग तो निश्चित तौर पर है.


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