नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी में बहुत बनती है. दोनों का मुकाबला बीजेपी से रहा है. दिल्ली में केजरीवाल तो जीत गए लेकिन अब बंगाल में क्या होगा ? इसका बड़ा सीधा जवाब है. ममता दीदी अगर केजरीवाल के फार्मूले पर चलीं तो फिर उनकी जीत की गारंटी है. वरना लेने के देने पड़ सकते हैं. लोकसभा चुनाव में दीदी पहले ही इसका ट्रेलर देख चुकी हैं.


बंगाल में पैर जमाती बीजेपी


पहले ये जान लें कि बंगाल में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी कितना बड़ा खतरा बन चुकी है. जिस राज्य में बीजेपी का कोई नामलेवा नहीं था. वहां अब वह टीएमसी के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बन गई है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 18 तो टीएमसी को 22 सीटें मिलीं. कांग्रेस बस दो ही सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी को 40.3 प्रतिशत और टीएमसी को 43.3 प्रतिशत वोट मिले. मतलब अंतर सिर्फ तीन प्रतिशत का. बीजेपी पिछले दो सालों से बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने में लगी है. किसी ना किसी बहाने. मदरसों में मौलवियों को तनख्वाह देने का मुद्दा अभी ठंडा नहीं हुआ है. कभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर माहौल गरमाने की कोशिश की जाती है. बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. बीजेपी इनके खिलाफ हिंदुओं को गोलबंद करना चाहती है. अगर ऐसा हो गया तो फिर ममता बनर्जी का खेल खराब हो सकता है.


प्रशांत किशोर आ सकते हैं काम


बीजेपी के चक्रव्यूह को ममता बनर्जी भेद सकती हैं. इसके लिए उन्हें बस अरविंद केजरीवाल बनना पड़ेगा. ये इतना मुश्किल काम भी नहीं है. प्रशांत किशोर उनके काम आ सकते हैं. जो केजरीवाल की टीम के साथ भी रहे. ममता दीदी को बस दिल से नहीं दिमाग से काम करना होगा. बीजेपी उन्हें लाख उकसाए, लेकिन इस झमेले में पड़ना नहीं है. जिन इलाकों में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी होती है. वहां बीजेपी हिंदू-मुसलमान का खेल खेलती है. भारत पाकिस्तान का तनाव खड़ा किया जाता है.


बीजेपी के जाल में नहीं फंसे केजरीवाल


बीजेपी ने शाहीनबाग के नाम पर अरविंद केजरीवाल को घेरने की जुगत भिड़ाई. उन्हें आतंकवादी बताया. ये भी आरोप लगे कि उनकी पार्टी वाले शाहीनबाग में बिरयानी बांटते हैं, लेकिन केजरीवाल बस अपने काम का ढिंढोरा पीटते रहे. बिजली पानी की बातें करते रहे. बीजेपी की हिंदुत्व की काट के लिए केजरीवाल हनुमान भक्त बन गए. वोट डालने से पहले बजरंग बली के मंदिर जाकर मत्था टेका. जीते तो भी मंदिर जाकर आशीर्वाद लिया. ममता दीदी को भी ये सब दावं पेंच आजमाने पड़ेंगे. उन्हें काली माता और दुर्गा मैया का भक्त बनना पड़ेगा. अपनी पदयात्रा में वे अभी से कीर्तन करने लगी हैं. अपने साथ एक भगवाधारी नेता को घुमाने लगी हैं.


कहते हैं न कि लोहा ही लोहे को काटता है. बस यही फंडा ममता बनर्जी को बंगाल में बीजेपी से बचा सकता है. करना इतना है कि हिंदुत्व की काट हिंदुत्व से की जाए. ये प्रयोग कर अरविंद केजरीवाल दिल्ली जीत चुके हैं. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का सपना बंगाल जीतना है. इस सपने और ममता बनर्जी के बीच में सिर्फ केजरीवाल का फार्मूला है. दिल्ली की जीत बंगाल के लिए चुनौती है और उपाय भी.


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