कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर कोरोना के लिए वैक्सीन ना देने का आरोप लगाने के साथ ही पश्चिम बंगाल के लोगों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने का ऐलान किया तो बीजेपी ने उस पर पलटवार करते हुए पूछा कि जब राज्य में उन्हीं की सरकार है तो आखिर यह मुफ्त वैक्सीन पहले क्यों नहीं दी गई?


ममता बनर्जी ने बुधवार को एक जनसभा को संबोधित करते हुए ऐलान किया कि चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल की जनता को मुफ्त कोरोना वैक्सीन दी जाएगी. इस पर बीजेपी की तरफ से राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पलटवार करते हुए कहा कि ममता बनर्जी चुनावों के बाद भी वैक्सीन देने की बात कर रही हैं जबकि आज की तारीख में बंगाल में उनकी ही सरकार है ऐसे में उनको फ्री वैक्सीन देने से किसने रोका है?


इस बीच भले ही पश्चिम बंगाल चुनावों के लिए बीजेपी ने अपना घोषणापत्र जारी न किया हो लेकिन बीजेपी के राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने बिहार की तर्ज पर ही बंगाल के लोगों के लिए भी बीजेपी सरकार बनने के बाद फ्री वैक्सिन देने का ऐलान कर दिया.


सुशील मोदी ने इसके साथ ही सीएम ममता के उन आरोपों का भी जवाब दिया जिसमें ममता ने केंद्र सरकार से कोरोना वैक्सीन नहीं मिलने का आरोप लगाया था और उसी के विरोध में प्रधानमंत्री की तरफ से कोरोना से लड़ाई को लेकर जो मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई थी उसका बहिष्कार करने का दावा किया था. सुशील मोदी ने कहा कि ममता बनर्जी झूठ बोल रही है कुछ उसी तरह से जैसे कि शुरुआत में उन्होंने कहा कि बीजेपी के लोगों ने उन पर हमला किया और पैर में चोट की बात कहकर प्लास्टर लपेट लिया था लेकिन अब वह ऐसा नहीं कह रही क्योंकि सच सामने आ चुका है.


सुशील मोदी के अलावा बीजेपी की ही राज्यसभा सांसद और बंगाल से नेता रूपा गांगुली ने भी ममता बनर्जी के प्रचार और घोषणा पत्र को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस अपने घोषणापत्र में नए वादों की जगह अगर पुराने वादों का ही ज़िक्र कर दें तो सही रहेगा. क्योंकि पिछले 5 सालों की सरकार के दौरान मुश्किल से 15 से 20 वीं फीसदी ही वादों पर अमल किया गया होगा और आज की तारीख में भी करीबन 80 फीसदी बातों पर कोई काम नहीं हुआ. तो सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसे घोषणापत्र का फायदा ही क्या?


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