नई दिल्ली: "महिलाओं से छेड़खानी करने वाले उन्हें समानता और सम्मान के मौलिक अधिकार से वंचित कर देते हैं. उनके मर्द होने के अहंकार को कानून की दहलीज पर दम तोड़ना होगा." नाबालिग लड़की को परेशान कर आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले शख्स को मिली 7 साल की सज़ा बहाल रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की है.


मामला हिमाचल प्रदेश का है. नाबालिग लड़की पहले अपनी मर्ज़ी से अपने गांव के एक लड़के के साथ कहीं गई. लड़के पर अपहरण और बलात्कार का मामला दर्ज होने पर उसका साथ दिया. उसे सज़ा पाने से बचाया. लेकिन लड़का मुकदमे के लिए लड़की को दोषी मानने लगा. उससे बदला लेने पर उतारू हो गया.


उसने दिन-रात लड़की को तंग करना शुरू कर दिया. वो आते-जाते लड़की को परेशान करता. अपहरण करने की धमकी देता. आखिर उसकी हरकतों से परेशान लड़की ने खुद पर केरोसिन तेल छिड़ककर आग लगा ली. लड़की ने मरने से पहले न सिर्फ लिखित में अपने हाल के लिए लड़के को पूरी तरह ज़िम्मेदार बताया बल्कि पुलिस को भी यही बयान दिया.


इसके बावजूद निचली अदालत ने लड़के को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि 80 फीसदी जली लड़की बयान नहीं लिख सकती. वो पुलिस अधिकारी को बोल कर बयान देने के लिए भी मानसिक तौर पर फिट नहीं थी. हालांकि, हिमाचल हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया. हाई कोर्ट ने लड़के को आईपीसी की धारा 306 यानी आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी माना और 7 साल की सज़ा दी.


आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखा. कोर्ट ने कहा, "हमें दुःख है कि महिलाएं जिस सम्मान की हकदार हैं, समाज का एक तबका उसे देने को तैयार नहीं. महिलाओं के साथ पार्क, कॉलेज, रेलवे स्टेशन और तमाम सार्वजनिक जगहों पर छेड़खानी होती है. ये हमारी समझ से परे है कि आखिर क्यों महिलाओं को शांति और सम्मान से नहीं रहने दिया जाता."


कोर्ट ने आगे लिखा है, "महिलाओं को संविधान में मर्दों के बराबर अधिकार दिए गए हैं. एक सभ्य समाज में पुरुषवादी अहंकार की कोई जगह नहीं है. कोई भी महिला को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकता कि वो उसे प्यार करे. महिला को पूरा हक है कि वो किसी को मना कर दे."