Kashmir News: कोरोना के साए में कारगिल में मनाया गया ममानी विंटर फेस्टिवल, छोटे-छोटे समूह में हुआ आयोजन
Kashmir News: लद्दाख में पड़ रही कड़ाके की ठंड के बीच कारगिल में ममानी विंटर फेस्टिवल का आयोजन किया गया. इस विशेष महोत्सव का आयोजन छोटे-छोटे समूह में अपने इलाकों में किया गया.
Kashmir News: लद्दाख में पड़ रही कड़ाके की ठंड के बीच आम जनजीवन प्रभावित होता ही है लेकिन इस बार कोरोना की तीसरी लहर के चलते यहां की परम्पराएं भी प्रभावित होने लगी हैं. कोरोना की पाबंदियों के बीच माइनस 20 से 30 डिग्री के तापमान में कारगिल निवासियों ने विशेष महोत्सव का आयोजन किया, लेकिन इस बार कुछ खास देखने को मिला. इस विशेष महोत्सव का आयोजन छोटे-छोटे समूह में अपने इलाकों में किया गया.
सर्दियों के इस महोत्सव का आयोजन कारगिल के शरगोले क्षेत्र में बुधवार को किया गया. जिस को स्थानीय भाषा में ममानी कहा जाता है. पारंपरिक मौसमी भोजन उत्सव में लाये गए और कारगिल के हर गांव में लोग इस दिन को मनाने के लिए पहुंचे. महोत्सव का आयोजन आमतौर पर कारगिल जिला प्रशासन करती रही है, लेकिन इस बार छोटे-छोटे समूह में हर गांव में स्थानीय पंचायत ने इसका आयोजन किया.
इस महोत्सव का आयोजन सर्दी के सबसे कठिन दिनों में चिल्ले-कलान में होता है और इस मौके पर पारंपरिक व्यंजनों को न सिर्फ बनाया और परोसा जाता है, बल्कि इसे पूरे गांव में लोगों में बांटा भी जाता है. पुराने ज़माने में ऐसे आयोजन का उद्देश्य सर्दी के दिनों में लोगों को एकजुट करके ख़ुशी मनाने का मौका देना था, लेकिन नए जामने में अब इस कार्यक्रम के जरिए लद्दाखी लोग अपनी सभ्यता और परम्पराओं को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं.
आज के आयोजन में शामिल होने वाले लोगों को कारगिल के पारंपरिक खानों जिन में पोपोट(Grain Soup), हर्त्स्राप खुर (Yeast Bread), मारखोर अजोग (Puri), पोली (Pan Cakes of Buck Wheat), दही , सुग्गू (Kash or Pachae) परोसा गया. पिछले कई सालो में कारगिल में घूमने आये पर्यटकों भी इस पारंपरिक व्यंजनों के आयोजन में शामिल होते रहे हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते ऐसा नहीं हो पाया.
परंपरा के अनुसार ममानी के बाद अगले दिन मक्सूमी ममानी नाम के एक छोटे कार्यक्रम का आयोजन होता था. जिस में कारगिल के सभी निवासी अपने घरो के आंगन में सुबह सवेरे आग जला कर सर्दियों को जाने और बसंत के आने की शुरुआत के तौर मनाते थे लेकिन बदलते समय के साथ ऐसी कई परम्परा लुप्त हो गयी हैं.