Manipur Unrest: मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की आग में जल रहा है. यहां हालात बेहद ज्यादा बिगड़ते जा रहे हैं. दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए हैं. इसके साथ ही अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) ने छुट्टी पर गए अपने कर्मियों को तत्काल परिवार सहित नजदीकी सुरक्षा अड्डे पर रिपोर्ट करने के लिए कहा है. बल ने यह कदम मणिपुर हिंसा के दौरान अपने एक कोबरा कमांडो के मारे जाने के बाद उठाया है.
अधिकारियों ने बताया कि सीआरपीएफ का कोबरा कमांडो छुट्टी पर था और मणिपुर के चुराचांदपुर में उनके गांव में सशस्त्र हमलावरों ने शुक्रवार (5 मई) दोपहर को उनकी हत्या कर दी. तीन मई को मणिपुर हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद से पूरा राज्य हिंसा की आग में समा गया है. हिंसा के कारण अब तक 9000 लोग विस्थापित हुए हैं. अभी इस बात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो रहा है कि अब तक इस हिंसा में कितने लोग मारे गए हैं.
क्या है मणिपुर की स्थति?
राज्य के कई गांवों पर हिंसक भीड़ ने हमला किया है, कई घरों में आग लगा दी गई है, दुकानों में तोड़फोड़ की जा रही है. बुधवार (3 मई) से पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तत्काल प्रभाव से पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है. राज्य के कई जिलों में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था. इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है. वहीं, दूसरी तरफ मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है. इसके अलावा ये पढ़ने-लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं.
मैतेई को जनजाति का दर्जा मिलने का विरोध
अन्य जनजाति समूहों को डर है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरी के अवसर कम हो जाएंगे. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद से ही तमाम आदिवासी समूह विरोध में उतर आए. उनका कहना था कि मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए.
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