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जुबान फिसली और सत्ता गई; गुजरात, बिहार से बंगाल तक...,जब नेताओं के विवादित बयान ने पार्टी को हराया

खरगे के यह बयान कांग्रेस के लिए कितना नुकसानदायक होगा, यह बहुत कुछ प्रधानमंत्री के पलटवार पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री 29 अप्रैल को बेलगावी से चुनावी शंखनाद करेंगे.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में नामांकन की तारीख खत्म होने के बाद प्रचार-प्रसार उफान पर है. हावेरी में एक जनसभा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहरीला सांप बता दिया. खरगे के बयान को बीजेपी ने तुरंत लपका और इसे प्रधानमंत्री का अपमान बता दिया.

खरगे के विवादित बयान के बाद सियासी गलियारे में चुनाव का गुणा-गणित निकाला जा रहा है. क्योंकि, पहले भी विवादित बयानों ने चुनाव में हार-जीत तय करने में बड़ी भूमिका निभाई है. गलतबयानी की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी भी 1962 का चुनाव हार गए. 

भारत की राजनीति में पिछले 16 सालों में 4 चुनाव में विवादित टिप्पणी ने जीत-हार तय करने में बड़ी भूमिका निभाई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या कर्नाटक चुनाव में खरगे का बयान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा?

इस स्टोरी में विस्तार से जानते हैं, कब-कब चुनाव में जुबान फिसलना राजनीतिक दलों के लिए संकट बना गया...

अटल बिहारी वाजपेयी हार गए थे चुनाव
साल था 1962 और देश में तीसरे आम चुनाव की घोषणा हो गई थी. जनसंघ के टिकट पर उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में थे. वाजपेयी 1957 में इस सीट से कांग्रेस के हैदर हुसैन को हरा चुके थे.

जवाहर लाल नेहरू ने वाजपेयी को हराने के लिए सुभद्रा जोशी को मैदान में उतार दिया. जोशी बलरामपुर में सक्रिय हो गईं और गली-गली प्रचार करने लगी. जोशी क्षेत्र में बारहों मास, तीसो दिन ( 12 महीने और 30 दिन) सेवा करने का संकल्प ले रही थी.

सुभद्रा जोशी पर पलटवार के दौरान ही वाजपेयी की जुबान फिसल गई और उन्होंने कह दिया कि महिलाएं महीने में कुछ दिन सेवा नहीं कर सकती हैं, फिर सुभद्रा जी कैसे हमेशा यहां सेवा करने का दावा कर रही हैं?

जोशी और कांग्रेस ने इसे महिला अपमान से जोड़ दिया. वाजपेयी सफाई देते रहे, लेकिन कांग्रेस इसे मुद्दा बनाने में सफल रही. चुनाव के जब नतीजे आए तो अटल बिहारी 2057 वोटों से हार चुके थे. हालांकि, 1967 के चुनाव में वाजपेयी ने सुभद्रा जोशी को भारी मतों से हराया था. 

2007 में सोनिया गांधी का विवादित बयान
गुजरात में 2007 में चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने भाषण में मौत का सौदागर शब्द का प्रयोग किया. सोनिया के इस बयान को बीजेपी में गुजरात अस्मिता से जोड़ा और मुद्दा बना दिया. सोनिया गांधी ने यह बयान गुजरात दंगे के संदर्भ में दिया था. 

मोदी के खिलाफ मौत का सौदागर वाला यह बयान गुजरात चुनाव में कांग्रेस को भारी पड़ा. कांग्रेस 59 सीटों पर सिमट गई, जबकि बीजेपी को रिकॉर्ड 117 सीटें मिली. चुनाव में जीत के बाद नरेंद्र मोदी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने.

मणिशंकर अय्यर के बयान ने कांग्रेस को डुबोया
गोवा अधिवेशन के बाद बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम का दावेदार घोषित कर दिया. इधर, कांग्रेस भी चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए एक बैठक बुलाया. इसी बैठक में कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने एक विवादित बयान दे दिया.

अय्यर ने कहा कि मोदी का दिल्ली में कोई काम नहीं है, अगर वे चाय बेचने आना चाहते हैं तो बेशक आ जाएं. बीजेपी ने अय्यर के इस बयान को चाय वालों की बेज्जती से जोड़ दिया.

2014 के चुनाव में बीजेपी ने चाय पर चर्चा और चाय वाला पीएम जैसे कैंपेन की शुरुआत की. अय्यर का बयान कांग्रेस को 44 सीटों पर पहुंचा दिया. बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आ गई. 

भागवत और मोदी का बयान पड़ा भारी
2014 में लोकसभा चुनाव और उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड समेत कई राज्यों में जीतने के बाद बीजेपी को बिहार में बड़ा झटका लगा था. दरअसल, बिहार चुनाव 2015 में लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.

इसी बीच नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के राजनीतिक डीएनए पर सवाल उठाया. इधर, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा करने की बात कह दी. महागठबंधन ने दोनों बयान को जमकर भुनाया.

नीतीश कुमार और उनकी पार्टी डीएनए के बयान को लेकर एक अभियान भी चलाया. इसके तहते बिहार के लोगों से नाखून और केस काटकर उसे जमाकर दिल्ली भेजने की बात कही. 

पूरे बिहार चुनाव में डीएनए और आरक्षण का मुद्दा छाया रहा, जिसका नुकसान बीजेपी को चुनाव में हुआ. चुनाव में बीजेपी गठबंधन 60 से भी कम सीटों पर सिमट गई. महागठबंधन 175 सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी का विजयी रथ रोक दिया.

अय्यर के बयान से बीजेपी को फिर मिली संजीवनी
साल 2017 में गुजरात का चुनाव बीजेपी के लिए काफी कठिन हो गया था. पहली बार कांग्रेस गुजरात में मजबूती से लड़ रही थी. पटेल आंदोलन की वजह से बीजेपी का समीकरण भी गड़बड़ हो गया था. चुनाव में हार की स्थिति को देखते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी कमान संभाली.

इसी बीच मणिशंकर अय्यर ने मोदी पर विवादित बयान दे दिया. अय्यर ने कहा- ये आदमी बहुत नीच किस्म का है. इसमें कोई सभ्यता नहीं है और यह किसी भी मौके पर गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आता है. 

अय्यर के बयान को बीजेपी ने ओबीसी के अपमान से जोड़ दिया. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जनता इसका जवाब देगी. अय्यर का यह बयान कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया. करीबी मुकाबले में 99 सीटें जीतकर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई.

दिलीप घोष का ममता पर विवादित टिप्पणी
2021 के बंगाल चुनाव के वक्त नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी का पांव फ्रैक्चर हो गया. डॉक्टरों ने ममता के पांव पर प्लास्टर बांध दिया. प्लास्टर बंधे होने की वजह से उन्होंने व्हीलचेयर से चुनाव प्रचार करना शुरू कर दिया. 

इसी बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने ममता बनर्जी पर विवादित बयान दिया. घोष ने कहा कि उनको चोटिल पैर दिखाना है तो बरमूडा शॉर्ट्स पहनना चाहिए. घोष के इस बयान पर तृणमूल ने महिलाओं का अपमान बताया.

इस बयान पर जब बवाल हुआ तो घोष सफाई देने लगे, हालांकि तृणमूल इसे मुद्दा बनाने में कामयाब रही. बंगाल चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई और ममता तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रही.

ममता की पार्टी ने पुराने रिकॉर्ड तोड़ते हुए 218 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी 77 सीटों पर जीत दर्ज कर दूसरे स्थान पर रही.

क्या कर्नाटक चुनाव पर भी असर होगा?
प्रधानमंत्री मोदी पर खरगे के बयान को बीजेपी ने गांधी परिवार का विष बताया है, जबकि खरगे को दलित नेता कहकर बचाव कर रही है. टिप्पणी के कुछ देर बाद ही खरगे ने खेद भी जताया. उन्होंने कहा कि उनका बयान किसी निजी व्यक्ति के लिए नहीं है. हालांकि, बीजेपी ने चुनाव आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई है.

खरगे के यह बयान कांग्रेस के लिए कितना नुकसानदायक होगा, यह बहुत कुछ प्रधानमंत्री के पलटवार पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री 29 अप्रैल को बेलगावी से चुनावी शंखनाद करेंगे. बीजेपी ने इसे मेगा रैली नाम दिया है. प्रधानमंत्री इसके बाद ताबड़तोड़ 15 सभाएं करेंगे.

विवादित बयानों का चुनाव पर असर होता है? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं- मान लीजिए, सोनिया गांधी ने 2007 में नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर नहीं कहा होता तो क्या कांग्रेस गुजरात चुनाव जीत जाती?

इसी तरह 2013 में अगर मणिशंकर अय्यर चायवाला बयान नहीं देता तो क्या बीजेपी नहीं जीतती? किदवई आगे कहते हैं- चुनाव में जीत हार के लिए बहुत सारे फैक्टर काम करते हैं. इसलिए मुझे नहीं लगता है कि सिर्फ एक बयान से चुनाव में हार-जीत तय हो जाता है.

कर्नाटक चुनाव में सर्वे क्या कह रहा है?
कर्नाटक चुनाव को लेकर हाल में 6 सर्वे सामने आए हैं. सी-वोटर के मुताबिक कांग्रेस को 106-116 सीटें, बीजेपी को 79-89 सीटें और जेडीएस को 24-34 सीटें मिल सकती है.

पब्लिक टीवी मूड के सर्वे में भी कांग्रेस को आगे दिखाया गया है. इस सर्वे में कांग्रेस को 98-108, बीजेपी को 85-95 और जेडीएस को 28-33 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है.

जन की बात और मैट्राइज की सर्वे में बीजेपी को बढ़त मिलती दिखाई दे रहा है. जन की बात सर्वे में बीजेपी को 98-109 सीटें दी गई है, जबकि कांग्रेस के 95 और जेडीएस के 25 सीटों पर जीतने का अनुमान व्यक्त किया गया है.

इसी तरह मैट्राइज के सर्वे में बीजेपी को अधिकतम 106 सीटें जीतने की संभावनाएं व्यक्त की गई है. कांग्रेस को इस सर्वे में 94 सीटें मिल रही है.

विस्तारा न्यूज और पीपुल्स पल्स के सर्वे में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल रहा है. विस्तारा के सर्वे में कांग्रेस को 84-90 और बीजेपी को 88-93 सीटें मिलती दिख रही है. इस सर्वे में जेडीएस को किंगमेकर कहा गया है.

पीपुल्स पल्स के सर्वे में कांग्रेस को 98, बीजेपी को 92 और जेडीएस को 27 सीटें मिली है. कर्नाटक की 224 सीटों पर 10 मई को मतदान होंगे. 13 मई को वोटों की गिनती होगी. 

आयोग के मुताबिक कर्नाटक में सुबह 7 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक मतदान कराया जाएगा. कुछ जगहों पर आयोग सुरक्षा को देखते हुए टाइमिंग में बदलाव कर सकता है. 

कर्नाटक में कांग्रेस, बीजेपी के साथ-साथ एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर भी मजबूती से मैदान में है. ओल्ड मैसूर क्षेत्र जनता दल सेक्युलर का गढ़ माना जाता है.

कर्नाटक चुनाव में इस बार नया क्या है?
पहली बार वोट फ्रॉम होम की सुविधा शुरू की गई है. ट्रांसजेंडर को पोल आइकॉन बनाने का फैसला भी कर्नाटक चुनाव में पहली बार किया गया है. युवाओं को वोट देने की अपील करने के लिए हैकथॉन का आयोजन भी चुनाव में पहली बार किया जा रहा है.

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