Manmohan Singh Died: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार (26 दिसंबर) को निधन हो गया. 92 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली. डॉ. सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) हुआ था. उनका नाम भारतीय राजनीति और आर्थिक सुधारों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा. डॉ. सिंह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इससे पहले नरसिम्हा राव सरकार में उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1991 में भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था. अमेरिका की ओर से इराक पर हमला और सोवियत संघ के पतन से वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित थी. तेल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया था. स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि भारत को अपना सोना गिरवी रखना पड़ा.
चंद्रशेखर की चाकू वाली टिप्पणी
सीतापति द्वारा लिखी गई किताब "The Man Who Remade India" में बताया गया है कि जब पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री का पदभार संभाला और डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया गया तो डॉ. सिंह ने जुलाई 1991 में सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किया और बजट भाषण में कहा "किसी विचार का अगर सही समय आ जाए तो उसे कोई ताकत रोक नहीं सकती." आयात शुल्क और सीमा शुल्क में भारी कटौती की गई और लाइसेंस राज को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए गए.
डॉ. सिंह के आर्थिक सुधारों को लेकर विपक्ष ने कड़ी आलोचना की. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा "जिस चाकू को सब्जी काटने के लिए लाया गया उससे आप हार्ट का ऑपरेशन कर रहे हैं." ये टिप्पणी इस बात को दर्शाती है कि सुधारों को लेकर किस स्तर पर विरोध था. हालांकि समय ने साबित कर दिया कि उदारीकरण की ये नीति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुई. इस बात का जिक्र विनय
1991 के आर्थिक सुधार
आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप भारत ने न केवल अपना गिरवी रखा सोना वापस लिया बल्कि बाद में और ज्यादा सोना खरीदा. इसके साथ ही देश में विदेशी निवेश और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई. 1991 का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. ये सुधार केवल भारतीय बाजार को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने तक सीमित नहीं था बल्कि देश के लाखों लोगों के जीवन स्तर में सुधार का कारण भी बना.
डॉ. सिंह को उनके समर्थक और विरोधी समान रूप से एक नायक के रूप में देखते हैं. उनका शांत और विचारशील व्यक्तित्व भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान बनाता है. उनके कार्यकाल में न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक नीतियों में भी कई बदलाव हुए. उनका योगदान भारत के विकास और प्रगति में सदैव स्मरणीय रहेगा.
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