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Mamata Banerjee के जीत हार का इतिहास जानिए, कभी सोमनाथ को हराया, अधिकारी से हारीं, जानिए चुनावी जीत हार का क़िस्सा

Mamata Banerjee Wins Bhabanipur: ममता बनर्जी ने खुद को गरीबों की आवाज बताने का दावा करते हुए लेफ्ट पर निशाना साधते रहीं और साल 2011 के विधानसभा चुनाव में राज्य से लेफ्ट का किला ढहा कर रख दिया.

Mamata Banerjee Wins Bhabanipur: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भवानीपुर विधानसभा उपचुनाव पर अपनी प्रतिद्वंद्वी और बीजेपी उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल को रिकॉर्ड 58 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से शिकस्त देकर ये साबित कर दिया कि राज्य में उनकी पॉपुलैरिटी का कोई मुकाबला नहीं है. इसके साथ ही, ममता ने जहां नंदीग्राम सीट पर अपनी हार का बदला पुरजोर तरीके से ले लिया तो वहीं अगले पांच साल तक राज्य के सीएम पद पर बने रहना भी सुनिश्चित कर लिया है.

जाहिर है, ममता बनर्जी की इतनी बड़ी जीत के बाद विपक्षी खेमे में टीएमसी सुप्रीमो का कद राष्ट्रीय फलक पर और बढ़ गया है. ममता बनर्जी ने इससे पहले न सिर्फ राज्य में लेफ्ट का करीब तीन दशक का किला ध्वस्त किया, बल्कि बीजेपी की पुरजोर कोशिश के बावजूद उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनाव में भगवा को राज्य की सत्ता में आने से रास्ता रोका. लेकिन, ममता के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो वह करिश्माई नेता रही हैं, जिन्होंने एक वक्त सीपीएम के वरिष्ठ नेता और लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को हराकर सभी को चौंका दिया था.

सोमनाथ चटर्जी को हराकर संसदीय राजनीतिक में कदम

सात बार लोकसभा की सांसद रहीं ममता बनर्जी रेल मंत्रालय से लेकर कोयला मंत्रालय तक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल चुकीं हैं. पिछले दस वर्षों से बंगाल की रहीं सीएम ममता बनर्जी ने साल 1984 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को 19 हजार 660 वोटों के अंतर हराकर संसदीय राजनीतिक में अपना कदम रखा था. सीपीएम के इतने बड़े नेता को हराने का ममता बनर्जी को ईनाम भी मिला और उन्हें राजीव गांधी कैबिनेट में खेल राज्य मंत्री बनाया गया था. लेकिन ममता को बंगाल में लेफ्ट की सरकार की विपक्षी पाटी बने रहने नहीं भाया. वे खुद बंगाल की सड़कों पर उतर आईं और संघर्ष और चोटें खाते हुए अपने सयोगियों के साथ एक नेटवर्क तैयार किया, जो वामपंथी सरकार को गिराने में उनकी मदद करे.

ऐसे गिराया बंगाल से लेफ्ट का किला

टीएमसी सुप्रीमो ने नंदीग्राम और सिंगूर में जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन को न सिर्फ अच्छे से भांपा उसे राजनीतिक तौर पर अच्छे से भुनाया. ममता बनर्जी ने खुद को गरीबों की आवाज बताने का दावा करते हुए लेफ्ट पर निशाना साधते रहीं और साल 2011 के विधानसभा चुनाव में राज्य से लेफ्ट का किला ढहा कर रख दिया. इतनी बड़ी जीत का अंदाजा खुद दीदी को भी नहीं रहा होगा. स्ट्रीट फाइटर के नाम से मशहूर ‘दीदी’ के टीएमसी गठबंधन को 2011 के विधानसभा चुनाव में 294 विधानसभा सीटों में से 226 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि टीएमसी ने अकेले 184 सीटें पर विजय का पताका फहराया था. वामपंथी सिर्फ 40 सीट पर सिमटकर रह गए. इतनी शर्मनाक हार के बाद आज तक लेफ्ट पार्टी बंगाल में दोबारा नहीं उठ पाई है.

नंदीग्राम में पूर्व सहयोगी से ही मिली ममता को शिकस्त

राज्य में इतनी बड़ी हासिल लोकप्रियता के बावजूद इस साल हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी तो जीत गई, लेकिन उन्हें खुद इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में वह अपनी परंपरागत भवानीपुर विधानसभा सीट छोड़कर कभी अपने सबसे खास करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी गढ़ में जाकर लड़ने का एलान कर दिया था. उनकी इस घोषणा ने उस वक्त राजनीतिक पंडितों को चौंकाकर रख दिया था. ममता बनर्जी के इस फैसले से जरूर उनकी पार्टी को फायदा पहुंचा, लेकिन खुद पूर्वी मिदनापुर जिले की नंदीग्राम विधानसभा सीट पर अपने पूर्व सहयोगी और बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी से महज 1956 वोटों के अंतर से हार गईं. ऐसे में इतनी बड़ी जीत के बाद ममता ने यह साबित कर दिया है कि राज्य में पॉपुलरिटी के मामले में उनका अभी कोई मुकाबला नहीं है.

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