Manipur Assembly: जातीय हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर में अब जगहों के नाम बदलने को भी दंडनीय अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा. आगामी 28 फरवरी से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा में इससे संबंधित विधेयक पेश करने की तैयारी की गई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक "मणिपुर स्थानों के नाम विधेयक 2024" को इस बार सदन में पेश किया जाएगा.


भूमि संसाधन विभाग द्वारा तैयार किए गए इस विधेयक को राज्य कैबिनेट का अनुमोदन पहले ही मिल चुका है. इसमें सरकार की अनुमति के बगैर किसी भी जगह का नाम बदलने या दूसरा साइन बोर्ड लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान शामिल है. इसमें किसी जिला, उप मंडल या क्षेत्र का नाम बदलने को लेकर दिशा निर्देश जारी किए जाएंगे.


नाम बदलने से भी हिंसा भड़कने की आशंका
दरअसल मणिपुर में हाल के दौर में कई जगहों के नाम आबादी के मुताबिक लोगों ने अपनी मर्जी से बदलने के प्रयास किए हैं, जिसकी वजह से तनाव पसर गया था. उदाहरण के तौर पर चुराचांदपुर का नाम मैतेई राजा चुराचंद के नाम पर है, लेकिन यहां कुकी समुदाय की बहुलता के बाद इस जगह का नाम बदलकर ‘लमका’ लिखा जा रहा था. इसकी वजह से तनाव फैल गया था. ऐसा ही कुछ और जगहों पर भी हुआ था.


नोटिफिकेशन जारी कर चुकी है मणिपुर सरकार
मणिपुर सरकार ने मंजूरी लिए बिना जिलों और संस्थानों के नाम बदलने के खिलाफ एक नोटिफिकेशन पहले ही जारी कर दिया है. पिछले साल 2023 के अक्टूबर में ये अधिसूचना जारी की गई थी. इसमें कहा गया है कि इस तरह का कदम समुदायों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा कर सकता है तथा कानून-व्यवस्था की मौजूदा स्थिति को बिगाड़ सकता है.


अधिसूचना में कहा गया है कि यदि किसी को दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते पाया गया, तो उसके खिलाफ संबंधित कानूनों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी. नोटिफिकेशन के अनुसार, इस मामले को ‘अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि इस चलन से… राज्य में विभेद पैदा हो सकता है.’


मणिपुर हिस्सा में जान गंवा चुके हैं 180 लोग
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद पिछले साल तीन मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी. हिंसा की घटनाओं में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.


मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी की आबादी करीब 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.


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