मणिपुर में करीब 17 महीने पहले भड़की जातीय हिंसा के बाद संघर्षग्रस्त राज्य में शांति बहाली के प्रयास के तहत पहली बार मेइती, कुकी और नगा समुदायों से विधायकों ने यहां मंगलवार को बैठक की. सूत्रों ने यह जानकारी दी. यह बैठक गृह मंत्रालय द्वारा मेइती और कुकी समुदायों के बीच मतभेदों को दूर करने, वहां जारी संघर्ष का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने और मतभेदों को समाप्त करने के प्रयास के तहत बुलाई गई थी.


सूत्रों ने बताया कि बैठक में मेइती समुदाय की ओर से विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम सत्यब्रत सिंह और विधायक थोंगम बसंतकुमार सिंह एवं तोंगब्राम रबिन्द्रो तथा कुकी समुदाय की ओर से लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेन (दोनों राज्य मंत्री) शामिल हुए.


नगा समुदाय का प्रतिनिधित्व विधायक राम मुइवा, अवांगबो न्यूमई और एल. दिखो ने किया. बैठक में गृह मंत्रालय के वार्ताकार ए. के. मिश्रा और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. बैठक में गृह मंत्री अमित शाह एवं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह शामिल नहीं हुए.


करीब एक महीने पहले शाह ने कहा था कि मणिपुर में स्थिति को सुलझाने के लिए कुकी और मेइती समुदायों के बीच बातचीत की जरूरत है और केंद्र दोनों समूहों के साथ चर्चा कर रहा है, जिसके बाद इन समूहों के नेताओं के बीच यह बैठक हुई.


गृह मंत्री ने 17 जून को मणिपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के दौरान भी ऐसा ही बयान दिया था. गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था कि गृह मंत्री ने राज्य में जारी जातीय संघर्ष को हल करने के लिए समन्वित दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि ‘गृह मंत्रालय जल्द से जल्द दोनों समूहों - मेइती और कुकी से बात करेगा ताकि जातीय विभाजन को पाटा जा सके.’


सूत्रों ने बताया कि बैठक में भाग लेने वाले सभी नगा, कुकी और मेइती विधायकों एवं मंत्रियों को गृह मंत्रालय द्वारा पत्रों तथा टेलीफोन कॉल के माध्यम से आमंत्रित किया गया था. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सात विधायकों सहित दस कुकी विधायकों ने इस बीच आयोजित विधानसभा सत्रों में भाग नहीं लिया था.


इन 10 विधायकों में लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेन भी शामिल हैं, जो मणिपुर में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री हैं. कुकी समुदाय के लोगों की इच्छा के अनुसार, समुदाय के विधायकों ने मणिपुर में जनजातीय लोगों के लिए अलग प्रशासन या केंद्र शासित प्रदेश की मांग पर भी जोर दिया.


मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की उसकी मांग के विरोध में राज्य के पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकता मार्च निकाले जाने के बाद पिछले साल तीन मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी. राज्य में तब से जारी हिंसा में कुकी और मेइती समुदायों के 220 से अधिक लोग और सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं.


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