(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
प्रणब दा को याद कर ममता बोलीं- वे पितातुल्य थे, जानें दोनों के बीच खट्टे मीठे रिश्तों की कहानी
भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर सात दिनों के राजकीय शोक की घोषणा की है.पूर्व राष्ट्रपति के सम्मान में 31 अगस्त से 6 सितंबर तक राष्ट्रीय ध्वज झुका रहेगा.
नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को आर आर अस्पताल में निधन हो गया, वे 84 वर्ष के थे. प्रणब मुखर्जी को 10 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 2012 से 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब दा के संपर्क में जो भी आया वो उनको लेकर अपनी यादें साझा कर रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें पिता तुल्य बताया है.
ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, ''मैं इसे गहरे दुख के साथ लिख रही हूं. भारत रत्न प्रणब मुखर्जी ने हमें छोड़ दिया है. उनके जाने से एक युग की समाप्ति हुई है. सांसद के रूप में मेरी पहली जीत के समय, मेरे वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी होने के नाते, उनके राष्ट्रपति और मेरे सीएम रहते हुए वह दशकों तक एक पिता के रूप में थे.'
ममता ने आगे लिखा, 'उनके साथ मेरी बहुत सारी यादें रही है. प्रणब दा के बिना दिल्ली आना अकल्पनीय है. वह राजनीति से लेकर अर्थशास्त्र तक सभी विषयों में महान थे. हम सदा उनके कृतज्ञ रहेंगे. उन्हें बहुत याद करेंगे. अभिजीत और शर्मिष्ठा को मेरी संवेदना.''
ममता बनर्जी औऱ प्रणब मुखर्जी में रहे खट्टे मीठे रिश्ते पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के बीच रिश्ते खट्टे मीठे रहे. प्रणब मुखर्जी ने साल 2017 में आयी अपनी किताब 'द कोएलेशन ईयर्स' में ममता बनर्जी को 'जन्मजात विद्रोही' बताया था. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि एक बार ममता उन्हें अपमानित और शर्मिदा करते हुए एक बैठक से उठकर चली गई थीं.
1992 में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव को याद करते हुए अपनी किताब 'द कोएलेशन ईयर्स' में प्रणब मुखर्जी ने लिखा, ''ममता बनर्जी ने अपना कैरियर निडर होकर और आक्रामक अंदाज में बनाया है. और यह उनके अपने संघर्षो का नतीजा है. ममता बनर्जी के पैदाइशी बागी होने की बात कहते हुए मुखर्जी ने कहा कि इस बात को सबसे अच्छे तरीके से 1992 में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव से समझा जा सकता है. इन चुनावों में ममता हार गई थीं. तब उन्होंने एकाएक अपना मन बदला था और राज्य में पार्टी के ओपन इलेक्शन कराने की मांग की थी. ममता में एक ऐसा ऑरा है जिससे उनकी अनदेखी असंभव थी.''
ममता बनर्जी के बैठक से जाने का किस्सा साझा करते हुए प्रणब मुखर्जी ने किताब में लिखा कि ममता आरोप लगाती रहीं और संगठन के पद आपस में बांट लेने का आरोप लगाकर चुनाव प्रक्रिया को बर्बाद कर दिया. मुखर्जी ने लिखा कि ममता की इस प्रतिक्रिया से वह भौंचक्के रह गए और उन्होंने कहा कि वह तो उनके और अन्य नेताओं के अनुरोध पर मामले का कोई समाधान निकालना चाहते थे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि वह उनके रुख से कतई सहमत नहीं हैं और खुले चुनाव चाहती हैं. इतना कहने के बाद वह तेजी से बैठक से चली गईं और मैं स्तब्ध था और खुद को अपमानित महसूस कर रहा था.
ममता बनर्जी की प्रतिभा के कायल थे प्रणब दा ममता बनर्जी के बैठक के अचानक चले जाने की घटना से प्रणब दा भले की असहज हो गए हों लेकिन वे उनकी प्रतिभा के कायल थे. अपनी इसी किताब में उन्होंने लिखा कि ममता बनर्जी ने जादवपुर से माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर मार्क्सवादी पार्टी के गढ़ में सेंध लगायी. वह शानदार जीत थी और वह सही मायने में विजेता नजर आ रही थीं. अपने ओजपूर्ण राजनीतिक जीवन में उन्होंने मुश्किल चुनौतियों का सामना हमेशा बड़ी बहादुरी से किया और इनको अवसरों में बदलने का प्रयास किया.
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