Maliana Massacre: मेरठ की एक जिला अदालत ने 23 मई, 1987 को मलियाना गांव में हुए नरसंहार के सभी 41 अभियुक्तों को शुक्रवार (31 मार्च) को बरी कर दिया. मेरठ के बाहरी इलाके स्थित मलियाना गांव में 36 साल पहले हुई इस सांप्रदायिक हिंसा में 68 मुसलमानों की हत्या कर दी गई थी. आरोप है कि इस नरसंहार में दंगाइयों की भीड़ के साथ उत्तर प्रदेश पीएसी के कर्मी शामिल थे.


मलियाना की घटना मेरठ शहर के हाशिमपुरा में हुए चर्चित हत्याकांड के एक दिन बाद ही हुई थी. हाशिमपुरा में पीएसी कर्मियों ने हिरासत में 38 मुसलमानों को गोली मार दी थी और उनके शव गंगनहर में फेंक दिए थे. हाशिमपुर मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में पीएसी के 16 पूर्व जवानों को टारगेट किलिंग के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.


मलियाना की तरह ही हाशिमपुरा के दोषियों को निचली अदालत ने 2015 बरी कर दिया था. ट्रायल कोर्ट ने तब कहा था कि उनका दोष संदेह से परे स्थापित नहीं हुआ है.


महीनों से सुलग रही थी चिंगारी


फरवरी 1986 में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ताला फिर से खोला गया था, उसके बाद से ही मेरठ में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था. इस इलाके में पहले भी कई दंगे हो चुके थे. विभूति नारायण राय उस समय, पड़ोसी जिले गाजियाबाद के पुलिस अधीक्षक थे. बाद में वे उत्तर प्रदेश के डीजीपी भी बने. राय ने हाशिमपुरा 22 मई: फॉरगॉटेन स्टोरी ऑफ इंडियाज बिगेस्ट कस्टोडियल किलिंग में इस घटना का विस्तार से जिक्र किया है.


राय ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि दंगों के लिए किसी एक घटना को बताना मुश्किल है. उन्होंने बताया कि कई घटनाओं के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ा था. 


वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने उस समय विस्तार से इन दंगों की रिपोर्टिंग की थी. साल 2021 में कुर्बान अली और राय ने पीड़ितों के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें मामले की सुनवाई तेज करने की मांग की गई थी.


दो घटनाएं जिन्होंने भड़काई आग


कुर्बान अली ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में दंगों के पीछे एक प्रमुख घटना का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि 18 अप्रैल, 1987 को नौचंदी मेले के दौरान एक स्थानीय सब-इंस्पेक्टर पटाखे की चपेट में आ गया. इसके बाद वहां हिंसा भड़क गई जिस पर उसने गोली चला दी. इसमें दो मुसलमान मारे गए.


दूसरी घटना, हाशिमपुरा क्रॉसिंग के पास मुसलमानों का एक धार्मिक उपदेश चल रह था, इसी के पास एक हिंदू परिवार के यहां मुंडन संस्कार में गाने बजाने को लेकर बहस हुई और झगड़ा हो गया. 


हाशिमपुरा का दहलाने वाला हत्याकांड


अली बताते हैं जैसे ही दंगे भड़के, कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया. 19 मई तक दंगे भड़क चुके थे. उस समय की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लिसाड़ीगेट, लाल कुर्ती, सदर बाजार समेत कई इलाके दंगों की आग में जल रहे थे. 22 मई को हाशिमपुरा का दहलाने वाला हत्याकांड हुआ. 


22 मई को पीएसी ने 42-45 मुस्लिम पुरुषों को पकड़ा और एक ट्रक में भरकर ले गई. पुरुषों को राइफल से गोली मारी गई और उनके शवों को गंगनहर (नहर) और हिंडन नदी में फेंक दिया गया. 38 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी.


मलियाना में नरसंहार


हाशिमपुरा की घटना के अगले दिन मेरठ शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित मलियाना गांव ने वो भयावह मंजर देखा जिसकी यादें आज भी वहां के लोगों को दहला जाती हैं. मलियाना गांव की उस समय समय आबादी 35,000 थी जिसमें 5000 मुसलमान थे.


बताया जाता है कि 23 मई, 1987 को पीएसी के जवानों के साथ हिंसक भीड़ गांव में दाखिल हुई थी. मलियाना के मुस्लिम निवासियों का दावा है कि पीएसी ने बिना किसी वजह के पुरुषों से लेकर महिला और बच्चों तक पर गोली चलाई. विभूति नारायण राय ने अपनी किताब में लिखा, 1987 के दंगों में हाशिमपुरा से भी ज्यादा बदनाम मलियाना हुआ. यहां हिंदुओं की एक हिंसक भीड़ और पीएसी के कर्मियों ने निर्दयता से दर्जनों मुसलमानों को मार डाला था.


अगले दिन दफनाए गए 16 शव


नरसंहार के बाद मलियाना से 80 लोग लापता थे. पुलिस ने 24 मई को 16 शव दफनाए थे. आरोप हैं कि दर्जनों शव एक कुएं में फेंक दिए गए थे और उसे मिट्टी से पाट दिया गया. 


मलियाना हिंसा के मामले में 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था. घटना के बाद पीएसी और स्थानीय पुलिस को वापस बुलाकर यहां सेना को तैनात किया गया.


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