Manipur Assembly Election 2022: मणिपुर पूर्वोत्तर राज्यों की मणि कहा जाता है. इस बार के सियासी समर में मणिपुर की चर्चा बेहद खास है, क्योंकि 2017 में राज्य एक ऐसे राजनीतिक करिश्मे से गुजरा है, जब विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी सत्ता हासिल नहीं कर सकी. मणिपुर का अपना एक बृहद इतिहास है. फेरबदल और दलबदल वाले इस करिश्माई राज्य ने सत्ता की सीढ़ियों तक पहुंचते कई मुख्यमंत्रियों को देखा है. मणिपुर में इस साल के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
मणिपुर की राजधानी इंफाल है और यह उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में म्यांमार से अपनी सीमा साझा करता है. यहां के रहवासी मीतई जनजाति के लोग हैं. मणिपुर में महिलाओं को अहम स्थान हासिल है, राज्य ने देश और दुनिया को मैरी कॉम और मीराबाई चानू जैसे चैंपियन खिलाड़ी दिए. ऐसे में शारदा देवी को मणिपुर बीजेपी की कमान देना BJP के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. राज्य की राजधानी इम्फाल में एक ऐसा मार्केट हैं, जहां करीब 4 हजार दुकानें सिर्फ महिलाएं ही चलाती हैं. प्रदेश के पहाड़ी हिस्से में नगा आबादी रहती है. नगा समुदाय ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं. वहीं घाटी के ज्यादा समुदाय हिंदु धर्म को मानने वाले हैं. मणिपुर को पंडित जवाहर लाल नेहरू ज्वेल ऑफ इंडिया कह चुके हैं.
मणिपुर की सत्ता पर ज्यादा वक्त तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर में कहा कि मणिपुर में पिछले पांच साल में न नाकेबंदी हुई, न कोई बंद. अमित शाह ने दावा किया कि पांच वर्षों में मणिपुर में हिंसा को काफी हद तक नियंत्रित किया गया है और जब तक स्थिरता और शांति नहीं होगी, विकास असंभव है. वहीं पीएम मोदी भी कह चुके हैं कि आज ‘‘डबल इंजन’’ की सरकारों की वजह से इस क्षेत्र में उग्रवाद और असुरक्षा की आग नहीं है, बल्कि शांति और विकास की रोशनी है. इस वक्त पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
मणिपुर का शाब्दिक अर्थ आभूषणों की भूमि है. भारत को आजादी मिलने से पहले ये एक रियासत हुआ करती थी. साल 1891 में अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था. 15 अगस्त 1947 को भारत से ब्रिटिश राज का शासन खत्म होते ही मणिपुर के राजा ने 11 अगस्त 1947 को भारत संघ में विलय कर लिया. 21 सितंबर 1949 को भारत के साथ विलय के एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए गए.
केंद्र शासित प्रदेश को साल 1963 में 30 सदस्यीय विधानसभा दी गई थी. 1967 में पहली बार मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए, हालांकि अभी तक इसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सबसे अधिक सीटें जीतीं और उसके नेता मैरेम्बम कोइरेंग सिंह को उनके दूसरे कार्यकाल के लिए मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. 1972 में मणिपुर में 60 निर्वाचन क्षेत्रों के सदस्यों को चुनने के लिए विधानसभा चुनाव कराए गए थे. कांग्रेस ने इस साल सबसे ज्यादा सीटें जीतीं. पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 के पारित होने के बाद, मणिपुर को एक केंद्र शासित प्रदेश से एक राज्य में बदल दिया गया था, जिसके बाद ये चुनाव हुए थे. इसकी विधानसभा का आकार 30 से बढ़ाकर 60 सदस्यों तक कर दिया गया.
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ऐसे रहा मणिपुर का इतिहास
फरवरी 1974 में मणिपुर में चुनाव हुए कांग्रेस ने ज्यादा वोट परसेंट हासिल किया, लेकिन मणिपुर पीपुल्स पार्टी ने सबसे अधिक सीटें जीतीं और इसके नेता मोहम्मद अलीमुद्दीन को मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया गया. 1980 में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा सीटों के साथ-साथ वोट प्रतिशत भी ज्यादा हासिल किया और राजकुमार दोरेंद्र सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. साल 2017 तक कांग्रेस का ही मणिपुर विधानसभा चुनावों में दबदबा रहा. 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने मजबूत जीत हासिल करते हुए 42 सीटें जीती थीं. इसके बाद 2014 में मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी के विलय के बाद कांग्रेस की सदन में 47 सीटें हो गई थीं.
2017 में बीजेपी ने किया यहां चमत्कार
राज्य में इस वक्त बीजेपी की सरकार है, ऐसे में उसके पास सत्ता को बचाने की चुनौती है. साल 2022 में बीजेपी ने राज्य में जीत के लिए 40 सीटों का टारगेट रखा है. हालांकि साल 2017 के चुनाव में भाजपा को यहां सिर्फ 21 सीटें ही हासिल हुई थीं, इसी के चलते 60 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बहुमत का सहारा लेना पड़ा. सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली कांग्रेस को 28 सीटें जीतने के बाद भी राज्य की सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
बीजेपी ने इस बार अकेले ही बहुमत का आंकड़ा हासिल करने की ठानी है. मणिपुर बीजेपी की कमान तेज तर्रार महिला शारदा देवी के हाथों में है. राज्य में बीजेपी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस के साथ ही है. साल 2016 में कांग्रेस का दामन छोड़कर आए एन बीरेन सिंह को गले लगाकार बीजेपी ने राज्य में चमत्कार करते हुए 15 साल की कांग्रेस को सत्ता को हटा दिया. मणिपुर छोटी विधानसभा है और यहां के हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 30 हजार वोटर ही होते हैं, यही वजह है कि यहां की राजनीति और मुद्दे अन्य राज्यों से अलग हैं.
मणिपुर में दलबदल और फेरबदल
मणिपुर में मुद्दों से ज्यादा दलबदल और फेरबदल का बोलबाला रहा है. ऐसे में मणिपुर में रातोंरात कब समीकरण बदल जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता. जून से अगस्त के महीनों के बीच मणिपुर में समीकरण बदलने का 2020 में खेल शुरू हुआ था. जून में बीजेपी की एन बीरेन सिंह की गठबंधन सरकार से 6 विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. सरकार अल्पमत में आ गई तो कांग्रेस ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया. कांग्रेस ने भले 2017 में 28 सीटें जीती थीं, लेकिन उस वक्त तक उसके पास सिर्फ 24 विधायक ही थे. अगस्त 2020 में मतविभाजन हुआ था, कांग्रेस के 8 विधायक ही सदन से अनुपस्थित हो गए. सदन संख्या 53 थी और बीजेपी के पक्ष में 28 वोट पड़े. वहीं कांग्रेस के पास सिर्फ 16 विधायक. ऐसे में कांग्रेस के विधायकों ने ही एन बीरेन सरकार को बचा लिया.
क्या कहते हैं अभी के सियासी समीकरण
अभी के सियासी समीकरणों के हिसाब से राज्य में बीजेपी के लिए टिकटों की दौड़ ज्यादा है. वहीं नेशनल पीपुल्स पार्टी का भी जनाधार राज्य में इन दिनों बढ़ा है. पर्वतीय इलाकों की बात करें तो वहा नगा पीपुल्स पार्टी का प्रतिनिधित्व ज्यादा है. कांग्रेस राज्य में कमजोर पड़ रही है, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि राज्य में फिर वह उठ कर नहीं खड़ी हो सकती. पार्टी नए चेहरों के दम पर चुनाव मैदान में होगी. मणिपुर में इस बार टीएमसी भी दांव आजमा रही है. साल 2012 में उसे 7 सीटें मिल चुकी हैं और 2017 में एक सीट पर उसका कब्जा रहा. ऐसे में मुकाबला राज्य में त्रिकोणीय भी हो सकता है.
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