मणिपुर में इंटरनेट बैन हटाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की, कहा- हाईकोर्ट पहले ही मामले को...
मणिपुर में बीते एक महीने से लगातार हिंसा हो रही है इसलिए बीते महीने 3 मई से सरकार ने राज्य में इंटरनेट पर बैन लगा रखा है. इसी बैन को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में इंटरनेट पर लगातार जारी प्रतिबंध के खिलाफ राज्य के दो लोगों की ओर से दायर की गई याचिका पर शुक्रवार (9 जून) को तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बेस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अवकाश पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के पास भी ऐसा ही एक मामला है.
सु्प्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, हाई कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है लिहाजा हमें इस कार्रवाई पर दुबारा काम करने की क्या जरूरत है? आपको इसके लिए नियमित पीठ के पास जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी एडवोकेट शादान फरासत कर रही थी.
मणिपुर में इंटरनेट बैन को लेकर क्या बोले याचिकाकर्ता?
सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका सी विक्टर सिंह और एम जेम्स की तरफ से दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं ने पीठ से कहा कि मणिपुर में लगाया गया इंटरनेट बैन बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार और इंटरनेट को संवैधानिक रूप से संरक्षित माध्यम के तौर पर इस्तेमाल करने वाली किसी भी व्यवसायी के बुनियादी अधिकारों का हनन करता है.
मणिपुर में क्यों लगा है इंटरनेट बैन?
बीते एक महीने से मणिपुर जातीय हिंसा की आग से जूझ रहा है लिहाजा राज्य सरकार ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में इंटरनेट पर बैन लगा रखा है. मंगलवार को मणिपुर सरकार ने इंटरनेट पर 10 जून तक के लिए प्रतिबंध बढ़ा दिया था. आयुक्त (गृह) एच ज्ञान प्रकाश ने स्थिति को देखते हुए कहा कि ब्रॉडबैंड सहित मोबाइल डेटा सेवाओं को 10 जून दोपहर तीन बजे तक बैन कर दिया गया है.
राज्य में इंटरनेट बैन करने का फैसला पहली बार मई के पहले हफ्ते में लिया गया था. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं. इन झड़पों में कम से कम 100 लोग मारे जा चुके हैं और 310 अन्य घायल हुए हैं. वहीं, 37,450 लोग फिलहाल 272 राहत शिविरों में रह रहे हैं.