कास्ट पॉलिटिक्स के जन्म की कहानी: मंडल-कमंडल की टक्कर! मुलायम की मुल्ला छवि से जलते थे वीपी सिंह, लालू यादव
Mandal Kamandal Politics: भारतीय प्रधानमंत्री बनने वाले नेताओं में नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी ही ऐसे नेता कहे जा सकते हैं, जिन्होंने सत्ता पाने के वो तरीके अपनाए जो नेहरू स्टाइल की कॉपी नहीं थे.
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Janata Party Government: मुलायम सिंह यादव 1989 में बीजेपी के समर्थन से पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उधर केंद्र में जनता दल के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सात अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया. इस तरह ओबीसी जातियों को नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण मिला. वीपी सिंह के मंडल के जवाब में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन चलाया, जिसके रथ की कमान लाल कृष्ण आडवाणी के हाथों में थी और आखिरकार वही हुआ जिसका डर था, मंडल और कमंडल टकरा गए.
अक्टूबर 1990 में कारसेवक अयोध्या के विवादित ढांचे की ओर बढ़ रहे थे और तब यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का ऑर्डर दे दिया. सीएम मुलायम सिंह यादव के आदेश के बाद फोर्सेज ने 30 अक्टूबर 1990 और 2 नवंबर 1990 को कार सेवकों पर गोलियां चलाईं. फायरिंग में कई कार सेवक मारे गए. इस तरह मुस्लिमों के बीच जबरदस्त सेक्युलर छवि बनी और मुलायम सिंह यादव को मुल्ला मुलायम का वो तमगा मिला, जिसने उनके MY फॉर्मूले को सियासत के धरातल पर उतार दिया.
वीपी सिंह ने लालू को उकसाया
उस जमाने में मुसलमान और पिछड़ों को साथ लाकर अगड़ों को टक्कर देने वाली सियासत के प्रयोग कई नेता भी कर रहे थे. खुद वीपी सिंह इस मामले में पीछे नहीं थे. प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए वीपी सिंह ने पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन को नेशनल हॉलीडे घोषित कर दिया था. वीपी सिंह ही थे जिन्होंने मुस्लिमों के बीच मुलायम की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर बिहार में लालू यादव को लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने के लिए उकसाया.
मुलायम सिंह गोली चलाने का फैसला ले चुके थे
लालू यादव ने बाद में ऐसा किया भी, लेकिन मुलायम सिंह कारसेवकों पर गोली चलाने का एक बड़ा फैसला ले चुके थे, इसे सही-गलत, हिंदू विरोधी या मुस्लिम समर्थित के तौर पर अलग-अलग तरह से देखा जा सकता है, लेकिन किसी भी नेता के लिए यह निर्णय बेहद कठिन हो सकता था, यह बहुत बड़ा और भारी पॉलिटिकल गेंबल था. मुलायम ने सियासी जमीन तैयार करने के लिए इतना बड़ा निर्णय लिया.
मुलायम सिंह कामयाब रहे
अब सामान्य तौर पर कोई भी यही कहेगा कि कार सेवकों पर गोली चलाने का मुलायम का फैसला हिंदुओं के खिलाफ था और उन्हें मुसलमान वोट तो मिल जाएगा, लेकिन हिंदू वोट गंवाना पड़ेगा, मगर मुलायम हिंदू यादवों को साथ लेकर चलने में कामयाब रहे. उन्होंने सेक्युलरिज्म के नाम पर हिंदू वोटों को जोड़े रखा, मुसलमान उनके वफादार बन गए और यादवों को उन्होंने जाति के नाम पर सपा का सारथी बना लिया.
सत्ता पाने का तरीका नेहरू वाला
मुलायम सिंह यादव के जमाने में जनता दल बना और टूटा और टूटकर बिखर गया. यहां खास बात यह रही है कि जनता दल से टूटकर नेताओं ने अलग-अलग पार्टियां तो बनाईं लेकिन सभी का फॉर्मूला वही समाजवादी था, वही मुस्लिम वोट, सेक्युलर छवि का खास ध्यान रखा गया. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण के विचारों से ये सभी दल प्रभावित जरूर रहे, लेकिन सत्ता पाने और चलाने का तरीका कमाबेश जवाहर लाल नेहरू वाला ही रहा.
नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी सबसे अलग
भारतीय प्रधानमंत्री बनने वाले नेताओं में नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी ही ऐसे नेता कहे जा सकते हैं, जिन्होंने सत्ता पाने और सत्ता चलाने के वो तरीके अपनाए जो नेहरू स्टाइल की कॉपी नहीं थे. इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाले हर नेता ने नेहरू स्टाइल को अपने आचरण में शामिल किया, यहां तक कि बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी नेहरू स्टाइल को ही फॉलो करने वाले पीएम थे.
आगे की कहानी समझने के लिए अब हमें पहले एक नजर जनता दल की टूट और नए दल बनने की कहानी पर डालनी होगी.
- वीपी सिंह के नेतृत्व में 11 अक्टूबर 1988 को जनता पार्टी, जनमोर्चा और लोकदल का विलय हुआ और इस तरह जनता दल अस्तित्व में आया.
- वीपी सिंह ने जनता दल के नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार की कमान संभाली, लेकिन जनता दल में मौजूद बड़े-बड़े सितारों के बीच टक्कर होनी तय थी, जिसकी शुरुआत चंद्रशेखर ने की और जनता दल टूट गया. चंद्रशेखर ने जनता दल समाजवादी पार्टी का गठन किया.
- कुछ समय बाद चंद्रशेखर और मुलायम सिंह यादव के बीच फूट पड़ी, जिसके बाद समाजवादी पार्टी वजूद में आई. सपा के जन्म का वो साल 1992 था.
- 1992 में ही जनता दल के भीतर एक और टूट हुई, चौधरी अजीत सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल बना लिया.
- 1994 में जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई.
- 1996 में कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े ने जनता दल से अलग होकर लोकशक्ति नाम की पार्टी का गठन किया.
- 1997 में लालू यादव भी जनता दल से अलग हुए और राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना की.
- 1998 में नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल की स्थापना की. वह भी जनता दल से ही टूटे.
- साल 1999 आते-आते जनता दल लगभग खत्म हो चुका था, लेकिन उसमें भी टूट हुई और यहां से भारतीय राजनीति को दो और नए छत्रप मिले- एचडी देवेगौड़ा ने जनता दल सेक्युलर बनाई और शरद यादव ने जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू की स्थापना की, आज जिसके नेता नीतीश कुमार हैं.
जनता दल टूटकर भी विजेता बना
कुल मिलाकर इतनी लंबी कहानी का सार यह निकला कि 1988 में जनता दल बना, जिसकी केंद्र में सरकार बनते ही वीपी सिंह मंडल कमीशन लाए, जवाब में बीजेपी कमंडल लेकर आई और 90 के दशक में जब दोनों की टक्कर हुई तो मंडल तब जीत गया, कमंडल वाली बीजेपी ने भी सियासी जमीन तैयार की, लेकिन जनता दल टूटकर भी विजेता बना, क्योंकि उसके अलग-अलग नेताओं ने टूटकर पार्टियां बनाईं और वे अलग-अलग राज्यों में क्षत्रप बन गए.
बीजेपी को एंट्री तक नहीं लेने दी
कई तो ऐसे भी राज्य हैं, जहां इन क्षत्रपों ने बीजेपी को एंट्री तक नहीं लेने दी. मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नांडिस, एचडी देवेगौड़ा, नवीन पटनायक, चौधरी अजित सिंह, शरद यादव जैसे नेता जाति की सियासत के पुरोधा बने. उधर हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी को सियासी जमीन तो मिली, लेकिन जातियों के जंजाल ने उसे हमेशा बहुमत से दूर ही रखा और 2014 में भारतीय राजनीति के राष्ट्रीय पटल पर नरेंद्र दामोदर दास मोदी का उदय हुआ.
नेहरू की सेक्युलर पॉलिटिक्स, इंदिरा गांधी के राष्ट्रवाद, वीपी सिंह के मंडल के जवाब में नरेंद्र मोदी ने कमंडल के मॉडिफाई वर्जन को लॉन्च कर दिया.
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