Opposition's Preparation For Lok Sabha Elections 2024: साल 2024 के लोकसभा चुनावों की रणभेरी बजने डेढ़ साल से कुछ अधिक वक्त ही बचा है. इसके साथ ही इस चुनावी जंग को जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है. खासकर देखा जाए तो आने वाला ये चुनाव बीजेपी (BJP) बनाम विपक्ष होने जा रहा है. जहां बीजेपी ने फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए अपनी रणनीति तय की है तो विपक्ष भी उसके विजय रथ पर ब्रेक लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है. विपक्ष ने एकजुट होने के लिए पूरे घोड़े खोल रखे हैं.
कांग्रेस के साथ ही बिहार, पश्चिम बंगाल, यूपी, महाराष्ट्र यहां तक कि दक्षिण में तेलंगाना के विपक्षी नेता भी बीजेपी को हराने के लिए योजनाएं बना रहे हैं. बिहार से तो ये नारा भी इन दिनों सियासी गलियारों में तैरने लगा है कि विपक्ष एकजुट हो जाए तो 2024 में बीजेपी को हारने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है. विपक्ष की सत्तारूढ बीजेपी की हराने की कोशिशें क्या गुल खिलाती हैं. उससे पहले लोकसभा चुनावों का गणित समझना बेहद जरूरी है. तो यहां से शुरू कर के देश के राष्ट्रीय फलक पर छाने के लिए बेताब विपक्ष की देश में सत्ता की बागडोर संभालने की चाह पर हम एक नजर डाल रहे हैं.
लोकसभा चुनाव और जीत की चाह
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता. इसके आधार पर देश को चलाने वाली सरकार चुनी जाती है.भारत के संविधान ने सदन के लिए अधिकतम सदस्यता 552 निर्धारित की की है. देश को आजादी मिलने के बाद साल 1950 में यह संख्या 500 थी. मौजूदा वक्त में अध्यक्ष और आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो मनोनीत सदस्यों को मिलाकर सदन की सदस्य संख्या 545 है. इसमें से 543 सीट के लिए चुनाव होता है. लोकसभा चुनावों में 131आरक्षित सीट हैं.
इनमें अनुसूचित जाति (SC) के लिए 79 से 84 और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 41 से 47 सीटें आरक्षित हो सकती हैं. इन सीटों पर कोई भी सामान्य या अन्य पिछड़ा वर्ग का उम्मीदवार उम्मीवारी नहीं कर सकता है.लोकसभा चुनावों में हार-जीत का गणित यही सीट तय करती हैं. इन सीटों पर जनता का फ़ैसला बताता है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी सत्ता पर काबिज होगी.
सभी राज्यों की लोकसभा सीटों से चुनकर आने वाले सांसदों पर देश की सरकार का भविष्य निर्भर करता है. 543 सीटों वाले लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए सरकार को 272 सांसदों की जरूरत होती है. इसी तरह लोकसभा में किसी राजनीतिक दल को अपनी पार्टी में विपक्ष के नेता का पद लेने के लिए कम से कम कुल सीटों की 55 सीटें की जरूरत होगी.
क्या है मौजूदा परिदृश्य
भारत के हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा ( Lok Sabha) सदस्य मिलते हैं. वर्तमान मे यह 1971 की जनसंख्या पर आधारित है. अगली बार के लिए लोकसभा के सदस्यों की संख्या साल 2026 मे निर्धारित की जाएगी. वर्तमान में राज्यों की जनसंख्या के अनुसार बांटी गई सीटों की संख्या के मुताबिक उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है.
जहां दक्षिण के चार राज्यों, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल को 129 लोक सभा की सीटें आवंटित की गयी हैं. जबकि इन राज्यों की संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का सिर्फ 21 फीसदी है. उधर सबसे अधिक जनसंख्या वाले हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार के खाते में सिर्फ 120 सीटें ही आती हैं. इन राज्यों की संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का 25.1 फीसदी है. लोकसभा की सीटें 29 राज्यों और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच बंटी हुई हैं.
विपक्ष का कमाल कितना कर पाएगा धमाल
सीटों के हिसाब से देखा जाए तो ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में 42 लोकसभा सीटें नीतीश कुमार के बिहार में 40 लोकसभा सीटें अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीट है और शरद पवार जिस महाराष्ट्र से आते हैं वहां 48 लोकसभा सीटें है. तेलंगाना कि बात की जाए तो वहां लोकसभा की 17 सीटें है. इन सीटों का जोड़ किया जाए तो भी ये बहुमत के 272 के आंकड़े तक नहीं पहुंच पा रही हैं. लेकिन चाहे ममता बनर्जी हो या नीतीश कुमार हो या अखिलेश यादव या फिर शरद पवार इनका कोई भी आधार अपने प्रदेश से बाहर नहीं है. देखा जाए तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के बाहर एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकती है. इसी तरह नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन बिहार में बीजेपी का 2019 वाला प्रदर्शन दोहराने से रोक पाएगा इसमें शक है.
गौर करने वाली बात है कि बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन होने के बावजूद अकेले दम पर 80 में से 62 लोकसभा सीट मिली थी. रही बात महाराष्ट्र की तो महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना को बुरी तरह तोड़ दिया है और आने वाले दिनों में वहां कांग्रेस में भी टूट होने की खबर आई है. अगर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और बीजेपी की सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव तक चलती हैं, क्योंकि इस सरकार को लेकर कई मामलों में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. यह सरकार 2024 के चुनाव तक चलेगी तो बीजेपी और एकनाथ शिंदे के गुट का प्रदर्शन अच्छा रहने की उम्मीद है. ऐसा शक है कि फिर शरद पवार, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना का गठबंधन असर नहीं दिखा पाएगा.
अब डालिए नजर विपक्षी एकजुटता की कोशिशों पर
हालांकि अगर विपक्षी एकजुटता की कोशिशें परवान चढ़ जाती हैं तो 2019 के मुकाबले इस बार बीजेपी के लिए 2024 की लोकसभा चुनावों में स्थितियां कुछ अलग नजर आ रही हैं. अब देखना ये है कि विपक्षी दलों के तमाम बड़े चेहरों राहुल गांधी, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, केसीआर की कोशिशें रंग लाती हैं. फिर चाहे वह विपक्ष की संयुक्त बड़ी रैलियां हों, बिहार के सीएम नीतीश कुमार का पटना-दिल्ली एक लगाना हो या फिर देश के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' हो, तो बीजेपी का 2024 में दांव पलटने की एक हल्की सी उम्मीद नजर आती हैं.
ये हैं बीजेपी की तैयारी
बीजेपी लिए भी इस बार साल 2024 के लोकसभा चुनाव की राह आसान नहीं है. साल 2019 के मुकाबले इस बार हालात बहुत बदले हुए हैं. यही वजह है कि पार्टी हर सीट के लिए अलग रणनीति लेकर चल रही है. अमित शाह खुद मोर्चे पर डटे हुए हैं. बीते 3 साल में एनडीए के कई सहयोगी ने उसके किनारा कर लिया है. लोक जनशक्ति पार्टी खुद ही दो पाटों में झूल रही है. शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल और नीतीश कुमार ने जो पलटी खाई है उससे उबरने की कोशिशों में बीजेपी लगी है.
जीत का परचम लहराने वाली मोदी सरकार (Modi Government) के खिलाफ विपक्षी एक होकर नई कहानी लिखने की तैयारी में हैं. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना पिछला रूतबा बरकरार रखने की है. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु जैसे राज्यों की 144 सीटों लिए विशेष तैयारी की है. इनमें अगर पश्चिम बंगाल को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश सीटें दक्षिणी राज्यों की है. बीजेपी ने बंगाल की 42 में से 18 सीटों बीते लोकसभा चुनावों में जीती थीं. तब टीएमसी ने 22 सीटों पर जीत हासिल की थी.
इसके अलावा बीजेपी का फोकस कर्नाटक और तेलंगाना में 2023 के विधानसभा चुनावों पर भी है. बीते 2019 के लोकसभा चुनावों में तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में 4 बीजेपी के खाते में आई थीं. यहां बीजेपी इन सीटों के साथ ही हारी हुई सीटों पर भी जीतने की तैयारी कर रही है. यहां उसकी लड़ाई सत्ताधारी टीआरएस से है. यहां के चंद्रशेखर राव (K Chandrashekar Rao) उसके लिए बड़ी चुनौती हैं. वो बीजेपी के खिलाफ खासे मुखर रहे हैं. वह बीजेपी मुक्त भारत का नारा देते हैं. हाल ही में उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने वाले बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की है.
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