कोलकाता में शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मंच पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जमकर भड़क गईं. ममता का इस दौरान बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के अधिकारियों से बहस भी हुई. ममता ने आरोप लगाया किBSF के जवान बंगाल में आम लोगों का उत्पीड़न कर रहे हैं.
ममता ने आगे कहा कि बीएसएफ राज्य प्रशासन में दखल दे रही है, जो कि कानूनन गलत है. सूत्रों के मुताबिक इस बहस के बाद अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच करीब ढ़ाई घंटे तक एक सीक्रेट मीटिंग भी हुई, जिसमें उन्होंने सेंट्रल एजेंसी की सक्रियता को लेकर सवाल उठाया.
ममता गुस्से में क्यों, 3 वजहें....
1. बंगाल के 10 जिलों में BSF की तैनाती
पश्चिम बंगाल का बॉर्डर भूटान, नेपाल और बांग्लादेश से लगा हुआ है. यहां के 10 जिलों में चौकसी के लिए बीएसएफ की तैनाती की गई है. ये जिले हैं- दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, दक्षिण 24 परगना, नदिया और उत्तर 24 परगना.
नए कानून लागू होने से जलपाईगुड़ी, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, मालदा और कूचबिहार के अधिकांश भाग बीएसएफ के कंट्रोल में चला गया है. साथ ही मुर्शिदाबाद जिला मुख्यालय और उत्तर 24 परगना के दो बड़े शहर भी बीएसएफ के अधीन है.
2. लोकसभा की 21 सीटें, जिसकी भूमि BSF कंट्रोल में
बंगाल के जिन 10 जिलों में BSF की तैनाती है, उनमें लोकसभा की कुल 21 सीटें हैं. 2019 में इनमें से 12 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और 7 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. 2 पर कांग्रेस ने भी कब्जा जमाया था. 2014 के चुनाव में इनमें से सिर्फ एक सीटें बीजेपी को मिली थी.
ममता को डर है- अगर बीएसएफ पर कंट्रोल नहीं किया गया तो इन इलाकों की जनता तृणमूल से नाराज हो सकती है और आगामी चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है.
3. उत्तर बंगाल में ज्यादा असर, यहां अलग राज्य की मांग उठ रही
BSF के नए कानून का सबसे ज्यादा असर उत्तर बंगाल में पड़ा है. यहां के दार्जिलिंग, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर के अधिकांश भाग बीएसएफ के कंट्रोल में आ गया है. पिछले 8 सालों में राजनीतिक रूप से ममता बनर्जी उत्तर बंगाल में कमजोर पड़ी हैं.
2021 के विधानसभा चुनाव में दिनाजपुर को छोड़ दिया जाए, तो उत्तर बंगाल के अधिकांश जिलों में तृणमूल कांग्रेस की करारी हार हुई थी. बंगाल में चुनाव के बाद उत्तर बंगाल को अलग राज्य करने की मांग भी धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है.
नियमों में क्या बदलाव हुआ, 3 बड़ी बातें...
- घुसपैठ रोकने के लिए पहले बॉर्डर इलाके में 15 किमी अंदर तक बीएसएफ सर्च अभियान चला सकती थी. इसे अब बदलकर 50 किमी कर दिया गया है.
- पहले बॉर्डर इलाके में किसी की गिरफ्तारी से पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती थी. नए नियमों में बदलाव के बाद अब गिरफ्तारी के लिए परमिशन की जरूरत नहीं है.
- किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले बीएसएफ राज्य पुलिस से कॉर्डिनेट करती थी. अब ऐसा नहीं होता है.
कानून में बदलाव क्यों, केंद्र की 2 दलीलें...
1. घुसपैठ और तस्करी रोकना- बीएसएफ कानून में बदलाव की सबसे बड़ी वजह भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर घुसपैठ रोकना है. केंद्र का तर्क है- घुसपैठिया एक रात में ही 15 किलोमीटर का सफर पूरा कर भारत में घुस जाता था, जिससे कई बार उसे पकड़ने में समस्याएं आती थीं. नियम बदलकर इसे आसान किया गया है.
2. ड्रोन समस्या को रोकना- भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से लगे पंजाब में पिछले तीन सालों में करीब 100 ड्रोन बरामद किए गए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 12, 2020 में 32 और 2021 में अब तक 46 ड्रोन मिल चुके हैं. ड्रोन घुसपैठ रोकने के लिए बीएसएफ के कानून में बदलाव किया गया है.
12 राज्यों में असर, 2 में विरोध सबसे अधिक
बीएसएफ के नए नियमों में बदलाव का सबसे अधिक असर 12 राज्यों गुजरात, लद्दाख, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड, जम्मू-कश्मीर और असम में हुआ है. मगर, इसका सबसे अधिक विरोध बंगाल और पंजाब में हो रहा है. इन राज्यों की सीमा में बीएसएफ की दखलअंदाजी बढ़ना सबसे बड़ी वजह है.
BSF को किस तरह की कार्रवाई का अधिकार?
BSF एक्ट 1968 की धारा 139 (1) के तहत सुररक्षाबलों को अपने कार्यक्षेत्र में पासपोर्ट एक्ट, NDPS एक्ट और सीमा शुल्क जैसे केंद्रीय कानूनों के तहत तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी का अधिकार है. कार्रवाई के बाद बीएसएफ स्थानीय थाने को इसकी सूचना देती है.
कब बना था BSF, कहां होती है तैनाती?
भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1 दिसंबर 1965 को BSF का गठन किया गया था. अभी BSF में कुल 192 बटालियन हैं, जिसमें 3 एनडीआरएफ की टीमें शामिल हैं. भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर बीएसएफ जवानों की तैनाती की जाती है. इसके अलावा, कुछ नक्सल प्रभावित राज्यों में भी बीएसएफ की तैनाती की गई है.