कांग्रेस में जान फूंकने का फॉर्मूला 80 दिन बाद भी लागू नहीं कर पाए खरगे; पहले खुद भी देना पड़ेगा इस्तीफा
खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में बदलाव की बात कही जा रही थी, लेकिन 80 दिन बाद भी खरगे संगठन में सर्जरी करने में असफल रहे हैं. बंगाल में कांग्रेस को अब भी नए अध्यक्ष की तलाश है.
कांग्रेस की कमान संभाले मल्लिकार्जुन खरगे को 80 दिन बीत गए, लेकिन संगठन के भीतर कोई बदलाव अब तक नहीं हो सका है. खरगे के पास वर्तमान में खुद दो पोस्ट है, जबकि चुनाव से पहले उन्होंने एक पोस्ट छोड़ने की बात कही थी. खरगे कांग्रेस अध्यक्ष के साथ-साथ वर्तमान में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं.
उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में करारी हार के बाद पार्टी में जान फूंकने के लिए कांग्रेस ने उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया. शिविर में प्रस्ताव पास कर पार्टी ने संगठन के भीतर आमूलचूल परिवर्तन की भी बात कही थी. इसी वजह से नए अध्यक्ष का चुनाव कराया गया और वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस की बागडोर मिली.
खरगे पूरे चुनाव में उदयपुर प्रस्ताव को लागू करने की बात कहते रहे. माना जा रहा था कि खरगे के अध्यक्ष बनते ही पार्टी में बड़े बदलाव होंगे, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है.
पहले जानिए उदयपुर प्रस्ताव की 3 मुख्य बातें...
- कांग्रेस में वन पोस्ट-वन पर्सन का फॉर्मूला लागू होगा.
- एक परिवार से एक व्यक्ति को ही टिकट दिया जाएगा.
- 50 साल से कम उम्र के लोगों को संगठन में 50% हिस्सेदारी मिलेगी.
उदयपुर प्रस्ताव अब तक लागू नहीं
1. वन पोस्ट वन पर्सन फॉर्मूला नहीं- खरगे के अध्यक्ष बने 80 दिन बीत गए, लेकिन कांग्रेस के भीतर वन पोस्ट, वन पर्सन का फॉर्मूला लागू नहीं हो पाया है. खरगे के अलावा अधीर रंजन चौधरी, गुरदीप सिंह सप्पल के पास भी दो पोस्ट है. अधीर लोकसभा में कांग्रेस के नेता हैं और बंगाल कांग्रेस की कमान भी अब तक उन्हीं के पास है.
अध्यक्ष बनने के बाद खरगे ने 4 सदस्यों की कोर टीम बनाई, जिसे एआईसीसी कॉर्डिनेटर (AICC) नाम दिया गया. लिस्ट में गुरदीप सिंह सप्पल का नाम भी शामिल था. सप्पल के पास इसके अलावा कांग्रेस प्रशासनिक विभाग में को-इंचार्ज का भी पद है.
2. बंगाल में संगठन ही नहीं- 2021 में करारी हार के बाद से ही बंगाल में पार्टी के पास संगठन नहीं है. अधीर रंजन चौधरी ने हार के बाद इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, अब तक उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है. प्रदेश में पार्टी ने अब तक फुलटाइम प्रभारी नियुक्त नहीं किया है.
बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं. 2019 में कांग्रेस को यहां 2 सीटों पर जीत मिली थी. चिंतन शिविर में पार्टी ने ऐलान किया था कि राज्यों में संगठन को मजबूती देने के लिए जल्द ही इलेक्शन और पॉलिटिकल कमेटी का गठन किया जाएगा.
3. कई राज्यों में प्रभारी अब भी एक्टिव नहीं- अध्यक्ष बनने के बाद खरगे ने पहली मीटिंग में प्रदेश प्रभारियों को सक्रिय रहने का आदेश दिया था, लेकिन कई ऐसे प्रभारी हैं जो एक्टिव नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी हैं. प्रियंका यूपी की पॉलिटिक्स में पहले से कम एक्टिव हैं.
इसके अलावा शक्ति सिंह गोहिल, भक्त चरण दास और अजय कुमार जैसे नेताओं के पास एक से ज्यादा राज्यों का प्रभार है.
4. राजस्थान और कर्नाटक का विवाद भी उलझा- अध्यक्ष बनने के बाद खरगे के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान और कर्नाटक विवाद को सुलझाना था. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार अब भी जारी है. तकरार की वजह से अजय माकन ने प्रदेश प्रभारी के पद से इस्तीफा दे दिया था.
वहीं कर्नाटक में कुछ महीनों बाद चुनाव प्रस्तावित है. यहां पर पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच तकरार चल रही है. कर्नाटक खरगे का गृह राज्य है, ऐसे में यहां का विवाद खरगे के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है.
खरगे के 2 फैसला, जो चर्चा में है...
1. कांग्रेस ने पार्टी पदाधिकारियों के खर्चे में कटौती कर दिया है. कोषाध्यक्ष पवन बंसल की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिवों को 1400 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए ट्रेन टिकट का भुगतान किया जाएगा. उससे लंबी यात्रा के लिए सबसे कम कीमत वाली हवाई टिकट दी जाएगी, वो भी महीने में केवल दो बार.
2. 15 साल से ज्यादा वक्त से चल रहे मजदूर संगठन इंटक विवाद को खरगे ने सुलझा दिया है. इसकी वजह से कांग्रेस को 104 सीटों पर नुकसान हुआ था. विवाद सोनिया गांधी के वक्त में शुरू हुआ था.
5 राज्यों में चुनाव, 2 में सरकार बचाने की चुनौती- अध्यक्ष बनने के बाद खरगे की पहली परीक्षा कर्नाटक में है. यहां बीजेपी सरकार में है. पार्टी को सत्ता दिलाने के साथ-साथ राजनीतिक मौजूदगी भी दर्ज कराने की चुनौती उनके सामने हैं.
इसके अलावा साल के अंत में राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत 4 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. दोनों राज्यों में सरकार होने के बावजूद गुटबाजी चरम पर है. ऐसे में यहां भी सरकार रिपीट करने की चुनौती हैं.
अब सबकी नजर रायपुर अधिवेशन पर
रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस में कोई भी बड़ा फेरबदल रायपुर अधिवेशन के बाद ही होगा. 24 से लेकर 26 फरवरी तक रायपुर में पार्टी अधिवेशन करेगी. इसी अधिवेशन में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव भी होगा. माना जा रहा है कि CWC चुनाव के बाद ही कांग्रेस में कोई बड़ा फेरबदल हो.