नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कड़ी चुनौती पेश करने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'फेडरल फ्रंट' बनाने की मुहिम तेज कर दी है. इसके लिए वह पिछले तीन दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले रहीं. टीएमसी अध्यक्ष ने तमाम विपक्षी दलों और मोदी सरकार की सहयोगी शिवसेना नेताओं से मुलाकात की.
ममता ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाकात की. हालांकि उन्होंने साफ शब्दों में सोनिया गांधी से कहा कि हम चाहते हैं कि कांग्रेस 'संयुक्त विपक्ष का हिस्सा बने.' ममता के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष दलों को एकजुट करने का 'वन इज टू वन' का फॉर्मूला है. यानि जहां जो विपक्षी मजबूत सब उसका साथ दें.
ममता ने किन-किन दलों के नेताओं से की मुलाकात?
ममता बनर्जी ने ममता ने कल तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, करुणानिधि की पार्टी डीएमके, लालू यादव की पार्टी आरजेडी और नेशनल फ्रंट के नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की. इनके अलावा एनडीए से नाराज़ चल रहे उसके सहयोगी शिवसेना के नेता संजय राउत से भी उन्होंने मुलाक़ात की. संजय राउत के साथ ममता की बैठक करीब 20 मिनट चली.
शरद पवार के साथ बैठक पर रही नजर
राजनीतिक गलियारों में सबकी नजरें रहीं शरद पवार के साथ ममता की करीब आधे घण्टे तक चली मुलाकात पर. ऐसी चर्चाएं होती रहती है कि मुख्य विपक्षी कांग्रेस को छोड़कर भी अलग फ्रंट बनाया जा सकता है. मुलाकात के बाद एनसीपी ने कहा कि दोनों नेताओं ने आने वाले चुनावों और 2019 लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति पर चर्चा की और मोदी सरकार से मुकाबले के लिए एकजुट विपक्ष बनाने पर जोर दिया. सूत्रों के मुताबिक इन सभी मुलाकातों में इस बात पर जोर दिया गया कि सभी क्षेत्रीय दलों को अपनी अपनी पकड़ वाले इलाके में मिलकर बीजेपी और मोदी का मुकाबला करना होगा.
ममता बनर्जी ने खुद उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव की दोस्ती को नज़ीर के तौर पर पेश किया. ममता ने कहा कि ऐसा प्रयोग सभी राज्यों में हो सकता है. जैसे ओडिशा में बीजेडी, तेलंगाना में टीआरएस, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और बिहार में आरजेडी के हाथ मजबूत करने से बीजेपी को चुनौती मिल सकती है. इतना ही नहीं चुनाव बाद गठबंधन को लेकर भी ममता से बात हुई है
सूत्रों के मुताबिक शिवसेना नेता संजय राउत के साथ हुई बैठक में ममता ने चुनाव बाद के गठबंधन की संभावनाओं पर भी बात किया क्योंकि फिलहाल शिवसेना बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस और एनसीपी से भी समान दूरी बना कर रखना चाहती है.
ममता की नजर पीएम कुर्सी पर?
फेडरल फ्रंट में कांग्रेस की भूमिका को लेकर ममता भी उत्साहित नहीं दिखाई पड़तीं. इसकी कई वजहें हैं. सूत्रों के मुताबिक ममता फिलहाल फेडरल फ्रंट में कांग्रेस की भूमिका नहीं चाहती हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक इसकी एक बड़ी वजह राहुल गांधी का नेतृत्व भी है और ममता राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव में नहीं जाना चाहती. ममता और बाकी दलों का आकलन ये भी है कि अगर फेडरल फ्रंट बना तो वो कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीतेगी और ऐसे में चुनाव बाद मोलभाव करने की ताकत फ्रंट की ज्यादा रहेगी.
यही नहीं ममता का मानना है कि फ्रंट में शामिल तमाम दलों में सबसे ज्यादा सीटें टीएमसी की ही आएंगी और ऐसे में पीएम की कुर्सी पर उसका भी दावा बनेगा. यही वजह है कि अबतक गुपचुप तरीके से हो रही चर्चाओं को टीएमसी के नेता अब सार्वजनिक तौर पर भी बोलने लगे हैं. उनका कहना है कि ममता दीदी ही प्रधानमंत्री की अगली उम्मीदवार हैं. टीएमसी सांसद इदरीस अली ने कहा कि ममता को लोग पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं. सभी दलों को इसका समर्थन भी करना चाहिए.
थर्ड फ्रंट की चुनौतियां कम नहीं
हालांकि मोर्चे के गठन में चुनौतियां भी कम नहीं हैं. ये सच्चाई है कि कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस के साथ की भी जरूरत पड़ेगी. सूत्रों के मुताबिक बैठक में एनसीपी नेताओं ने ममता से साफ-साफ कहा है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ जाना उनकी मजबूरी है. ममता ने जवाब में कहा कि अगर कुछ पार्टियों को लगता है कि कांग्रेस के साथ जाना उनकी मजबूरी है तो वो जाएं लेकिन वो फेडरल फ्रंट का हिस्सा जरूर रहें.
इसके अलावा चूंकि ममता बनर्जी फ्रंट बनाने के अभियान की अगुवाई कर रही हैं लिहाजा लेफ्ट पार्टियां खुद ब खुद मोर्चे से बाहर हो जाएंगी. लेफ्ट पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी की मुख्य विपक्षी है.