कोलकाता: पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी मंगलवार यानी आज विधानसभा में राज्य विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पेश करेंगी. 18 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बमुश्किल 12 दिन बाद, ममता बनर्जी ने विधान परिषद, या राज्य विधानसभा के उच्च सदन विधान परिषद बनाने के कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दी थी, जिसका उन्होंने चुनाव के दौरान वादा किया था.
बनर्जी ने घोषणा की कि जिन प्रतिष्ठित लोगों और दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव के लिए नामांकित नहीं किया गया था, उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा. सीएम ने 2011 के विधानसभा चुनावों के बाद नंदीग्राम और सिंगूर में उनके अभियान का हिस्सा रहने वालों को सीट देने की कसम खाई है.
यह देखते हुए कि मौजूदा वित्त मंत्री अमित मित्रा, पूर्णेंदु बोस जैसे पार्टी के कई दिग्गजों को विधानसभा में शामिल नहीं किया जा सकता है, एक विधान परिषद स्थापित करने का निर्णय लिया गया है. इस कदम को अब ममता बनर्जी द्वारा तैयार की गई रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. बता दें कि हालिया चुनाव में ममता बनर्जी अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार सुभेंदु अधिकारी से हार गई थीं.
इन छह राज्यों में है विधान परिषद
आपको बता दें कि भारत में केवल 6 राज्यों में विधान परिषद है, जिनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल है.
पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं. चूंकि एक विधान परिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, इसलिए बंगाल में विधान परिषद में 98 सदस्य हो सकते हैं.
बंगाल में विधान परिषद का इतिहास
स्वतंत्रता के बाद बंगाल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय ने 1952 में विधान परिषद का गठन किया था, जो कि 1969 तक जारी रहा. लेकिन दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार ने एक विधेयक पारित करके उच्च सदन को समाप्त कर दिया.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. विधान परिषद के निर्माण के लिए विधेयक को संसद के समक्ष पेश करने की आवश्यकता होती है. साथ ही इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति की भी आवश्यकता होती है.
बंगाल में हो सकती हैं 98 सीटें
विधान परिषद के पास विधानसभा की कुल सीटों के 1/3 से अधिक नहीं होना चाहिए. ऐसे में परिषद के पास अधिकतम 98 सीटें हो सकती हैं. सदस्यों में से 1/3 सदस्य विधायकों द्वारा चुने जाएंगे, जबकि अन्य 1/3 सदस्य नगर निकायों, जिला परिषद और अन्य स्थानीय निकायों द्वारा चुने जाएंगे. सरकार द्वारा परिषद में सदस्यों को मनोनीत करने का भी प्रावधान होगा. राज्यसभा की तरह ही इसमें भी एक सभापति और एक उपाध्यक्ष होते हैं. सदस्यों की आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए और उनका कार्यकाल 6 वर्ष का होगा.
विधान परिषद के सदस्य नागरिक निकाय के सदस्यों और निर्वाचित विधायकों द्वारा चुने जाते हैं. राज्यपाल कुछ सदस्यों को मनोनीत भी कर सकता है. बंगाल की अंतिम विधान परिषद में 75 सदस्य थे, जिनमें से नौ को राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया गया था.
इस पूरे मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि बंगाल में शून्य पर सिमटने वाले वामदलों ने ममता के इस कदम का विरोध किया है. दरअसल चुनौती इसे पश्चिम बंगाल विधानसभा में रखने की नहीं, बल्कि भारत की संसद के दोनों सदनों में इसे पारित और स्वीकृत कराने की है.
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